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ठाकरे फैमिली पर नरम, उनके समर्थकों पर गरम…शिंदे का ये रुख दांव या मजबूरी?

नई दिल्ली: महाराष्ट्र की सत्ता पर काबिज मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और शिवसेना के प्रमुख उद्धव ठाकरे के बीच शह-मात का खेल अभी थमा नहीं है. विधानसभा में विश्वासमत प्रस्ताव जीतने के बाद एकनाथ शिंदे गुट उद्धव खेमे के शिवसेना विधायकों को व्हिप का पालन न करने के लिए अयोग्य घोषित कराना चाहता है, लेकिन पार्टी विधायक आदित्य ठाकरे को इस कार्रवाई से बाहर रखा गया है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्या वजह है कि शिंदे गुट आदित्य ठाकरे के खिलाफ सीधे एक्शन लेने से बच रहा है?

बता दें कि शिवसेना विधायक दो गुटों में बंट गए हैं. शिवसेना के दो तिहाई विधायक एकनाथ शिंदे के साथ हैं तो करीब 15 विधायक उद्धव गुट के साथ मजूबती से खड़े हैं. विधानसभा में बहुमत परीक्षण के दौरान उद्धव खेमे के 15 विधायकों ने शिंदे के खिलाफ सदन में वोटिंग की थी, जिसके चलते शिवसेना के मुख्य सचेतक भरत गोगावले ने आदित्य ठाकरे को छोड़कर 14 विधायकों को नोटिस भेज दिया है. शिंदे गुट का आरोप है कि उद्धव खेमे के इन विधायकों ने व्हिप का पालन न करते हुए बीजेपी-शिंदे सरकार के खिलाफ मतदान किया.

आदित्य ठाकरे को नहीं दिया नोटिस
हालांकि, शिंदे खेमे ने व्हिप का पालन न करने के लिए आदित्य ठाकरे को नोटिस नहीं दिया जबकि सदन में उन्होंने सरकार के खिलाफ वोटिंग की थी. नोटिस में आदित्य ठाकरे का नाम शामिल न करने की वजह भी शिंदे गुट ने स्पष्ट की है. पार्टी के चीफ व्हिप भरत गोगावले ने कहा कि बाला साहेब ठाकरे के प्रति सम्मान की वजह से उनके पोते आदित्य ठाकरे का नाम इस सूची में नहीं डाला गया है.

गोगावले ने कहा कि अगर नोटिस पाने वाले 14 विधायकों ने उचित जवाब पेश नहीं किया तो उन्हें विधायक पद से अयोग्य ठहराने की कार्रवाई शुरू कर दी जाएगी. शिंदे गुट भले ही यह बात कह रहा हो कि बाला साहेब ठाकरे की वजह से आदित्य ठाकरे की सदस्यता को खत्म करने का चैलेंज न किया हो, लेकिन इसके पीछे उनका सियासी मकसद छिपा हुआ है.


शिंदे गुट ने उद्धव खेमे के 14 विधायकों पर कार्रवाई के लिए नोटिस देकर दबाव बनाने का दांव चला है तो आदित्य ठाकरे को इस फेहरिश्त से बाहर रखकर फिलहाल किसी तरह का कोई मौका उद्धव ठाकरे के हाथों में नहीं देना चाहता है. बीजेपी इस सत्ता संघर्ष में एकनाथ शिंदे के साथ खड़ी है और उद्धव ठाकरे के खिलाफ सख्त रुख बना रखा है, जिसके चलते शिंदे गुट का सियासी वजन बढ़ गया है. वहीं, सत्ता में रहने और अपने वैचारिक विरोधी दलों के साथ गठबंधन करने से शिवसेना की आक्रमक और विरोध की राजनीति की धार कमजोर हुई है.

ठाकरे परिवार से क्यों नहीं टकराना चाहते शिंदे?
राजनातिक विश्लेषकों की मानें तो उद्धव ठाकरे के खिलाफ तख्तापलट कर सत्ता पर भले ही एकनाथ शिंदे काबिज हो गए हों, लेकिन ‘ठाकरे परिवार’ से सीधे टकराव नहीं चाहते हैं. इतना ही नहीं उद्धव गुट को किसी तरह से सहानुभूति लेने और मराठा कार्ड खेलने का कोई मौका नहीं देना चाहते हैं. यही वजह है कि शिंदे गुट ने विधायक आदित्य ठाकरे की सदस्यता खत्म करने के लिए किसी तरह का कोई चैलेंज नहीं किया.

दरअसल, एकनाथ शिंदे ने भले ही उद्धव ठाकरे से सत्ता छीनी हो, लेकिन अभी भी बाला साहेब ठाकरे के नाम पर सियासत करते नजर आ रहे हैं. शिंदे ने बार-बार कहा कि उद्धव ठाकरे हिंदुत्व के एजेंडे से हट गए हैं और उनके नेतृत्व में बाला साहेब ठाकरे के आदर्शों से शिवसेना भटक गई है. ऐसे में हम हिंदुत्व की बहाली और बाला साहेब के विचारों को लागू करना चाहते हैं, जिसे उद्धव ने एनसीपी-कांग्रेस के साथ रहकर बिगाड़ दिया है. ऐसे में साफ है, महाराष्ट्र में जितनी कुर्सी की लड़ाई दिखती है, उससे अधिक वह एक विचारधारात्मक लड़ाई भी रही है, जिसके केंद्र में बाला साहेब वाला ‘हिंदुत्व’ है और अब उसी ने पलटकर उद्धव को हराया और हटाया है.

उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे ने पिछले कुछ साल में खासकर पिछले ढाई साल में शिवसेना का मूल स्वभाव बदलने की कोशिश की है. उद्धव-आदित्य के नेतृत्व में शिवसेना विकास, गवर्नेंस, पर्यावरण संरक्षण, शहर विकास को अपनी नई पहचान बनाने की कोशिश की. वहीं, एनसीपी-कांग्रेस के साथ सत्ता में रहने के कारण शिवसेना ने अपनी पुरानी वैचारिक भावनात्मक अपील काफी हद तक गंवा दी और गैर-मराठियों के खिलाफ आंदोलन की धार शांत हो गई है.


पिछले कुछ साल से उद्धव अपने बेटे आदित्य ठाकरे को स्थापित करने में लगे हैं. पिछली सरकार में आदित्य ठाकरे मंत्री भी थे. ठाकरे परिवार सत्ता में रहा, तब तक ये बदलाव पार्टी ने झेल लिया. लेकिन अब ये शायद ही हो पाएगा. शिंदे गुट अब इसी के चलते उद्धव ठाकरे को किसी तरह का कोई सियासी मौका भी नहीं देना चाहते हैं, जिससे शिवसेना को दोबारा से वो सियासी संजीवनी दे सकें और अपनी सियासत को जिंदा कर सकें.

सत्ता में रहने के चलते शिवसेना वैचारिक और भावनात्मक मुद्दों पर शून्य का शिकार बन गई. उसकी कोई वैचारिक पहचान पर भी संकट गहराया हुआ है. शिवसेना के दो तिहाई विधायक शिंदे के साथ चले गए हैं, जो उद्धव ठाकरे के साथ बचे हैं वो सभी मुंबई से हैं. शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे, उनके बेटे बाल ठाकरे, शिवसेना के तमाम बड़े नेता जैसे अनिल परब से लेकर सुभाष देसाई, संजय राउत, अनिल देसाई, वरुण सरदेसाई यह सभी मुंबई के हैं.

शिवसेना का सियासी आधार मुंबई से बाहर ठाणे, कल्याण, विदर्भ, उत्तरी महाराष्ट्र और कोंकण के इलाके में था. इन इलाकों के नेता साथ उद्धव को छोड़कर शिंदे के साथ हो गए हैं. ऐसे में साफ संकेत है कि उद्धव की शिवसेना मुंबई तक सिमट गई है. इस तरह शिंदे गुट उद्धव ठाकरे को खुलकर सियासत खेलने का कोई मौका नहीं देना चाहता है, जिससे उद्धव-आदित्य ठाकरे फिर से वैचारिक भावनात्मक जमीन मिल जाए जिसकी कमी उनके गुट को है. इसीलिए शिंदे गुट फूंक-फूंककर कदम बढ़ा रहा है.

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