ब्‍लॉगर

मर्यादा अनुरूप द्रोपदी मुर्मू का प्रचार

– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

राष्ट्रपति देश का संवैधानिक प्रमुख होता है। संघीय कार्यपालिका शक्तियों का संचलन प्रधानमंत्री के नेतृत्व में होता है। भारत में संसदीय शासन प्रणाली है। मंत्रिमंडल की सिफारिश और संसद द्वारा पारित विधेयक पर राष्ट्रपति हस्ताक्षर करते हैं। इसके बाद ही कानून बनता है। मूल संविधान में केवल यह उल्लेख था कि राष्ट्रपति मंत्रिमंडल की सलाह से कार्य करेंगे। इसका मतलब था कि राष्ट्रपति मंत्रिमंडल की सिफारिश और विधेयक को स्वीकार या अस्वीकार कर सकते हैं। इंदिरा गांधी के कार्यकाल में संशोधन किया गया। इसके माध्यम से मंत्रिमंडल की सिफारिश को स्वीकार करना बाध्यकारी बनाया गया।

जनता पार्टी सरकार के समय इसमें पुनः संशोधन किया गया। इसके अनुसार राष्ट्रपति मंत्रिमंडल की सिफारिश को पुनर्विचार के लिए एक बार वापस कर सकते हैं। दोबारा वह सिफारिश या प्रस्ताव के अनुरूप ही कार्य करेंगे। मतलब राष्ट्रपति को एक बार ही सिफारिश लौटाने का अधिकार है।

इस संवैधानिक व्यवस्था के संदर्भ में विपक्षी उम्मीदवार के चुनाव प्रचार को देखना दिलचस्प है। वह यह दिखा रहे हैं जैसे राष्ट्रपति बनने के बाद वह पूरी व्यवस्था को दुरुस्त कर देंगे। जबकि राष्ट्रपति के पास ऐसा करने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं हैं। यशवंत सिन्हा ने चुनाव प्रचार को राजनीति के नकारात्मक स्तर पर पहुंचा दिया है। वह विगत आठ वर्षों से नरेन्द्र मोदी के खिलाफ मुखर रहे हैं। राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनने के बाद भी वह राजनीति के उसी धरातल पर हैं। ऐसा लग रहा है कि सर्वोच्च पद के चुनाव प्रचार को उन्होंने मोदी विरोध का अवसर मात्र मान लिया है। जबकि उनकी पराजय सुनिश्चित है। राजग उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनाना तय है। राजग को विपक्षी मतदाताओं को अपनी तरफ मिलने की कोई आवश्यकता ही नहीं है। आंध्र प्रदेश और ओडिशा का सत्तापक्ष राजग उम्मीदवार के साथ है। अनेक प्रदेशों के विपक्षी मतदाता राजग उम्मीदवार को अंतरात्मा की आवाज से वोट दे सकते हैं। यशवंत सिन्हा का समर्थन करने वाले दलों में भी कोई उत्साह रहता नहीं है। ममता बनर्जी के बयान से यशवंत सिन्हा की स्थित हास्यास्पद हो गई है।

ऐसे में यशवंत सिन्हा की राजनीतिक दलीलों का कोई महत्त्व नहीं है। उनका आरोप है कि राष्ट्रपति चुनाव में पैसे देकर विधायकों को खरीदने की कोशिश की जा रही है। मध्य प्रदेश कांग्रेस के अट्ठाइस आदिवासी विधायकों पर भाजपा की नजर है। सरकारी एजेंसियों का दुरुपयोग करो, धन बल का प्रयोग करो वाली भाजपा की नीति के खिलाफ हमारी लड़ाई है। पहले शिवसेना को तोड़ दिया, सरकार गिरा दी और उन्हें फोर्स किया कि हमारे उम्मीदवार का समर्थन करो। यशवंत सिन्हा अनुभवी नेता हैं। उन्हें मालूम है कि पराजय तय है। इसलिए अतिरिक्त प्रयास करने की कोई आवश्यकता ही नहीं हैं। उद्धव ठाकरे की सरकार अपने कर्मों से गिरी है।

यशवंत के अनुसार विधायकों के उनके पास फोन आ रहे हैं। प्रलोभन दिया जा रहा है कि इतने पैसे ले लो और वोट हमारे उम्मीदवार के पक्ष में दे दो। कभी कल्पना भी नहीं की थी कि मैं चुनाव में खड़ा हो जाऊंगा। इससे भाजपा डर गई है। वास्तविकता यह है कि भाजपा ने विगत आठ वर्षों में यशवंत सिन्हा को कोई महत्व नहीं दिया। जबकि सिन्हा पूरी क्षमता से सरकार विरोधी अभियान चला रहे थे। अब तो राजग उम्मीदवार के पक्ष में पूरा बहुमत है। यशवंत अपनी राजनीति से ऊपर उठने को तैयार नहीं हैं। उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में चुनी हुई सरकार को गिरा दिया गया। गोवा में कांग्रेस के विधायकों को तोड़ने का प्रयास हुआ। लोकतंत्र में इससे बड़ा अपराध नहीं हो सकता है। भाजपा की ओर से द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में मतदान करने के लिए प्रलोभन दिए जाने का मामला गंभीर है। निर्वाचन आयोग को इस मामले में संज्ञान लेना चाहिए।

वह ऐसे मुद्दे उठा रहे हैं, जिनका राष्ट्रपति चुनाव से कोई संबंध नहीं है। राष्ट्रपति बनने वाला व्यक्ति इस विषय पर कुछ कर भी नहीं सकता। यशवंत सिन्हा अर्थव्यवस्था पर सरकार पर हमला बोल रहे हैं। मनमोहन सिंह सरकार की तारीफ कर रहे हैं। उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव को देश के भविष्य का चुनाव बताया है। कहा है कि प्रजातंत्र को बचाने की लड़ाई लड़नी है। यशवंत सिन्हा को समझना चाहिए कि प्रजातंत्र पर कोई खतरा नहीं है। इस प्रकार की हल्की बातें उन्हें नहीं करनी चाहिए। दूसरी तरफ द्रौपदी मुर्मू का आचरण गरिमा के अनुरूप है। उन्होंने एक बार भी हल्की राजनीतिक बातें नहीं कीं। विपक्ष पर कोई आरोप नहीं लगाया। वैसे भी राष्ट्रपति दलगत राजनीति से ऊपर हो जाता है। द्रौपदी मुर्मू ने इसके अनुरूप अपने को तैयार किया है। उन्होंने किसी पर कोई आरोप नहीं लगाया।

आंध्र प्रदेश की सत्तारूढ़ वाईएसआर कांग्रेस और विपक्षी तेलुगू देशम पार्टी ने भी राजग उम्मीदवार के समर्थन का ऐलान किया है। चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि वे गर्व महसूस कर रहे हैं कि आदिवासी महिला पहली बार देश के सर्वोच्च पद पर आसीन होगी। यह देश के लिए गौरव की बात भी होगी और तेलुगू देशम पार्टी उनका पूरा समर्थन करती है। बीजू जनता दल के नवीन पटनायक कहा कि एनडीए की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार पूर्वी राज्य का गौरव हैं।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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