खरी-खरी

सुंदर चेहरे पर खौफ के निशान… मुख्यमंत्रीजी गले लगाकर ढांढ़स बंधाइए… कल को हम देख चुके…आज का दर्द मिटाइए

इंदौर कल, आज और कल… का आईना दिखाने के लिए मुख्यमंत्री आज मजमा जुटाएंगे… शहर के प्रबुद्धजनों को बुलाएंगे, अपनी बात आम लोगों तक पहुंचाएंगे… कल की कांग्रेस की बिगड़ी तस्वीर दिखाएंगे और भाजपा की बनाई तदबीर का आईना बताएंगे… बीतें सालों में भाजपा ने शहर को अंधेरे से निकाला… उजाले की ओर बढ़ाया… सडक़ों का जाल बिछाया… उद्योगों का विस्तार… लोक परिवहन की रफ्तार… व्यवस्थाओं का अंबार… तालाबों की गहराइयां… और अब तो शहर की गति में मेट्रो भी हुई शुमार… मुख्यमंत्रीजी आपके पास कहने को बहुत कुछ है, लेकिन लगता है अब करने के लिए कुछ खास बचा नहीं है… अपने सपनों के शहर की ताबीर के लिए मुख्यमंत्री ने दिल खोलकर हाथ फैलाए… अधिकारियों को अधिकार दिलाए और हर काम अंजाम देने के रास्ते सुझाए… राजधानी से इंदौर का सीधा ताल्लुक वह गति दे पाया जिससे आज इंदौर स्वच्छता में अव्वल आया… अब शहर में सडक़ों पर कचरे का नामोनिशान नहीं रहता है… जो कचरा निकलता है उसका निपटान होता है… आवारा पशु दूर-दूर तक नजर नहीं आते हैं… शहर स्वच्छता तक ही नहीं सिमटा, सुंदरता के लिए भी कदम बढ़ाते शहर की दीवारों पर उभरी तस्वीरें विकास की गाथाएं सुनाती हैं… यह सब बातें 15 वर्ष पूर्व कल्पना से बाहर थीं… इकलौते राजकुमार ब्रिज को बनने में दस साल लग गए… तब भी पुल नहीं खंभे गड़े थे… भाजपा ने बीते 15 सालों में पुलों को रफ्तार देते हुए शहर के हर कोने में ब्रिजों का जाल बिछाया… स्मार्ट सिटी के दायरे को हद तक निभाया… सिकुड़े-सिमटे मध्य क्षेत्र की सडक़ों को चौड़ा बनाया… इंदौर शहर में हुआ विकास गौरव की बात है… अब जब कोई हमारे विकास और स्वच्छता का बखान सुनाता है तब शहर के लोगों का सीना देशभर के सामने चौड़ा हो जाता है… विकास को लेकर तो जनता आश्वस्त है, लेकिन मुख्यमंत्रीजी अब आवश्यकता है इस विकास के लिए चुकाई जाने वाली कीमत पर राहत पहुंचाने की… जो लोग अपने शहर के विकास के लिए उजड़े हैं उन पर मरहम लगाने की… जो लोग सहमे हुए हैं उन्हें ढांढ़स बंंधाने की… जो लोग सकुचाए हैं उन्हें पास बुलाने की… विकास के लिए बरती कठोरता से कुछ लोग आहत हैं तो भविष्य को लेकर कई लोग खौफजदा भी हैं… ऐसे लोगों की पीठ पर हाथ धरना होगा… बहते आंसुओं को हथेली पर समेटना होगा… विकास की सार्थकता तब नजर आएगी जब विनाश की लकीरें मिट पाएंगी… लोगों के दिलों को राहत मिल पाएगी… बीते दो सालों में निगम में कोई जनप्रतिनिधि नहीं रहा… इन सालों में लोगों ने कोरोना की यातनाओं को सहा… व्यापार-कारोबार ठप हो गए… मंदी के चलते कई बेरोजगारी की भेंट चढ़ गए… ऐसे में सपनों के लिए संघर्ष करते शहर में लोगों ने ख्वाबों को ताबीर देने के लिए जी-जान लगाई… लोग अपना घर बनाना चाहते हैं लेकिन नक्शा पास कराने की कीमत चुका नहीं पाते हैं… संपत्ति कर की बढ़ती दरें डरा रही हैं… अब मुआवजे के मरहम से लेकर करों में रियायत की दरकार नजर आ रही है… कल को हम देख चुके, आने वाले कल को सुंदर बनाइए… कुछ तो आश्वासन देकर जाइए…

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