इंदौर न्यूज़ (Indore News)

सरकारी आयोजनों में लगने वाली बसों के भुगतान में घोटाला

  • नियमानुसार हर बस मालिक के खाते में दिया जाना चाहिए पैसा, लेकिन कुछ दलाल ठेकेदार बनकर ले रहे सभी बसों का भुगतान, सरकार से मिलने वाली राशि में से काट रहे कमीशन

इन्दौर। सरकारी आयोजनों में लोगों को लाने ले जाने के लिए लगने वाली बसों को किए जाने वाले किराए के भुगतान में घोटाला हो रहा है। यह राशि सीधे बस मालिकों के खातों में आने के बजाए कुछ दलालों के खातों में जा रही है और इसमें परिवहन विभाग के अधिकारी ही उनका साथ दे रहे हैं। 11 फरवरी को झाबुआ में होने वाला आयोजन के लिए लगने वाली 200 बसों को लेकर भी यही स्थिति बन रही है। सरकारी राशि के भुगतान में लंबे समय से चले आ रहे इस घोटाले की शिकायत बस संचालकों ने आरटीओ से की है।

प्राइम रूट बस ऑनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष गोविंद शर्मा ने बताया कि किसी भी सरकारी आयोजन में लोगों के आने-जाने की व्यवस्था के लिए जिला प्रशासन के आदेश पर परिवहन विभाग द्वारा बसों का अधिगृहण किया जाता है। सरकारी दर से इन्हें किराया दिया जाता है। नियमानुसार जिस बस संचालक से बस ली गई है, यह राशि उसी के खाते में ट्रांसफर की जाना चाहिए, लेकिन पिछले कुछ समय से आरटीओ के कुछ बाबुओं के एवजी और कुछ बस संचालक बसें उपलब्ध करवाने वाले ठेकेदार बन गए हैं। जब भी ऐसे किसी आयोजन के लिए बसें चाहिए होती हैं तो ऐसे ठेकेदार ही बसों का इंतजाम परिवहन विभाग की धौंस के साथ बस संचालकों से करते हैं। इसके बाद ये ठेकेदार सरकार से मिलने वाली राशि में से 20 प्रतिशत तक काटकर बस संचालकों को देते हैं और उन्हें सरकार से मिलने वाली राशि की भनक तक नहीं लगने देते हैं। किसी बस संचालक द्वारा ज्यादा पूछताछ करने या आपत्ति लेने पर उसकी बस जब्त करने से लेकर परमिट निरस्त करने तक की धमकी दी जाती है।

विभाग के बाबुओं की मिलीभगत से चल रहा खेल
शर्मा ने आरोप लगाया है कि बसों के अधिगृहण के बाद जब सरकार भुगतान करती है तो 100-100 से ज्यादा बसों का पैसा एक से दो लोगों के खाते में डलवाया जाता हैं। इसमें परिवहन विभाग के बाबुओं की भी मिलीभगत होती है, क्योंकि एक ही ऑपरेटर के पास जब इतनी बसें नहीं है तो एक ही के खाते में इतनी बसों का किराया क्यों डाला जा रहा है। इस विशेष व्यवस्था के लिए बाबुओं की जेब भी भरी जाती है। शर्मा ने बताया कि 11 फरवरी को झाबुआ में होने वाली सभा के लिए भी 200 बसें मांगी गई हैं और इसमें भी यही खेल चल रहा है। सरकार की ओर से इसके लिए जहां करीब 22 हजार की राशि तय की है, वहीं बस संचालकों को 18 हजार देने की ही तैयारी है। उन्होंने आरटीओ से शिकायत करते हुए पुराने मामलों की भी जांच कर कार्रवाई और इस गड़बड़ी को रोकने की बात कही है।

सारे पैसों का हिसाब जांच सकते हैं ऑपरेटर्स
इस संबंध में आरटीओ प्रदीप शर्मा ने कहा कि अक्सर सरकारी आयोजनों में बसों की डिमांड काफी कम समय पहले मिलती है और तुरंत सरकार द्वारा डिमांड लेटर भी मांगा जाता है। इसके लिए अलग-अलग बस ऑपरेटर्स से लेटर्स लेना मुश्किल होता है। ऐसे में कुछ बड़े ऑपरेटर्स से लेटर लेकर उन्हें बसों के इंतजाम का जिम्मा दिया जाता है। अक्सर जब राशि आती है तो डिमांड की अपेक्षा कम होती है, साथ ही इसमें से जीएसटी और टीडीएस भी काटा जाता है। कई बार राशि बकाया भी रहती है। ऐसे में कुछ ऑपरेटर्स को लगता है कि पूरी राशि आने के बाद भी उन्हें कम दी जा रही है, जबकि ऐसा नहीं है। कोई भी ऑपरेटर आकर हर आयोजन के लिए आई राशि का हिसाब देख सकता है। अगर फिर भी कोई आपत्ति है तो निष्पक्ष जांच करवाई जाएगी।

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