आचंलिक

धर्म आराधना कर आत्मा का कल्याण करते रहना चाहिए

नागदा। संतों का जीवन नदी में रहे हुए पानी के समान होता है। जिस प्रकार नदी में रहा हुआ पानी हर घाट की प्यास को बुझाकर सागर में समर्पित हो जाता है। उसी प्रकार संत भी अनेक जीवों का कल्याण करते हुए मोक्ष पद को प्राप्त करने के लिए तत्पर रहते है।
यह बात चार मास का चातुर्मास पूर्ण करने परं मंगलवार को विहार अवसर पर साध्वी तत्वलताश्रीजी ने कही। विदाई समारोह से पूर्व साध्वीश्री ने सुबह 5 बजे लक्ष्मीबाई मार्ग स्थित पाठशाला भवन से चातुर्मास परिवर्तन कर जैन कॉलोनी स्थित शांतिनाथ जैन मंदिर परिसर पहुंचे। मंदिर परिसर में साध्वीश्री की निश्रा में सुबह 6.30 बजे भक्तांबर पाठ का आयोजन किया गया। 8.30 बजे जैन कॉलोनी से चल समारोह के रूप में साध्वीश्री महिदपुर मार्ग स्थित नाकोड़ा पाश्र्वनाथ जैन मंदिर पहुंचे। सुबह 9.30 बजे शंत्रुजय तीर्थ की भावयात्रा, देववंदन एवं रास का वाचन किया गया। मीडिया प्रभारी डॉ. विपिन वागरेचा ने बताया दोपहर 4 बजे साध्वीश्री ने महिदपुर मार्ग स्थित दादावाड़ी परिसर से ग्राम रूपेटा के लिए विहार किया।


यह भी हुआ
सुबह 10.30 बजे से मंगलाचरण से विदाई समारोह शुरू हुआ। सामूहिक गुरूवंदन की प्रस्तुति श्रीसंघ के पूर्व अध्यक्ष सुनील वागरेचा ने दी। श्रीसंघ एवं चातुर्मास समिति पदाधिकारियों द्वारा कांबली अर्पण की गई। संचालन मनोज वागरेचा ने किया। आभार सुरेंद्र कांकरिया ने माना। गुरूदेव की आरती का लाभ बाबुलाल बाफना परिवार ने लिया। विदाई समारोह के पश्चात मूर्तिपूजक जैन श्रीसंघ के स्वामीवात्सलय का आयोजन दादावाड़ी परिसर में किया गया।

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