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हमारी न्याय प्रणाली का प्रमुख ध्येय है सभी के लिए खुले हों न्याय के दरवाजे: राष्ट्रपति

जबलपुर । न्याय व्यवस्था का उद्देश्य केवल विवादों को सुलझाना नहीं, बल्कि न्याय की रक्षा करने का होता है और न्याय की रक्षा का एक उपाय, न्याय में होने वाले विलंब को दूर करना भी है। हमारी न्यायिक प्रणाली का एक प्रमुख ध्येय है कि न्याय के दरवाजे सभी लोगों के लिए खुले हों। हमारे मनीषियों ने सदियों पहले, इससे भी आगे जाने अर्थात् न्याय को लोगों के दरवाजे तक पहुंचाने का आदर्श सामने रखा था। यह बातें शनिवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (Ramnath Kovind) ने जबलपुर में आयोजित ऑल इंडिया स्टेट ज्यूडिशियल एकेडमीज डायरेक्टर्स रिट्रीट (All India State Judicial Academies Directors Retreat) कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कही।

इससे पहले उन्होंने यहां मानस भवन में आयोजित ऑल इंडिया स्टेट ज्यूडिशियल एकेडमीज डायरेक्टर्स रिट्रीट (All India State Judicial Academies Directors Retreat) कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। इस अवसर पर सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस शरद अरविंद बोबडे, राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद रफीक मौजूद रहे।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (Ramnath Kovind) ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि मध्य प्रदेश सहित पश्चिमी भारत की जीवन रेखा और जबलपुर को विशेष पहचान देने वाली पुण्य-सलिला नर्मदा की पावन धरती पर आप सबके बीच आकर मुझे प्रसन्नता हो रही है। शिक्षा, संगीत एवं कला को संरक्षण और सम्मान देने वाले जबलपुर को, आचार्य विनोबा भावे ने ‘संस्कारधानी’ कहकर सम्मान दिया और वर्ष 1956 में स्थापित, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायपीठ ने जबलपुर को विशेष पहचान दी।
उन्होंने कहा कि स्वाधीनता के बाद बनाए गए भारत के संविधान की उद्देशिका को हमारे संविधान की आत्मा समझा जाता है। इसमें चार आदर्शों-न्याय, स्वतंत्रता, अवसर की समानता और बंधुता-की प्राप्ति कराने का संकल्प व्यक्त किया गया है। इन चार में भी ‘न्याय’ का उल्लेख सबसे पहले किया गया है। मैं चाहता हूं कि सभी उच्च न्यायालय, अपने-अपने प्रदेश की अधिकृत भाषा में, जन-जीवन के महत्वपूर्ण पक्षों से जुड़े निर्णयों का प्रमाणित अनुवाद, सुप्रीम कोर्ट की भांति साथ-साथ उपलब्ध व प्रकाशित कराएं। 
उन्होंने कहा कि मुझे बहुत प्रसन्नता हुई, जब मेरे विनम्र सुझाव पर सुप्रीम कोर्ट ने इस दिशा में कार्य करते हुए अपने निर्णयों का अनुवाद, नौ भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराया। कुछ उच्च न्यायालय भी स्थानीय भाषा में निर्णयों का अनुवाद कराने लगे हैं। मैं इस प्रयास से जुड़े सभी लोगों को बधाई देता हूं। मैं इसे अपना सौभाग्य मानता हूं कि मुझे राज्य के तीनों अंगों अर्थात् विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका- से जुडक़र देश की सेवा करने का अवसर मिला।
राष्ट्रपति कोविन्द ने (Ramnath Kovind) कहा कि एक अधिवक्ता के रूप में, गरीबों के लिए न्याय सुलभ कराने के कतिपय प्रयास करने का संतोष भी मुझे है। उस दौरान मैंने यह भी अनुभव किया था कि भाषायी सीमाओं के कारण, वादियों-प्रतिवादियों को अपने ही मामले में चल रही कार्रवाई तथा सुनाए गए निर्णय को समझने के लिए संघर्ष करना होता है। उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि न्याय में विलंब केवल न्यायालय की कार्य-प्रणाली या व्यवस्था की कमी से ही होता हो। वादी और प्रतिवादी, एक रणनीति के रूप में, बारंबार स्थगन का सहारा लेकर, कानूनों एवं प्रक्रियाओं आदि में मौजूद लूप होल्स के आधार पर मुकदमे को लंबा खींचते रहते हैं।
उन्होंने कहा कि अदालती कार्रवाई और प्रक्रिया में मौजूद इन लूप-होल्स का निराकरण करने में न्यायपालिका को सजग रहते हुए सक्रिय भूमिका निभानी आवश्यक हो जाती है। राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाले नवाचार को अपनाकर और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करके इस लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। 

राष्ट्रपति ने कहा कि न्याय करने वाले व्यक्ति का निजी आचरण भी मर्यादित, संयमित, सन्देह से परे और न्याय की प्रतिष्ठा बढ़ाने वाला होना चाहिए। न्यायाधीश को किसी भी व्यक्ति, संस्था और विचार-धारा के प्रति, किसी भी प्रकार के पूर्वाग्रह तथा पूर्व-संचित धारणाओं से सर्वथा मुक्त होना चाहिए। न्याय के आसन पर बैठने वाले व्यक्ति में समय के अनुसार परिवर्तन को स्वीकार करने, परस्पर विरोधी विचारों या सिद्धांतों में संतुलन स्थापित करने और मानवीय मूल्यों की रक्षा करने की समावेशी भावना होनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि अब जरूरत है कि देश की अदालतों, विशेष रूप से जिला अदालतों में लंबित मुकदमों को शीघ्रता से निपटाने के लिए न्यायाधीशों के साथ ही अन्य न्यायिक एवं अर्ध न्यायिक अधिकारियों के प्रशिक्षण का दायरा बढ़ाया जाए। हमारी निचली अदालतें देश की न्यायिक व्यवस्था का आधारभूत अंग हैं। उसमें प्रवेश से पहले, सैद्धांतिक ज्ञान रखने वाले विधि विद्यार्थियों को कुशल एवं उत्कृष्ट न्यायाधीश के रूप में प्रशिक्षित करने का महत्वपूर्ण कार्य हमारी न्यायिक अकादमियां कर रही हैं।
कार्यक्रम में राष्ट्रपति ने प्रमुख जानकारी देते हुए बताया कि देश में 18,000 से ज्यादा न्यायालयों का कंप्यूटरीकरण हो चुका है। लॉकडाउन की अवधि में जनवरी, 2021 तक पूरे देश में लगभग 76 लाख मामलों की सुनवाई वर्चुअल कोर्ट में की गई। एजेंसी/(हि.स.)
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