खरी-खरी

दिल्ली की सरकार हिला डाली केवल घोटालों के ख्यालों ने… उससे बड़ा घोटाला अंजाम देकर भी खामोश बैठे हैं नेता इंदौर के गलियारों में

इतना बड़ा घोटाला और पूरा मामला लगभग दबा डाला…100 करोड़ के घोटाले के नाम पर दिल्ली के मुख्यमंत्री को जेल में डाल में दिया जाता है…उपमुख्यमंत्री को जमानत के लिए तरसाया जाता है…पूरी दिल्ली सरकार को आरोपी बना दिया जाता है…और इंदौर के एक नगर निगम में ही हुए सवा सौ करोड़ के घोटाले को इतनी खामोशी के साथ सुना और सहा जाता है कि उसके उर्गे-गुर्गों…साथी-संगियों को सामान्य अपराधी बनाया जाता है…यह तक नहीं सोचा-समझा जाता है कि जो लोग दो-चार साल में सवा सौ करोड़ हड़प चुके हैं, वो कितने सालों से डाके डाल रहे होंगे और कितने हजारों करोड़ डकार चुके हैं…कितना बड़ा महकमा इस चांडाल चौकड़ी मेें शामिल होगा और कैसे कोई बड़ा अधिकारी इसमें शामिल नहीं रहा होगा…निगम का हर साल बजट बनाया जाता है…आय-व्यय का अनुमान लगाया जाता है…वसूला गया पैसा विकास और निगम संचालन के कामों में लगाए जाने के लिए तंगी का रोना रोया जाता है…जनता से पैसे वसूली के लिए अधिकारियों को दौड़ाया जाता है…संपत्तिकर नहीं देने वालों की संपत्तियों पर ताला लगाया जाता है…सफाई और स्वच्छता जैसे करों की वसूली के लिए हडक़ाया जाता है…हर माह आवक का ब्योरा निगमायुक्त से लेकर बड़े अफसरों के पास जाता है… फिर उसके खर्च के लिए गृहिणी की तरह बजट बनाया जाता है…कंगाली में चल रहे निगम के खर्चों में कटौत्रा किया जाता है…पाई-पाई का हिसाब निगमायुक्त सहित तमाम उपायुक्त और अपर आयुक्त की आंखों से गुजरकर आगे जाता है…फिर ऐसे में दो-चार, दस-बारह नहीं पूरे सवा सौ करोड़ का घोटाला कैसे हो जाता है… इस घोटाले को अंजाम भले ही दो-चार अधिकारियों द्वारा किया जाता है, लेकिन इसमें बड़ेे अधिकारियों के शामिल होने की आशंका को कैसे खारिज कर दिया जाता है…निगम अपनी कंगाली और बदहाल अर्थव्यवस्था के नाम पर हर साल कर बढ़ाता है…जनता पर अनावश्यक करों का बोझ लादता है…नक्शा पास करने की फीस में जमानेभर की मद जोड़ डालता है… जमीन के दाम से ज्यादा नक्शा पास कराने का खर्च हो जाता है…जनता के खून-पसीने की ही नहीं, बल्कि उसके अरमानों की राशि पर इस कदर डाका डाल दिया जाता है और न खाऊंगा न खाने दूंगा के नारे लगाने वाले मोदीजी की डबल इंजन सरकार पूरे मामले की अनदेखी कर आगे दौड़ लगा जाती है…दिल्ली की केजरीवाल सरकार की नीति को दागदार बताकर कठघरे में ही नहीं, सींखचों में भेजने वाली सरकार सवा सौ करोड़ के शुद्ध घोटाले पर खामोश रह जाती है… इस घोटाले को अंजाम देने के वक्त शामिल सारे अधिकारियों की जांच होना चाहिए…भ्रष्टों की संपत्तियां जब्त होना चाहिए…दलाल ठेकेदारों को भी निगम के घोटाले में नहीं, बल्कि जनता के पैसों पर डाका डालने का अपराधी बनाना चाहिए… और इससे भी कठोर से कठोर कार्रवाई इसीलिए होना चाहिए कि निगम सरकार के पैसे से नहीं जनता के पैसे से चलता है…निगम ही एकमात्र ऐसी संस्था है जिसका संबंध जनता की रोजमर्रा की सहूलियत और परेशानी से होता है…निगम के पैसों पर डाका डालने से आम आदमी अपने अधिकारों से वंचित होता है…यह जनता के साथ किया गया अपराध है…इसकी व्यापक जांच और कारनामे को अंजाम देने वालों पर आंच सुनिश्चित होना चाहिए…लोगों के खून-पसीने की कमाई लूटने वालों के लिए सबक और सजा दोनों का इतिहास बनना चाहिए…

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