उज्जैन। राष्ट्रीय पक्षी मोर कोठी तथा विश्व विद्यालय परिसर के आसपास बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। वहीं ग्राम मंगरोला फिलहाल उज्जैन में मोरों का गढ़ है। गर्मी के दिनों में इनके दाना-पानी की आपूर्ति भगवान भरोसे हो रही है, क्योंकि वन विभाग के पास इसकी व्यवस्था के लिए बजट नहीं है। वहीं मोरों के संरक्षण के लिए लाखों खर्च कर बनाया गया मयूर वन भी उनके काम नहीं आ रहा।
उल्लेखनीय है कि उज्जैन शहर में कोठी पैलेस तथा विश्वविद्यालय परिसर में अभी बड़ी संख्या में राष्ट्रीय पक्षी मोर नजर आते हैं। इसके अलावा 6 साल पहले तक हीरामिल और विनोद मिल परिसर में भी सैकड़ों की संख्या में मोर रहते थे। परंतु यहां स्मार्ट सड़क बनने के बाद इनके आशियाने उजड़ गए थे। इसके बाद से इस क्षेत्र से मोरों की प्रजाति विलुप्त हो गई है। वहीं उज्जैन के मंगरोला गांव में आज भी बड़ी संख्या में राष्ट्रीय पक्षी मोर बसे हुए है। गाँव में 600 के लगभग मोर रहते है। शर्मीले और डरपोक स्वभाव वाले मोर अब मंगरोला गाँव का हिस्सा बन चुके है। जिस तरह घर में पालतू जानवर श्वान या बिल्ली नजर आती है उसी तरह अब गाँव के कई घर और छतो पर मोर नजर आते हैं। इनके संरक्षण के लिए गाँव के ही कुछ युवाओ ने मोर सरंक्षण केंद्र बनाया है, जिसमें मोरो के लिए उपचार और रहने के लिए जगह बनाई है। इसके साथ ही रोज दाना पानी की भी व्यवस्था की गई है। जबकि कोठी तथा विश्वविद्यालय परिसर और अन्य स्थानों पर पाए जाने वाले मोर की देखरेख और विशेषकर गर्मी में दाना-पानी की व्यवस्था के लिए वन विभाग द्वारा कोई इंतजाम नहीं किए जाते। वन विभाग से जुड़े अधिकारी सूत्रों का कहना है कि विभाग के पास मोर के संरक्षण और उनके दाना-पानी की व्यवस्था के लिए अलग से कोई बजट नहीं है। इधर शहरी क्षेत्र में दाना पानी की तलाश में आए मोर कई बार करंट का शिकार हो जाते हैं। जिससे उनकी जान चली जाती है। इस प्रकार से मोरों को कुत्तों व करंट से बचाने के लिए प्रयास किए जाना जरूरी है।
बस नाम का रह गया मयूर वन
मयूर वन प्रोजेक्ट के तहत 1 करोड़ की अधिक की लागत से साल 2018 से इसके निर्माण का काम शुरु किया गया था। योजना के मुताबिक पार्क को मोर के अनुकूल वातावरण उपलब्ध कराना तथा उसका संवर्धन करना था। इसके अलावा यहां मनोरंजन के लिए भूल भूलैया भी बनाई गई है। वाटिका के तालाब को सुंदर तालाब में तब्दील कर दिया गया है लेकिन हालत यह है कि मयूर वन में मोरों को बसाने और इनके संरक्षण के कोई प्रयास नहीं किए गए है।
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