- उपचुनाव जीतने के लिए तेज हुई लामबंदी
भोपाल। मप में आने वाले दिनों में विधानसभा की 27 सीटों पर उपचुनाव निश्चित हैं। राज्य के चुनावी इतिहास में यह अब तक का सबसे बड़ा उपचुनाव माना जा रहा है। यह चुनाव शिवराज सिंह चौहान की सरकार के स्थायित्व और कांग्रेस की दोबारा सत्ता में वापसी की उम्मीदों का भी है। दोनों ही पार्टियां युद्ध स्तर पर चुनावी तैयारियों में जुटी हुई हैं। इस समर में बसपा, सपा, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी समेत छोटे दलों ने भी अपनी दस्तक देनी शुरू कर दी है। संगठनात्मक स्तर पर चुनावी तैयारी के साथ जातीय क्षत्रपों को भी साधने में सियासी दलों की सक्रियता बढ़ गई है। यह सही है कि प्रदेश की चुनावी राजनीति में जातियों का वह असर कभी नहीं दिखा जो उत्तर प्रदेश और बिहार में दिखता है। फिर भी जातियों की गोलबंदी को हवा देने में राजनीतिक दल ताकत लगा रहे हैं।
मतदाताओं ने जातिवाद को नकारा
वैसे यदि जातियों के बूते चुनावी नैया पार होती तो पदोन्नति में आरक्षण और कुछ अन्य मसलों को लेकर साल 2018 के चुनाव से पहले अजाक्स (अजा-जजा कर्मचारियों का संगठन), सपाक्स (सामान्य और ओबीसी की संस्था) और जयस (आदिवासी युवाओं का राजनीतिक संगठन) ने सक्रियता दिखाई लेकिन चुनाव परिणाम आया तो इनकी हैसियत वोटकटवा से ज्यादा नहीं दिखी। यही नहीं गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और सवर्ण समाज पार्टी जैसे दलों को भी कोई लाभ नहीं मिल सका।
भाजपा ने फ्रंटल संगठनों को सक्रिय किया
भाजपा ने इस उपचुनाव में समाज को एक सूत्र में पिरोने के लिए अपने फ्रंटल संगठनों को सक्रिय कर दिया है। भाजपा के किसान मोर्चा, महिला मोर्चा, युवा मोर्चा, अनुसूचित जाति मोर्चा, अल्पसंख्यक मोर्चा, अनुसूचित जनजाति मोर्चा और पिछड़ा वर्ग मोर्चा जैसे संगठनों ने बूथ और सेक्टर स्तर पर जातियों को गोलबंद करने का जिम्मा लिया है। इनकी बैठकें और गोलबंदी भी शुरू हो गई है।
कांग्रेस ने पंचायत स्तर पर छेड़ी मुहिम
भाजपा के मुख्य प्रवक्ता दीपक विजयवर्गीय कहते हैं कि भाजपा में समरस समाज की विचारधारा है और पार्टी सभी वर्गों के उत्थान पर ध्यान देती है इसलिए भाजपा को सभी वर्गों का साथ मिलता है। कांग्रेस ने भाजपा में उभर रहे असंतोष को हवा देने के साथ ही विधानसभा वार जातीय क्षत्रपों को साधने में ताकत लगा दी है। कांग्रेस ने पंचायत स्तर पर अल्पसंख्यकों, अगड़ों-पिछड़ों, आदिवासियों और अनुसूचित जातियों के नेताओं को अपने पाले में करने के लिए मुहिम छेड़ दी है।
कमलनाथ ने संभाला मोर्चा
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ खुद यह मोर्चा संभाले हैं और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह इसे मजबूती देने में लगे हैं। कमल नाथ की मौजूदगी में कांग्रेस में भाजपा से नाराज चल रहे अगड़े-पिछड़े, अजा-अजजा वर्ग के नेताओं को शामिल किया जा रहा है। साथ ही जातीय संगठनों के पदाधिकारी भी सक्रिय किए जा रहे हैं। कांग्रेस प्रवक्ता दुर्गेश शर्मा का कहना है कि भाजपा हमेशा बांटने वाली राजनीति करती है जबकि कांग्रेस ने सबको एक सूत्र में पिरोने का कार्य किया है।
सपा ने नहीं खोले पत्ते
बकौल दुर्गेश शर्मा इस उपचुनाव में भाजपा को उसकी करतूतों का जवाब प्रदेश की जनता देगी और एक बार पुन: कांग्रेस की सरकार बनेगी। वहीं सपा ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। वह छोटे दलों से तालमेल कर सकती है लेकिन बसपा सभी सीटों पर चुनाव लडऩे की तैयारी में है। बसपा के प्रदेश अध्यक्ष रमाकांत पिप्पल ने जातीय समीकरण के हिसाब से उम्मीदवारों के चयन पर मंथन कर लिया है और इसके लिए बसपा प्रमुख मायावती का अनुमोदन बाकी है।