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तकनीक : क्या AI ने मेटावर्स की चमक फीकी की है ? जानिए

June 05, 2025

नई दिल्‍ली। जरा सोचिए आप अपने घर में सोफे पर बैठे हैं, और उसी वक्त न्यूयॉर्क (New york) में एक मीटिंग में हिस्सा ले रहे हैं, टोक्यो में किसी आर्ट गैलरी (Art gallery) में घूम रहे हैं और फिर दिल्ली में दोस्तों के साथ गपशप कर रहे हैं। यह न तो कोई सपना है और न ही कोई साइंस फिक्शन फिल्म का दृश्य, बल्कि हकीकत में संभव हो रहा है। यह मेटावर्स (Metaverse) है, जहां तकनीक के जरिये आप एक वर्चुअल दुनिया में दाखिल होते हैं।


मेटावर्स एक आभासी डिजिटल दुनिया का कॉन्सेप्ट है, जिसमें आप वर्चुअल अवतार बनकर घूम सकते हैं, लोगों से मिल सकते हैं। यह इंटरनेट का अगला संस्करण है, जहां लोग केवल स्क्रीन पर वेबसाइट नहीं देखते, बल्कि खुद एक आभासी दुनिया का हिस्सा बन जाते हैं।
मेटावर्स की अवधारणा सबसे पहले साइंस फिक्शन लेखक नील स्टीफेंसन ने 1992 में अपनी किताब स्नो क्रैश में दी थी, जिसमें उन्होंने एक ऐसी काल्पनिक दुनिया का खाका खींचा था, जहां लोग अपने घरों की चहारदीवारी में रहकर एक वर्चुअल रियलिटी में अपना जीवन जीते हैं। यह अवधारणा उस समय के मुताबिक भले ही काल्पनिक और दूर की बात लग सकती है, लेकिन तेजी से हो रही तकनीकी प्रगति ने इस कल्पना को सच कर दिखाया है। ग्रैंड व्यू रिसर्च के मुताबिक, साल 2024 तक वैश्विक मेटावर्स मार्केट करीब 105 अरब डॉलर था वहीं साल 2030 तक यह बाजार 11 खरब डॉलर तक पहुंच सकता है। अक्तूबर, 2021 में मार्क जुकरबर्ग ने मेटावर्स से प्रेरित होकर फेसबुक का नाम मेटा कर दिया और अपनी मेटावर्स यूनिट में करीब 10 अरब डॉलर से अधिक का निवेश किया।

रिपोर्टों के मुताबिक, गेमिंग एप्लिकेशन मेटावर्स बाजार का सबसे बड़ा हिस्सा है। रोब्लोक्स, एपिक गेम जैसी कंपनियों ने इस क्षेत्र में भारी निवेश किया है। हाल में ही लाइफस्टाइल ब्रांड नाइके ने रोब्लोक्स पर नाइकलैंड नाम से एक वर्चुअल स्थान बनाया था, जिसके कुछ ही महीनों में साठ लाख से अधिक उपयोगकर्ता हो गए। साल 2024 में मेटा ने विक्ट्रीएक्सआर के साथ मिलकर यूरोप के विश्वविद्यालयों के डिजिटल ट्विन वर्चुअल कैंपस तैयार किए हैं, जिनके जरिये छात्र रिमोट क्लास ले सकते हैं। स्वास्थ्य क्षेत्र में भी कंपनियां वीआर तकनीक पर आधारित टेलीहेल्थ सेवाएं दे रही हैं, जहां मरीज का वर्चुअल वातावरण में इलाज किया जा रहा है। कई बड़े ब्रांड्स जैसे गुची, वालमार्ट, कोका-कोला ने मेटावर्स में वर्चुअल शोरूम बनाए हैं। कंसल्टिंग फर्म मैकिन्जी के मुताबिक, मेटावर्स आधारित ई-कॉमर्स साल 2030 तक 25 खरब डॉलर तक पहुंच सकता है। वहीं मेटावर्स पर लोग एनएफटी के जरिये लोग डिजिटल संपत्तियों में भी निवेश कर रहे हैं।

मार्केट रिसर्च फ्यूचर संस्था के अनुसार, 2025 में भारत का मेटावर्स बाजार करीब नौ अरब डॉलर का है, जो 2034 तक बढ़कर 167 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। इलेक्ट्रॉनिक्स एवं आईटी मंत्रालय ने एआई, वीआर तकनीकों के स्टार्टअप संवर्धन के लिए एक्स आर स्टार्टअप प्रोग्राम की शुरुआत की है, जिसमें अमेरिकी कंपनी मेटा भी सहभागिता कर रही है। अफैक्स डॉट कॉम की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बीते साल युग मेटावर्स नामक एक प्लेटफॉर्म पर एक कपल ने शादी भी की थी, जिसने काफी सुर्खियां बटोरी थीं। अगले कुछ वर्षों में बड़े मंदिरों और ऐतिहासिक जगहों के भी वर्चुअल मेटावर्स बनाने पर काम किया जा रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में आईआईटी गुवाहाटी द्वारा वीआर प्लेटफॉर्म ज्ञानधारा को केंद्र और राज्य सरकार के सहयोग से पीएम श्री स्कूलों में लागू किया जा रहा है।

हालांकि, भारत में 60 प्रतिशत से अधिक उपयोगकर्ता शहरी क्षेत्रों से हैं, जबकि ग्रामीण भारत में वीआर, एआर तकनीक और हाई स्पीड इंटरनेट की पहुंच सीमित है। ट्राई ने अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया है कि ग्रामीण एवं दूरदराज क्षेत्रों में पर्याप्त बैंडविड्थ के बिना मेटावर्स तक पहुंच मुमकिन नहीं होगी। वहीं एआर, वीआर हेडसेट, इमर्सिव डिस्प्ले और अन्य हार्डवेयर काफी महंगे हैं। हाल ही में ब्रिटेन में एक 16 वर्षीय लड़की के साथ वर्चुअल वातावरण में उत्पीड़न का मामला सामने आया, जिसने मेटावर्स में सुरक्षा और निगरानी के गंभीर सवाल खड़े किए हैं।

कोविड महामारी के समय जब सभी लोग अपने घरों में कैद थे, तब दुनिया की सभी दिग्गज कंपनियां मेटावर्स में भारी निवेश को लेकर उत्साहित थीं। लेकिन आंकड़े दर्शाते हैं कि मार्क जुकरबर्ग की मेटा की रियलिटी लैब्स ने 2020 से अब तक करीब 60 अरब डॉलर से अधिक का नुकसान उठाया है। एआई और मशीन लर्निंग, जो पहले से ही मेटावर्स के मुकाबले ज्यादा प्रभावी साबित हो रहे हैं, जिसके कारण कंपनियों ने इस मेटावर्स के मुकाबले एआई पर अपना निवेश बढ़ा दिया है। इन तमाम संभावनाओं और चुनौतियों के बावजूद मेटावर्स निस्संदेह एक उभरती हुई अवधारणा है।

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