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सौर ऊर्जा में छिपा आत्मनिर्भर भारत का सपना

– सियाराम पांडेय ‘शांत’

आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के लिए ऊर्जा बहुत जरूरी है। कोयले और जल से प्राप्त बिजली ही देश को आत्मनिर्भर बनाने में सहायक नहीं है। इन दोनों ही संसाधनों से विद्युत उत्पादन में रेडिएशन और प्रदूषण का खतरा भी कम नहीं। देश की बढ़ती आबादी और कारोबारी संभावनाओं के मद्देनजर वैकल्पिक ऊर्जा के स्रोत की तलाश बहुत पहले ही आरम्भ हो गई थी और कहना न होगा कि अपनी इस तलाश में भारत न केवल सफल हुआ बल्कि स्वच्छ और किफायती ऊर्जा बनाने के मामले में उसने दुनिया के शक्तिशाली देशों को भी बहुत पीछे छोड़ दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगर यह कह रहे हैं कि सुरक्षित विश्व की नींव रीवा में पड़ी है तो पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से वह उचित ही है। इस बात को कुछ लोग अतिशयोक्ति के चश्मे से देख सकते हैं लेकिन मध्य प्रदेश के रीवा जिले में एशिया के सबसे बड़े 750 मेगावाट क्षमता के सौर ऊर्जा संयंत्र का शुभारंभ भारत की ऐतिहासिक उपलब्धि है। चार हजार करोड़ की लागत से बने इस सौर ऊर्जा संयंत्र की स्थापना से रीवा, सफेद बाघ और नर्मदा के लिए ही नहीं, सौर पार्क के लिए भी पूरी दुनिया में जाना जाएगा। यहां उत्पन्न होने वाली वैकल्पिक, स्वच्छ और सस्ती सौर ऊर्जा का लाभ मध्य प्रदेश ही नहीं, दिल्ली मेट्रो को भी मिलेगा।

बकौल प्रधानमंत्री, भारत स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में सर्वाधिक आकर्षक विश्व बाजार के रूप में उभरा है। सौर ऊर्जा भरोसेमंद, शुद्ध और सुरक्षित है। भारत अब दुनिया के सौर ऊर्जा उत्पादक शीर्ष पांच देशों में शामिल हो गया है। इससे बड़ी उपलब्धि और प्रसन्नता की बात किसी देश के लिए भला और क्या हो सकती है। रीवा सौर पार्क को मध्य प्रदेश ऊर्जा विकास निगम लिमिटेड और सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया के संयुक्त उपक्रम रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर द्वारा विकसित किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगर यह विश्वास दिलाया है कि इस संयंत्र के सुचारू संचालन के साथ ही मध्य प्रदेश साफ-सुथरी और सस्ती बिजली का हब बन जाएगा। इससे किसानों, मध्यम और गरीब परिवारों और आदिवासियों को फायदा होगा।

रीवा सौर ऊर्जा संयंत्र स्वच्छ प्रौद्योगिकी कोष से 0.25 फीसदी ब्याज पर 40 साल की अवधि के लिए प्राप्त धन से तैयार भारत की पहली सौर ऊर्जा परियोजना है। यह भारत का पहला सोलर पार्क है जिसे विश्व बैंक से रियायती ऋण मिला है। इस परियोजना से राज्य डिस्कॉम को 4600 करोड़ रुपये और दिल्ली मेट्रो को 1400 करोड़ रुपये की बचत होगी, ऐसा दावा किया जा रहा है। रीवा परियोजना में 250-250 मेगावॉट की तीन सौर उत्पादक इकाइयां हैं और यह सौर पार्क के अंदर 500 हेक्टेयर की जमीन पर स्थापित हैं। अल्ट्रा मेगा सौर ऊर्जा संयंत्र के निर्माण के लिए 1542 हेक्टेयर भूमि उपलब्ध कराई गई है। जिसमें 1276.546 हेक्टेयर वन भूमि अधिग्रहीत की गई है, शेष निजी भूमि है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अगर यह कह रहे हैं कि विभिन्न सौर ऊर्जा परियोजनाओं के जरिये मध्य प्रदेश भविष्य में 10 हजार मेगावॉट बिजली का उत्पादन करेगा और आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में अहम योगदान देगा तो इससे उनके आत्मविश्वास और देश को आगे ले जाने की भावना ही झलकती है। शाजापुर, नीमच और छतरपुर में भी बड़े सोलर पावर प्लांट पर काम चल रहा है। ओमकारेश्वर बांध पर तैरने वाला सौर ऊर्जा संयंत्र लगा है, यह इस बात का द्योतक है कि सौर ऊर्जा के क्षेत्र में प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने की बड़ी सोच के तहत यह सब किया जा रहा है।

सौर ऊर्जा को श्योर, प्योर और सिक्योर बताते हुए प्रधानमंत्री ने जो वजह बताई हैं,वे पूर्णतया वाजिब है। सूर्य हमेशा चमकता रहेगा। उससे इस देश को हमेशा ऊर्जा मिलती रहेगी। इससे पर्यावरण पूरी तरह से सुरक्षित और साफ-सुथरा बना रहेगा। इससे बिजली की जरूरत को आसानी से पूरा किया जा सकेगा। प्रधानमंत्री ने वन वर्ल्ड, वन सन, वन ग्रिड की बात कहकर पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है। रीवा के गुढ़ में स्थापित इस सौर ऊर्जा संयंत्र परियोजना से पैदा हुई बिजली का 76% हिस्सा प्रदेश की पावर मैनेजमेंट कंपनी और 24% दिल्ली मेट्रो को मिल रहा है। 2 रुपए 97 पैसे प्रति यूनिट बिजली मिलना, इस परियोजना की बड़ी खासियत है। रीवा सौर परियोजना से हर साल 15.7 लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड का उर्त्सजन रुकेगा। जाहिर है, इन अपर संभावनाओं को देखता हुए इस क्षेत्र में विदेशी निवेश में भी बढ़ोतरी होगी।

इसमें शक नहीं कि वर्ष 2015 से 2017 की अवधि में भारत में सौर ऊर्जा का उत्पादन अपनी स्थापित क्षमता से 4 गुना बढ़कर 10 हजार मेगावाट पार कर गया था। यह देश में बिजली उत्पादन की स्थापित क्षमता का 16 फीसदी है। यह ऊर्जा संरक्षण और उसके विकल्पों पर भी तेजी से काम करने का संकेत है। सरकार पवन ऊर्जा के इस्तेमाल पर भी जोर दे रही है। वर्ष 1986 में देश में पवन ऊर्जा बनाने की पहल हुई थी। 55 किलोवाट क्षमता के पवन ऊर्जा संयंत्र महाराष्ट्र, गुजरात और तमिलनाडु में लगाए गए थे। मौजूदा समय में देश के दक्षिणी, पश्चिमी और उत्तरी क्षेत्रों में लगभग 24,759 मेगावाॅट पवन ऊर्जा उत्पन्न हो रही है। मध्य प्रदेश में भी पवन ऊर्जा उत्पादन पर काम चल रहा है। भारत पवन ऊर्जा उत्पादन में चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी के बाद चौथे स्थान पर है। आगामी 5 वर्षों में देश अक्षय उर्जा के उपयोग में काफी आगे रहेगा । वर्ष 2030 तक भारत में क्लीन उर्जा का उपयोग आज से 60 फीसदी अधिक होने के आसार हैं।

फिलहाल क्लीन एनर्जी के उत्पादन पर देश जिस तरह आगे बढ़ रहा है,उससे 2050 तक बिजली के स्रोतों पर निर्भरता घट जाएगी। कर्नाटक अक्षय ऊर्जा उत्पादन के मामले में भारत का अग्रणी राज्य है जहां गत वर्ष तक उसकी कुल स्थापित अक्षय ऊर्जा क्षमता 12.3 गीगावॉट हो गई थी। वर्ष 2035 तक देश में सौर ऊर्जा की मांग 7 गुना बढ़ने की संभावना है। भारत सरकार 2022 तक देश में 170 गीगावाट (1.70 लाख मेगावाट) अक्षय ऊर्जा उत्पादन करना चाहती है इसमें से 100 गीगावाट सोलर पावर का लक्ष्य है। 31 दिसंबर 2019 तक देश में लगभग 85908 मेगावाट क्षमता के अक्षय ऊर्जा परियोजनाएं स्थापित हो चुकी हैं। इनमें पवन ऊर्जा की उत्पादन क्षमता 37505 मेगावाट, सौर ऊर्जा की उत्पादन क्षमता 33730 मेगावाट शामिल है।

भारत के अक्षय ऊर्जा क्षेत्र पर कोरोना वायरस का भी प्रभाव पड़ा है। चीन और मलेशिया से आने वाले मॉड्यूल की आपूर्ति कोरोना की वजह से प्रभावित हुई है। लद्दाख की गलवां घाटी में हुए भारत-चीन सैन्य संघर्ष के बाद चीन से भारत के व्यापारिक रिश्ते प्रभावित हुए हैं। ऐसे में भारत को सौर ऊर्जा उपकरणों के देश में ही उत्पादित करने की रीति-नीति पर जोर देना होगा। कोरोना को अवसर में तब्दील करने का यही उपयुक्त समय है। हमें चीन पर निर्भरता घटाने के साथ ही अक्षय ऊर्जा संयंत्रों में लगने वाले उपकरण खुद बनाने होंगे। चीन अगर कम लागत के उपकरण बना सकता है तो भारत क्यों नहीं। हमें चीन से सीखना होगा। तकनीकी विकास से जुड़ना, वक्त का तकाजा है।

(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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