गजब है देश और कमाल के हैं लोग… बजट में जब अर्थ की व्यर्थ देवी निर्मला सीतारमण ने आयकर पर 12 लाख रुपए तक की छूट की घोषणा की तो पूरा देश खुशी से झूम उठा… व्यापारी, कारोबारी, अर्थशास्त्री से लेकर तमाम पढ़े-लिखे तबके के लोग बल्ले-बल्ले करने लगे… देश के ठेले चलाने वाले से लेकर सब्जी, किराने वाले लोग इसे बड़ा तोहफा समझकर झूमने लगे… बजट को सर्वभौमिक और सर्वकल्याणकारी कहा जाने लगा… अखबारों ने इस खबर को अपनी हेडलाइन बनाया… लेकिन इस हकीकत को न किसी ने समझा न ज्ञान के किसी ठेकेदार ने समझाया कि इस देश की 140 करोड़ लोगों की आबादी में केवल 8 करोड़ 9 लाख लोग आयकर रिटर्न भरते हैं और उनमें भी 4 करोड़ 90 लाख लोग शून्य टैक्स भरते हैं… केवल 3 करोड़ 19 लाख लोग ही ऐसे हैं, जो इनकम टैक्स भरते हैं…यानी देश के 140 करोड़ लोगों में से जो लोग इनकम टैक्स भरते हैं उनका प्रतिशत मात्र 2.3 ही है… यानी 100 में से 3 लोग भी आयकर नहीं भरते, फिर भी पूरे जिस आयकर विभाग को देश की आर्थिक मजबूती का आधार माना जाता है वह लोगों की दुर्गति का कारण बना हुआ है… यदि राजस्व की बात करें तो आयकर से देश को कुल राजस्व का एक प्रतिशत हिस्सा भी प्राप्त नहीं होता और इस विभाग के पालन-पोषण, वेतन पर विभाग की ही आय का आधा हिस्सा चला जाता है…यानी हकीकत तो यह है कि कोई सरकार यदि आयकरभोगियों को राहत का टुकड़ा थमाने के बजाय इस कर को समाप्त कर दे तो राजस्व को कोई बड़ा नुकसान नहीं होगा… लेकिन जीरे के स्वाद में ही जब देश झूमने लग जाए तो उन्हें राहत की थाली परोसकर कौन जिमाए और इस स्वाद को अर्थशास्त्री देश की उन्नति मानने लग जाएं तो वित्त मंत्री वित्त की पौथी पढऩे की मुसीबत क्यों उठाए…देश के सारे पढ़े-लिखे लेखाप्रभु, यानी चार्टर्ड अकाउंटेंट भी इस बात से खुश हो गए कि सरकार ने टीडीएस की सीमा बढ़ा दी… अब इसका फायदा-नुकसान समझ में नहीं आया कि टीडीएस, यानी भुगतान में से कर की अदायगी की सीमा बढ़ भी जाएगी तो यदि आय टैक्स की सीमा में रहेगी तो सालभर बाद तो भरना ही पड़ेगा…खास बात तो यह है कि पढ़े-लिखे और कमाऊ पूतों की इस माथापच्ची का मलाल और खुशी जब देश के तीन करोड़ लोगों के बीच है तो पूरा देश इस पर क्यों झूम उठता है और यह समाचार अखबार की सुर्खियां क्यों बनता है… इस बेगानी शादी में देश दीवाना कहें या चावल के दाने से पूरे देश को जिमाना…
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