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भारत में अल्जाइमर का बढ़ता खतरा

– योगेश कुमार गोयल

डिमेंशिया (मनोभ्रंश) और अल्जाइमर रोग के बारे में लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 21 सितम्बर को ‘विश्व अल्जाइमर दिवस’ मनाया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार अमेरिका में तो अल्जाइमर ही हर सातवीं मौत का प्रमुख कारण है, जहां 65 वर्ष से अधिक आयु के अधिकांश लोग अल्जाइमर से मर जाते हैं।

दरअसल उम्र बढ़ने के साथ कई प्रकार की बीमारियां शरीर को निशाना बनाना शुरू कर देती हैं और ऐसी ही बीमारियों में से एक बुढ़ापे में भूलने की आदतों की बीमारी ‘अल्जाइमर-डिमेंशिया’ है। आंकड़ों के मुताबिक चीन में अल्जाइमर के रोगियों की संख्या पूरी दुनिया में पहले स्थान पर है लेकिन वहां इस रोग के उपचार की दर अपेक्षाकृत कम है, जिसका सबसे बड़ा कारण वहां बुजुर्ग आबादी की लगातार बढ़ती जनसंख्या के अलावा अधिकांश लोगों के मनोमस्तिष्क में इस बीमारी के बारे में व्याप्त गलतफहमी भी है। वर्तमान में चूंकि अल्जाइमर रोग का कोई इलाज नहीं है, इसीलिए इस रोग की गंभीरता के कारण कुछ देशों में पूरे सितंबर महीने को ही ‘विश्व अल्जाइमर माह’ के रूप में मनाया जाता है। बैंगनी रंग का रिबन अल्जाइमर का प्रतिनिधित्व करता है।

अल्जाइमर एक भूलने की बीमारी है और इस बीमारी का यह नाम 1906 में इस बीमारी का पता लगाने वाले जर्मनी के मनोचिकित्सक और न्यूरोपैथोलॉजिस्ट एलोइस अल्जाइमर के नाम पर ही रखा गया। उन्होंने एक असामान्य मानसिक बीमारी से मरने वाली एक महिला के मस्तिष्क के ऊतकों में परिवर्तन देखने के बाद इस बीमारी का पता लगाया था। वास्तव में अल्जाइमर एक ऐसा न्यूरोलॉजिक डिसऑर्डर है, जिससे ब्रेन सिकुड़ना, ब्रेन सेल्स डाई इत्यादि समस्याएं उत्पन्न होती हैं।

विश्व अल्जाइमर दिवस मनाने के पीछे का उद्देश्य अधिकाधिक लोगों को अल्जाइमर रोग के कारणों, लक्षणों और गंभीरता के बारे में जागरूक करना है। विश्व अल्जाइमर दिवस की शुरुआत ‘अल्जाइमर डिजीज इंटरनेशनल’ (एडीआई) की 10वीं वर्षगांठ मनाने के लिए 21 सितम्बर 1994 को एडिनबर्ग में एडीआई के वार्षिक सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर की गई थी। इस वर्ष 21 सितम्बर को 28वां ‘विश्व अल्जाइमर दिवस’ मनाया जा रहा है, जिसकी थीम है ‘डिमेंशिया को जानें, अल्जाइमर को जानें।’

प्रायः देखा जाता है कि बढ़ती उम्र के साथ कुछ लोगों में भूलने की आदत विकसित होने लगती है। ऐसे में लोगों को कुछ भी याद नहीं रहता, उन्हें किसी को पहचानने में भी दिक्कत आती है। कुछ मामलों में तो यह भी देखा जाता है कि यदि कोई बुजुर्ग व्यक्ति बाहर टहलकर आता है तो वापस लौटने पर उसे अपना ही घर पहचानने में परेशानी होती है। हालांकि ऐसी स्थितियों को अक्सर समाज में यही सोचकर काफी हल्के में लिया जाता है कि बढ़ती उम्र के साथ ऐसा होना स्वाभाविक है लेकिन वास्तव में यह बढ़ती उम्र की कोई स्वाभाविक प्रक्रिया नहीं है बल्कि उनमें पनपने वाली अल्जाइमर नामक बीमारी है, जिसमें लोग धीरे-धीरे सब कुछ भूलने लगते हैं। स्मरण शक्ति कमजोर करने वाली यह बीमारी अधिकांशतः बुजुर्गों को ही होती है लेकिन आज के समय में युवा भी इसकी चपेट में आने लगे हैं और पिछले कुछ वर्षों से इस बीमारी के मरीजों की संख्या में काफी बढ़ोत्तरी देखी गई है।

भारत में इस समय करीब 53 लाख लोग किसी न किसी प्रकार के डिमेंशिया से पीड़ित हैं। अनुमान है कि वर्ष 2025 तक केवल 60 वर्ष से अधिक आयु के ही करीब 64 लाख व्यक्ति डिमेंशिया से पीड़ित होंगे। दिमाग से जुड़ी भूलने की यह बीमारी मस्तिष्क की नसों को नुकसान पहुंचने के कारण होती है। मस्तिष्क में प्रोटीन की संरचना में गड़बड़ी होने के कारण इस बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। इस बीमारी में व्यक्ति धीरे-धीरे अपनी स्मरण शक्ति खोने लगता है। इसलिए इस बीमारी को लेकर जागरूकता और इसका उचित इलाज बेहद आवश्यक है। हालांकि अभी तक विश्वभर में अल्जाइमर रोग का कोई स्थायी इलाज नहीं है लेकिन कुछ दवाओं के जरिये अस्थायी रूप से लक्षणों को कम अवश्य किया जा सकता है। इसके लिए जरूरी सावधानियां और व्यायाम इस बीमारी में सहायक सिद्ध होते हैं। जीवनशैली में बदलाव करके कुछ हद तक इस बीमारी से बचा जा सकता है। ध्यान और योग से भी इस बीमारी से काफी हद तक राहत मिल सकती है।

मस्तिष्क में होने वाली कुछ जटिल परेशानियां ही इस रोग का कारण हैं लेकिन इस बीमारी के सही कारण अब तक ज्ञात नहीं है। डिमेंशिया अल्जाइमर रोग का सबसे समान्य रूप है, जो मस्तिष्क की कोशिकाओं को नष्ट कर देता है, जिस कारण याद्दाश्त में कमी और परिवर्तन, अनियमित व्यवहार तथा शरीर की प्रक्रियाओं को नुकसान पहुंचता है। बीमारी के शुरुआती लक्षणों पर ध्यान नहीं दिए जाने के कारण अल्जाइमर रोग बढ़ता जाता है और धीरे-धीरे विकसित होती मस्तिष्क की यह बीमारी गंभीर हो जाती है, जिसके बाद इसका कोई इलाज नहीं होता। रोग का प्रभावी ढ़ंग से उपचार करने के लिए इस बीमारी का शीघ्र पता लगने से ही लाभ होता है। इसके सबसे सामान्य शुरूआती लक्षणों में हालिया घटनाओं को याद रखने में कठिनाई आती है। अल्जाइमर के प्रमुख लक्षणों में व्यक्ति के स्वभाव में बदलाव, रात में नींद कम आना, हालिया जानकारी भूलना, पढ़ने, दूरी का आकलन करने और रंगों को पहचानने में कठिनाई, तारीख और समय की जानकारी रखने में परेशानी, समय या स्थान में भटकाव, रखी हुई चीजों को बहुत जल्दी भूल जाना, आंखों की रोशनी कम होने लगना, छोटे-छोटे कार्यों में भी परेशानी होना, अपने ही परिवार के सदस्यों को नहीं पहचान पाना इत्यादि प्रमुख हैं। बीमारी के शुरुआती दौर में व्यक्ति में चिड़चिड़ापन और गुस्सा आना, मित्रों को ही भूलने लगना, नई बातों को भूलना आदि अल्जाइमर के लक्षण हैं।

अल्जाइमर के उपचार के तौर-तरीकों में औषधीय, मनोवैज्ञानिक और देखभाल संबंधी कई पहलू शामिल हैं। बढ़ती उम्र में मस्तिष्क की कोशकाएं सिकुड़ने के कारण न्यूरॉन्स के अंदर कुछ केमिक्लस कम होने लगते हैं। दिमाग की कोशिकाओं में इन केमिकल्स की मात्रा को संतुलित करने के लिए दवाओं का प्रयोग किया जाता है लेकिन ये दवाएं जितनी जल्दी शुरू की जाएं, उतना ही फायदेमंद होता है। रोग के उपचार में पारिवारिक और सामाजिक सहयोग सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यदि किसी व्यक्ति में अल्जाइमर के लक्षण दिखाई दें तो उसे तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए।

अल्जाइमर रोग को बढ़ने से रोकने के लिए ऐसे व्यक्तियों का शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और मनोरंजनात्मक गतिविधियों में शामिल होना बेहद जरूरी है। इसके अलावा नियमित योग व ध्यान करना, पैदल चलना, कुछ भी पढ़ना-लिखना, घर में या बाहर किसी भी प्रकार के सामूहिक खेलों में भागीदारी करना, स्वास्थ्य पर पर्याप्त ध्यान देना, याददाश्त बढ़ाने के लिए वर्ग पहेली, सूडोकू, शतरंज जैसे दिमागी खेल खेलना जैसी गतिविधियां भी इस बीमारी को बढ़ने से रोकती हैं। स्वस्थ जीवनशैली और नशे से दूरी जैसी सावधानियां बरतकर भी अल्जाइमर और डिमेंशिया से बचा जा सकता है। बुजुर्गों को अल्जाइमर से बचाने के लिए जरूरी है कि परिवार के सभी सदस्य उनके प्रति अपनापन रखें, उनकी मनपसंद चीजों का ख्याल रखें, उन्हें अकेलापन महसूस नहीं होने दें, समय निकालकर उनसे बातें करें और उनकी बातों को नजरंदाज न करें।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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