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कोरोना संक्रमण को रोकने में कारगर हो सकता है ये पौधा, रिसर्च में हुआ खुलासा


कोरोना वायरस पर देश और दुनिया में तरह-तरह के रिसर्च जारी हैं. CSIR की एक स्टडी में खुलासा हुआ है कि एक खास तरह का पौधा कोरोना को बढ़ने से रोकने में कारगर साबित हो सकता है। स्टडी में पाया गया है कि वेल्वेटलीफ पौधा और इसकी जड़ Sars-CoV-2 वायरस को प्रतिकृति बनाने से रोक सकता है। ये शोध सरकार की औद्योगिक और वैज्ञानिक अनुसंधान परिषद (CSIR) के तीन लैब में किया गया है।

ये स्टडी अभी कहीं प्रकाशित नहीं हुई है और न इसे BioRxiv पर अपलोड किया गया है। इसकी समीक्षा की जानी अभी बाकी है। इस पौधे का अर्क पहले भी आयुर्वेद में बुखार, विशेष रूप से डेंगू के लिए किया जाता रहा है। शोधकर्ताओं ने पाया कि यह अर्क कई एंटीवायरल (antiviral) की तरह ही काम करता है।

ये पौधा वायरस के सेल कल्चर पर काम करता है। शोधकर्ताओं ने पाया कि वेल्वेटलीफ पौधे का अर्क पानी में मिलाने से इसने सेल कल्चर में वायरल कंटेट को 57% और हाइड्रो-अल्कोहलिक अर्क (पानी और शराब से बना एक घोल) ने इसे 98% तक कम कर दिया। शोधकर्ताओं इस पौधे के अर्क में पाए जाने वाले कई अणुओं का परीक्षण किया। इसमें पाए जाने वाला पैरेइरेरिन 80% तक असरदार पाया गया है।



CSIR में जीनोमिक्स और मॉलिक्यूलर मेडिसिन डिपार्टमेंट (Molecular Medicine Department) की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर मिताली मुखर्जी ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया, ‘सबसे पहले हमने एक कनेक्टिविटी मैप का इस्तेमाल किया। इसका इस्तेमाल किसी भी दवा की उपयोगिता जानने के लिए किया जाता है। ये पौधा कई एंटीवायरल की तरह ही काम करता है। हमारे लैब स्टडी में भी यही साबित हुआ।’

डॉक्टर मिताली ने कहा, ‘इस पौधे के अर्क का उपयोग आयुर्वेद (Ayurveda) में पहले से ही बुखार, डेंगू और कुछ हार्मोनल समस्याओं में किया जाता रहा है। ये पूरी तरह सुरक्षित है। हालांकि सिर्फ क्लिनिकल ट्रायल के जरिए ही जाना जा सकता है कि ये लोगों में संक्रमण की गंभीरता या समय को कम करने में मदद करता है या नहीं।’

औषधि विशेषज्ञ डॉक्टर (pharmaceutical specialist doctor) सीएम गुलाटी ने कहा, ‘बीमारियों के इलाज के लिए पौधे के अर्क का उपयोग करने का सिद्धांत कोई नया नहीं है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण कुनैन है। इसका इस्तेमाल मलेरिया के इलाज के लिए किया जाता है। ये सिनकोना के पेड़ से निकलता है।’

डॉक्टर गुलाटी ने कहा, ‘वर्तमान शोध बहुत ही प्रारंभिक चरण में है। वैज्ञानिकों को इसके इनग्रेडिएंट्स और रासायनिक संरचना को अच्छे से समझना होगा। इसके बाद ही कोई उपयोगी दवा बनानी होगी ।

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