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सुप्रीम कोर्ट की गंभीर टिप्पणी, कहा- सत्ता बदलने पर राज्यों में राजद्रोह के मामले दर्ज होना दुर्भाग्यपूर्ण

नई दिल्ली। राजद्रोह व आय से अधिक संपत्ति के मामले में छत्तीसगढ़ के निलंबित अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (एडीजीपी) गुरजिंदर पाल सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए देश की शीर्ष अदालत ने गुरुवार को अधिकारी-राजनेता गठजोड़ पर चिंता जताई और गंभीर टिप्पणी की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्थिति दुखद है। ऐसे पुलिस अधिकारी जो सत्ताधारी दल के साथ काम करते हैं, उन्हें विपक्षी दल की सत्ता आने पर निशाना बनाया जाता है। देश में स्थिति दुखद है और पुलिस विभाग भी इसके लिए जिम्मेदार है। यह चलन रोकना होगा। याचिका में सिंह ने उनके खिलाफ दर्ज राजद्रोह और आय से अधिक संपत्ति के मामलों में राहत की गुहार लगाई थी।

कोर्ट ने याचिकाओं पर छत्तीसगढ़ सरकार को नोटिस जारी करते हुए सिंह की गिरफ्तारी पर अगले आदेश तक रोक लगा दी है। हालांकि कोर्ट ने सिंह से कहा है कि वह जांच में भाग लेंगे और पूरा सहयोग करेंगे। यह आदेश प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना और जस्टिस सूर्य कांत की पीठ ने सिंह के वकील की दलीलें सुनने के बाद दिए। बता दें, गुरजिंदर पाल सिंह पर छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार के खिलाफ षडयंत्र रचने, समुदायों के बीच वैमनस्य फैलाने के लिए राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया है। उन पर आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने का मामला भी है। सिंह फिलहाल निलंबित हैं।

निलंबित पुलिस अधिकारी सिंह की ओर से सुप्रीम कोर्ट में उपरोक्त मामलों में राहत के लिए दो याचिकाएं दाखिल की गई हैं। कोर्ट ने दोनों ही मामलों में छत्तीसगढ़ सरकार को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब मांगा है। याचिकाकर्ता सिंह की ओर से पेश वरिष्ठ वकील फली नरीमन ने कहा कि याचिकाकर्ता छत्तीसगढ़ में एडीजीपी रह चुके हैं और पुलिस अकादमी के निदेशक पद पर काम कर रहे थे। इनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) की धारा 124-ए (राजद्रोह) और 153-ए (समुदायों में वैमनस्य फैलाना) में कार्यवाही शुरू हुई है।


नरीमन की दलील पर प्रधान न्यायाधीश रमना ने देश में शुरू हुए इस नए चलन पर नाखुशी और चिंता जताते हुए बेहद सख्त टिप्पणी की और पुलिस विभाग को भी जिम्मेदार बताया। बहस जारी रखते हुए नरीमन ने कहा कि हिरासत में लेकर पूछताछ करने की जरूरत नहीं है क्योंकि आरोपपत्र दाखिल हो चुका है। यह भी कहा कि एक बार इस अधिकारी को मुख्यमंत्री ने बुलाया था और पूर्व मुख्यमंत्री के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने में मदद करने को कहा था।

दूसरी ओर, छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से पेश वकील मुकुल रोहतगी ने गिरफ्तारी पर रोक का विरोध करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता राज्य पुलिस एकेडमी के मुखिया थे, लेकिन इनका आचरण देखो कि यह फरार हैं। ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तारी से राहत और संरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए। छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से पेश एक अन्य वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि जांच एजेंसी ने उनके पास ज्ञात स्त्रोत से नौ गुना ज्यादा संपत्ति पाई है। इस पर पीठ ने कहा कि हम राजद्रोह के आरोपों की जांच करेंगे। यह बहुत खराब चलन शुरू हुआ है।

कोर्ट ने नरीमन से कहा कि आप यह न कहें कि आपका मुवक्किल (सिंह) बहुत निष्पक्ष था, आपके मुवक्किल ने जरूर उस वक्त की सरकार के निर्देश पर काम किया होगा। गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने सिंह की राजद्रोह का मुकदमा रद करने की मांग खारिज कर दी थी, जिसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की। इस पर छत्तीसगढ़ सरकार ने कैविएट दाखिल की थी ताकि उसका पक्ष सुने बगैर कोई आदेश न दिया जाए। सिंह ने राजद्रोह का मामला केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआइ) या किसी निष्पक्ष जांच एजेंसी को देने की मांग की है।

छत्तीसगढ़ की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा ने सिंह के यहां छापा मारने के बाद बरामद आय से अधिक संपत्ति पर मामला दर्ज किया था। उनके घर से करीब 10 करोड़ की संपत्ति बरामद होने का आरोप है। गत पांच जुलाई को सिंह को पुलिस अकादमी के निदेशक पद से निलंबित कर दिया गया था। मामले में दर्ज प्राथमिकी के मुताबिक सिंह के सरकारी आवास के पीछे आंगन से कुछ फटे हुए कागज बरामद हुए थे, जिन्हें जोड़े जाने पर गंभीर और संवेदनशील बातें लिखी और टाइप पाई गईं। उन कागजों में प्रतिष्ठित राजनीतिक दल के नेताओं के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी और साजिश लिखी पाई गई।

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