इंदौर। मल्हारराव सूबेदार बनने के बाद इंदौर आए तो उनके अभिन्न साथी विसाजी भी अपना खामगांव छोडक़र उनके साथ इंदौर आ गए और मल्हारराव के साथ अनेक युद्धों में भाग लिया। समय के अनुसार दोस्ती रिश्तेदारी में बदल गई। मल्हारराव की कनिष्ठ कन्या सीताबाई का विवाह विसाजी के पुत्र संताजीराव लांभाते के साथ हुआ। इन्दौर में होलकर बाड़ा के अनुसार ही लांभाते बाड़ा भी बनाया गया। वर्तमान में पंढरीनाथ थाने के सामने विद्यमान है, जिसमें दुर्गादेवी का मंदिर हैं।
विसाजी लांभाते पंढरपुर के विठ्ठल के अनन्य भक्त थे। वह नियमित रूप से प्रतिवर्ष आषाढ़ मास में पंढरपुर की पैदल यात्रा करते थे। ढलती उम्र के साथ जब पंढरपुर नहीं जा सके तो विट्ठल ने सपने में उन्हें दर्शन दिए। तब पंढरपुर की तर्ज पर नदी किनारे पंढरीनाथ मंदिर का निर्माण का अपने समधी के लिए मल्हारराव के शासनकाल में करवाया गया। मंदिर के रखरखाव के लिए देपालपुर तहसील के भिड़ोता, सिमलावदा और सुनाला में मंदिर को जमीन इनाम में दी गई। इस जमीन की सनद पुण्यश्लोक अहिल्याबाई होलकर के समय में लिखी गई थी।
देवशयनी एकादशी पर होलकर काल में रहतीं थीं आधे दिन की छुट्टी
होलकरकाल में देवशयनी एकादशी पर इंदौर में भक्तिमय उत्सवी माहौल रहता था। पंढरीनाथ मंदिर के तीनों ओर बड़ा मेला लगता था। इंदौर में आधे दिन की छुट्टी रहती थी। सायंकाल होलकर महाराज स्वयं पंढरीनाथ मंदिर पहुंचकर आरती करते थे। भगवान को चार महीने के शयनकाल की विदाई देने पूरा इंदौर जुटता था। पंढरीनाथ मंदिर की ओर जाने वाले चारों मार्गों पर सजे मेले में बड़ी संख्या में इंदौर के ग्रामीण क्षेत्रों के रहवासी भी भागीदारी करते थे।
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