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राहुल गांधी का मिशन UP, अखिलेश यादव की पार्टी तोड़ने के लिए कांग्रेस चल रही चाल

नई दिल्ली: यूपी में मृतप्राय कांग्रेस इन दिनों अपना परिवार बढ़ाने में जुटी है. दशकों तक यूपी और दिल्ली में राज करने वाली कांग्रेस हाशिए पर है. न संगठन बचा न पार्टी के पास अपना व्यापक वोट बैंक है. सारे जतन अब तक बेकार साबित हुए. पार्टी के लोगों को ‘प्रियंका दीदी’ से बड़ी उम्मीदें थीं. ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ के नारे के साथ पार्टी का यूपी प्रभारी बन कर प्रियंका ने एक्टिव पॉलिटिक्स में एंट्री ली. पर उनका जादू भी नहीं चल पाया. पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के नसीब में बस दो ही सीटें आईं. अमेठी से राहुल गांधी की हार के सदमे से यूपी के कांग्रेसी अब तक उबर नहीं पाए हैं. यूपी में तो कुछ हो नहीं पाया अब पार्टी नेताओं की नजर दूसरे राज्यों के चुनाव पर है. कांग्रेस की जीत ही यूपी के कांग्रेसियों के लिए टॉनिक हो सकता है.

लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस पार्टी की तैयारी शुरू हो गई है. पार्टी के नए प्रदेश अध्यक्ष अजय राय सुपर एक्टिव हैं. उन्हें लगता है राहुल गांधी की छवि के दम पर यूपी में कांग्रेस इस बार चमत्कार कर सकती है. पार्टी फिर से अपने पुराने बेस वोट बैंक की जुगाड़ में है. दलित, मुस्लिम और ब्राह्मण. ब्राह्मण अभी बीजेपी के साथ है. दलितों का झुकाव मायावती के लिए है. जबकि यूपी के मुसलमान समाजवादी पार्टी के पास रहे हैं. कांग्रेस के एक पूर्व सांसद कहते हैं लोकसभा देश का चुनाव है इसीलिए मुस्लिम समाज अब कांग्रेस को वोट करेगा.

राहुल गांधी के भ्रमण का होगा असर?
राहुल गांधी देश में घूम-घूम कर जातिगत जनगणना कराने की बात कह रहे हैं. पर कांग्रेस के पास समाज के इन तबकों के नेता ही नहीं हैं. अब बिना चेहरे के उन बिरादरी के वोटरों को कैसे जोड़ा जाए! कांग्रेस इन दिनों इसी पर होम वर्क कर रही है. कांग्रेस ने दूसरी पार्टियों से इन बिरादरी के नेताओं को तोड़ने की रणनीति बनाई है.कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व अगला लोकसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के साथ मिल कर लड़ना चाहती है. लेकिन पार्टी के प्रदेश इकाई के लोग तो समाजवादी पार्टी तोड़ने में ही जुट गए हैं.


यूपी में कांग्रेस की नज़र पिछड़ों में कुर्मी वोटर पर है. राज्य में क़रीब छह प्रतिशत इस बिरादरी के वोटर है. यादवों के बाद राजनैतिक रूप से सबसे अधिक प्रभावशाली इसी जाति के वोटर हैं. अलग अलग इलाक़ों में इस बिरादरी के अलग अलग बड़े नेता हैं. इस समाज का कभी भी कोई सर्वमान्य नेता नहीं रहा. जैसे यादव समाज के लोग मुलायम सिंह और फिर अखिलेश यादव के साथ रहे. राजभर बिरादरी के वोटर ओम प्रकाश राजभर को नेता मानते हैं. संजय निषाद मल्लाह जाति के लोगों के नेता होने का दावा करते हैं.

कुर्मी वोट से बनेगी कांग्रेस की बात?
कांग्रेस ने यूपी में समाजवादी पार्टी के कुर्मी नेताओं को तोड़ने का अभियान चला रखा है. पहले रवि प्रकाश वर्मा को पार्टी में शामिल किया गया. फिर आज एक और मजबूत चेहरा प्रमोद पटेल कांग्रेसी बन गए. वे जंग बहादुर पटेल के बेटे हैं. फूलपुर लोकसभा सीट से जंग बहादुर दो बार सांसद रहे. वे समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य थे. रवि प्रकाश वर्मा की तरह वे भी मुलायम सिंह के करीबी सहयोगी रहे. समाजवादी पार्टी छोड़ कर कांग्रेस में आने के बाद प्रमोद पटेल ने कहा मुझे वहाँ घुटन हो रही थी. अखिलेश यादव से मिलना मुश्किल था. हम लोग तो नेताजी के कारण इस पार्टी में थे.

समाजवादी पार्टी छोड़ने के बाद पूर्व सासंद रवि प्रकाश वर्मा ने भी यही कहा था. वर्मा समाजवादी पार्टी में राष्ट्रीय महासचिव थे. पार्टी छोड़ने के बाद इन नेताओं का अखिलेश पर नेतृत्व क्षमता की कमी का आरोप लगाना एक राजनैतिक संदेश भी है. ऐसे में क्या कांग्रेस और समाजवादी पार्टी में गठबंधन संभव है!

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