ब्‍लॉगर

ये पॉलिटिक्स है प्यारे

दिग्गी का ‘नए लडक़ों’ से क्या मतलब?
भोपाल के स्टेट हैंगर पर कमलनाथ और मुख्यमंत्री की चर्चा और दिग्विजयसिंह का धरना। दोनों घटनाएं एक साथ हुईं और उसने इन दोनों दिग्गज नेताओं के बीच दूरी बनाने में कसर नहीं छोड़ी। इसके बाद प्रदेश कांग्रेस संगठन की महत्वपूर्ण बैठक से दिग्गी का गायब होना और अरुण यादव के साथ उनके क्षेत्र में जाकर बैठक लेना आने वाले समय में कांग्रेस की राजनीति में बवाल के संकेत दे रहा है। दिग्गी ने तो यह तक कह दिया कि ‘नए लडक़ों’ को मौका मिलना चाहिए। दिग्गी का यह इशारा सरकार की कुर्सी के लिए था या फिर वे कहीं ओर निशान लगा रहे थे, लेकिन कहने वाले कह रहे हैं कि राजा जब भी बोलते हैं, उसके मायने निकालना जरूरी हो जाता है। वैसे दिग्गी ने इस तीर से सीधे नेतृत्व पर ही निशाना साधा है और कांग्रेस के युवाओं की नई पौध को आगे लाने तथा पुराने नेताओं को अब बोरिया-बिस्तर बांधने का इशारा कर दिया है। कांग्रेस की राजनीति में आगे कुछ न कुछ ट्वीस्ट आने वाला है, इसके संकेत अभी से ही मिल रहे हैं।
अब पटवारी ने किया जय-जय सियाराम
भाजपा की राह पर अब कांगे्रस भी चल पड़ी है। विधायक संजय शुक्ला धर्मकर्म में डूबे हैं तो अब राऊ से भी जीतू पटवारी धार्मिक आयोजन की शुरुआत कर रहे हैं। पिछले दिनों राऊ विधानसभा में दो सडक़ों के भूमिपूजन में पटवारी के भाई भरत पटवारी ने भाजपाइयों के सुर में सुर मिलाए। भरत भाजपाइयों की बराबरी से कार्यक्रम में बैठे भी और जब भाजपाइयों ने जय-जय सियाराम का नारा लगाया तो भरत ने भी उसी अंदाज में जय-जय सियाराम बोलकर सबको आश्चर्यचकित कर दिया।
हिन्दूवादी छवि मजबूत करने में लगे एकलव्य
एकलव्य गौड़ अपने आपको कट्टर हिन्दूवादी बताने का कोई मौका नहीं छोड़ते। इस विषय से संबंधित कोई भी मौका हो वे इसे लपक लेते हैं। वैसे अंदरखाने की खबर है कि एकलव्य ही अगली बार यहां से दावेदार हो सकते हैं। पिछले दिनों हैदराबाद के हिन्दूवादी विधायक टी. राजासिंह से जिस जोश से मुलाकात हुई है, उससे भी काफी कुछ संदेश गया है, वहीं दिल्ली में भी वे लगातार हिन्दू नेताओं के संपर्क में हैं और अपनी हिन्दुत्ववादी छवि को मजबूत करने में लगे हुए हैं।


खंडेलवाल फिर दो नावों पर सवार
एक नंबर के कांग्रेस नेता (फिलहाल) कमलेश खंडेलवाल अपनी ही पार्टी में बेगाने की तरह है। कांग्रेसी उन्हें फूलछाप कहकर पैर जमाने नहीं दे रहे हैं, फिर भी वे अपनी संस्था के मार्फत सामाजिक गतिविधियों से एक नंबर में अपनी उपस्थिति दर्शाते रहते हैं। उन्होंने पिछले दिनों जो आयोजन किया, उसमें विशेष तौर पर कैलाश विजयवर्गीय और रमेश मेंदोला के फोटो लगाकर इशारा कर दिया कि वे भाजपा में जा सकते हैं, लेकिन अभी टिफिन पार्टी और मार्च में होने वाले फाग उत्सव में उन्होंने कमलनाथ, दिग्विजयसिंह और अन्य कांग्रेसी नेताओं के फोटो लगाकर अपनी मंशा बदल दी। वैसे कमलेश सार्वजनिक तौर पर भाजपा की तारीफ करने से नहीं चूक रहे हैं, लेकिन कांग्रेस का साथ भी नहीं छोडऩा चाहते हैं। उनको जानने वाले कह रहे हैं कि वे सही समय का इंतजार कर रहे हंै कि कौन-सी नाव उनके राजनीतिक कैरियर को पार लगाएगी?
चलो भला तो हुआ सफाईकर्मियों का
स्वच्छता में पंच लगाने वाले इंदौर के सफाईकर्मियों को बोनस देने के मामले में पहल संजय शुक्ला ने की थी, लेकिन उसके बाद कई नेताओं और जनप्रतिनिधियों ने इसको लेकर मांग उठाना शुरू की। पिछले दिनों सफाईकर्मियों को 10-10 हजार रुपए का बोनस भी मिल गया। अब सब इसका श्रेय लेने में जुटे हैं। अपने क्षेत्र के लोगों के साथ धार्मिक यात्रा पर गए शुक्ला की ओर से बयान जारी नहीं हो पाया। इंदौर आए तो श्रेय कोई और लूट चुके थे। शुक्ला ने यही कहा कि मैंने कराया या किसी ओर ने…चलो भला तो हुआ सफाईकर्मियों का।


अजा मोर्चा की भीड़ और सत्तन की सीख
वैसे तो भाजपा के युवा मोर्चा के कार्यकर्ता जोश में रहते हैं, लेकिन पिछले दिनों भाजपा कार्यालय में संत रविदास की जयंती पर जिस तरह अजा मोर्चा की भीड़ उमड़ी, उसने बता दिया कि इस मोर्चे में गंभीरता और अनुशासन की कमी है। दिनेश वर्मा की कार्यकारिणी में पद पाने वाले कई भाजपा नेता ऐसे युवाओं की भीड़ ले आए, जो सत्तन गुरु के भाषण कम सुन रही थी, हूटिंग ज्यादा कर रही थी। गुरु ने भी स्थिति भांपकर अपनी बात को समेट लिया, नहीं तो गुरु संत रविदास के जीवन पर बहुत कुछ बोलने वाले थे।.


उमेश के दर्द पर नमक या मरहम
उमेश शर्मा समय-समय पर जो दर्द बयां करते रहते हैं, उसमें भाजपा के ही कई नेताओं का दर्द भी शामिल है, लेकिन उनकी हिम्मत खुलकर बोलने की नहीं होती। राजनीतिक नुकसान होने के चक्कर में कई नेता उमेश को ही तीर की तरह इस्तेमाल करते हैं। उमेश के मन में भी एक लंबे समय से टीस है कि उन्होंने संगठन को मजबूत करने के लिए बहुत काम किया, लेकिन आज तक उन्हें संगठन छोडक़र कोई पद नहीं दिया गया। उमेश के इसी दर्द पर कुछ नेता दिखाने के लिए तो मरहम लगाने का काम करते हैं, लेकिन ये मरहम कभी-कभी नमक का काम कर जाता है और शर्मा की आह निकल जाती है, लेकिन राजनीति में उनकी आह दूसरों के लिए काम कर जाती है।
विनय बाकलीवाल खुश हैं कि कमलनाथ ही प्रदेश कांग्रेस की कुर्सी पर बने रह सकते हैं। ये तो तय है कि उनके रहते विनय का कोई बाल बांका नहीं कर सकता। हालांकि उनकी कुर्सी को खिसकाने के चक्कर में कई नेता जुगत भिड़ा रहे हैं, लेकिन विनय भोपाल की मदद से अपनी कुर्सी को बनाए रखने में कायम रह पाते हैं या नहीं, ये वक्त ही बताएगा। -संजीव मालवीय

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