खरी-खरी

शांत है हमारा शहर… इसे आक्रांत न बनाओ…


यह तो होना ही था…जब हिंदूवादी लव जिहाद आंदोलन चलाएंगे… मुस्लिम लडक़े के साथ हिंदू लडक़ी के पाए जाने पर बवाल मचाएंगे…थाना घेरकर ताकत दिखाएंगे…द केरला स्टोरी फिल्म दिखाकर गैरजातीय विवाह के दुष्परिणाम बताएंगे तो मुस्लिम भी अपनी कौम में हिंदूवादी संबंध स्वीकारने पर उंगली उठाएंगे…अपनी बेटियों के हिंदू धर्म में विवाह को गैरवाजिब बताएंगे… यही इंदौर में हुआ…फर्क सिर्फ इतना था कि उनका तरीका गलत था…उन्होंने अपनी बात समझाने के लिए चाकू का इस्तेमाल किया और भाजपा की सरकार होते हुए भी पर्चों में संघ के नाम का इस्तेमाल कर दिया…अब इसे उनकी उग्रता कहें या अशिक्षा… पर यह होना है…जब हिंदूवादी खुलेआम लव जिहाद का विरोध करते हैं…सोशल मीडिया पर युवतियों को बरगलाने, शादी रचाने और जबरन धर्म परिवर्तन कराने जैसी गतिविधियों के खिलाफ एकजुट होकर  सुर गुंजाते हैं तो यदि मुस्लिम अपनी बेटियों को यही संदेश पहुंचाएं तो इसे तो दोनों वर्गों की एक मुद्दे पर सहमति समझा जाना चाहिए… और यदि दोनों वर्ग एक मुद्दे पर सहमत हैं तो केवल मुद्दे को मुकाम देने का तरीका तय होना चाहिए… हिंदूवादियों द्वारा गैरजातीय विवाह का विरोध धर्म और मजहब की  पृथक मान्यताओं, परंपराओं और रहन-सहन के तौर-तरीकों के कारण है,  जिसे स्वीकार करना ही भविष्य की सुरक्षा और वक्त की नैतिकता है…वहीं यदि इसी कारण से मुस्लिम हिंदू धर्म में अपनी बेटियों के विवाह का विरोध करें तो यह भी उनका अधिकार है…इस शहर ने तर्कों के आधार पर व्यवस्थाओं को स्थापित किया   है…इस शहर ने पूरे देश में वैचारिकता का आगाज किया है… इस शहर ने सौहार्द और सभ्यता के साथ ही शांति और एकता का भी संदेश दिया है…अब भी यही होना चाहिए…हिंदू हों या मुसलमान उन्हें अपनी बात कहने का तरीका स्थापित करना होगा…जब दोनों ही वर्ग एक मुद्दे पर सहमत हैं तो उसका मुकाम तय करना होगा… चाकूबाजी जैसी घटनाएं उग्रता की अभिव्यक्ति, वैमनस्यता बढ़ा सकती हैं… संघ पर उंगली उठाएं या उसे अतिवादी बताएं तो एक तो ऐसा उदाहरण सामने आए, जिसमें उस संगठन की गतिविधियों में हिंसा जैसी कोई हैवानियत शामिल हों… ऐसी घटनाएं कौम को कठघरे में खड़ा करती हैं…बात को दिशाहीन बनाती हैं और लोगों को मौका देने का मौका दे डालती हैं… बात को तर्क से समझाना और वक्त के आधार पर नई मान्यताओं को समाज में लाना एक बौद्धिक तरीका हो सकता है… इसके लिए कानून भले ही बन जाए, लेकिन जब तक समाज नहीं जाग पाएगा तब तक संघर्ष हावी रहेगा… इसलिए दोनों ही वर्गों को मिलकर न केवल इस परंपरा को, बल्कि हम साथ-साथ हैं जैसी सोच का भी संदेश देश को देना चाहिए…

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