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पाकिस्तान के बलूचिस्तान में आतंकी हमला, मारे गए 10 सैनिक

इस्‍लामाबाद । पाकिस्‍तान (Pakistan) के बलूचिस्‍तान प्रांत (Balochistan) में बड़ा आतंकी हमला (Terrorist Attack) हुआ है. इस आतंकी हमले में 10 जवानों के मारे जाने की खबर मिली है. इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (ISPR) के महानिदेशक मेजर जनरल बाबर इफ्तिखार ने बताया कि गुरुवार को बलूचिस्‍तान के केच जिले में एक सुरक्षा जांच चौकी पर पर आतंकवादियों ने गोलीबारी कर दी. इस हमले में 10 जवान मारे गए हैं. सेना के मीडिया विंग (Army Media Wing) ने एक बयान में कहा कि यह घटना 25 से 26 जनवरी की रात की है, जिसमें एक आतंकवादी मारा गया और कई अन्य घायल हो गए.

‘डॉन’ वेबसाइट की खबर के मुताबिक सुरक्षाबलों ने इस हमले में शामिल तीन आतंकवादियों को पकड़ लिया है, जबकि वे अभी भी घटना के पीछे शामिल अन्‍य आतंकियों की तलाश में जुटे हुए हैं. बयान में कहा गया है सशस्त्र बल हमारी धरती से आतंकवादियों को खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, चाहे कुछ भी कीमत क्यों न हो. तालिबान का अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज होना पाकिस्तान के लिए बुरा साबित हो रहा है. पाकिस्तान इंस्टीट्यूट फॉर कॉन्फ्लिक्ट एंड सिक्योरिटी स्टडी (PICSS) की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि 10 नवंबर से 10 दिसंबर तक एक महीने के संघर्ष विराम के बावजूद आतंकवादी हमलों की संख्या में कमी नहीं आई है. पाकिस्तान में हर महीने आतंकवादी हमलों की औसत संख्या 2020 में 16 से बढ़कर 2021 में 25 हो गई है, जो 2017 के बाद सबसे अधिक है.



आंकड़ों से पता चला है कि बलूचिस्तान, पाकिस्तान का सबसे अशांत प्रांत है. जहां 103 हमलों के कारण 170 लोगों की मौत हुई है. रिपोर्ट के अनुसार, बलूचिस्तान में ही सबसे अधिक घायलों की संख्या भी दर्ज की गई है, हमलों में घायल हुए लोगों में से 50 फीसदी से अधिक इसी प्रांत में हमले का शिकार हुए हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि खैबर पख्तूनख्वा बलूचिस्तान के बाद दूसरा सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र है. विशेषज्ञ पाकिस्तान के अफगानिस्तान में हो रहे हस्तक्षेप पर चिंता जता रहे हैं. इनका मानना है कि पाकिस्तान सार्वजनिक तौर पर तालिबान का साथ दे रहा है, जिससे केवल क्षेत्रीय संघर्ष ही बढ़ेगा.

इस स्थिति के पीछे का कारण नेताओं का निजी स्वार्थ भी है. विशेषज्ञों ने चेतावनी दी कि पाकिस्तान की करतूतें उसी पर भारी पड़ सकती हैं. इसका असर विशेष रूप से उसके सैन्य और खुफिया प्रतिष्ठान पर पड़ सकता है. हालांकि तमाम हमलों के बावजूद भी पाकिस्तान सरकार तालिबान के प्रति नरम बनी हुई है. प्रधानमंत्री इमरान खान खुद कई मौकों पर तालिबान के प्रवक्ता की तरह बोलते दिखाई देते हैं.

 

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