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ट्रेन के इंजन में नहीं होते है टायलेट, महिला ड्राइवर सेनेटरी पैड पहन ड्यूटी करने मजबूर

नई दिल्ली। केंद्र सरकार (central government) महिला सशक्तिकरण (women empowerment) के तहत रेलवे में महिलाओं को बतौर सहायक लोको पायलट(assistant loco pilot) की नौकरी दे रही है। लेकिन, ट्रेनों के इंजन (लोकोमोटिव) में टॉयलेट की सुविधा नहीं (No toilet in train engine) होने के कारण लोको पॉयलट विशेषकर महिलाओं को खासी परेशानी उठानी पड़ रही है। नेचुरल कॉल की स्थिति(natural call status) से निपटने के लिए महिलाएं सेनेटरी पैड पहनकर ड्यूटी करने पर विवश(Women forced to do duty wearing sanitary pads) हैं। वहीं, पुरुष पॉयलट इंजन में अपने साथ में बोतल लेकर चलते हैं। रेलवे की इंजनों में सीसीटीवी कैमरे लगाने की नीति ने उनकी मुसीबतें और बढ़ा दी हैं।



रेल मंत्रालय (Ministry of Railways) ने देश में कई रेलवे स्टेशन को सिर्फ महिलाओं के सुपुर्द कर दिए हैं। महिला सशक्तिकरण के तहत मेल-एक्सप्रेस, मालगाड़ी आदि चलाने के लिए सहायक महिला लोको पायलटों की भर्ती की गई हैं। वर्तमान में लगभग दो हजार से अधिक महिलाएं ट्रेन चला रही हैं। लेकिन, रेलवे मंत्रालय ने उनकी सुविधा का ध्यान नहीं रखा। ट्रेनों के इंजन में आजतक टॉयलेट की व्यवस्था नहीं की गई है। एक महिला पॉयलट ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि नियमत: लोको पायलट 10 से 12 घंटे की निरंतर ड्यूटी करते हैं। सर्दियों में कई बार कोहरे के कारण ट्रेन 36 घंटे तक लेट होती हैं। मालगाड़ियों की स्थिति और भी खराब है।
रेलवे के सख्त नियम हैं कि लोको पायलट इंजन छोड़कर नहीं जा सकते हैं। यह नियम स्टेशनों पर भी लागू है। दो व तीन मिनट के स्टॉपेज पर इंजन से नीचे नहीं उतर सकते हैं। रेल मंत्रालय की नीति के अनुसार, सभी 9000 से अधिक इंजनों में सीसीटीवी कैमरे लगाए जा रहे हैं। तर्क है कि दुर्घटना होने पर ड्राइवर की गतिविधियां क्या थीं। फुटेज से यह पता चलेगा हादसा मानवीय चूक, तकनीकी गड़बड़ी अथवा उपकरण फेल होने के कारण हुआ था। लेकिन, लोको पॉयलट मानते हैं कि इससे वह दबाव में काम करते हैं और उनकी निजता (विशेष कर महिला पॉयलट की) भंग होती है।
आईआरएलओ के समन्वयक संजय पांधी ने बताया कि नेशनल ह्यूमन राइट कमीशन (एनएचआरसी) ने 2013-14 में रेल मंत्रालय से ट्रेन के इंजनों में टॉयलेट व एसी लगाने को कहा था, लेकिन रेलवे ने इस पर अमल नहीं किया। ब्रिटेन में लोको पायलट को आठ घंटे की ड्यूटी में तीन से चार घंटे के बीच 40 मिनट ब्रेक दिया जाता है। दिल्ली मेट्रो में भी पॉयलट ड्यूटी के दौरान ब्रेक लेते हैं, लेकिन रेलवे में लोको पॉयलट की लिंक ड्यूटी 10 से 12 घंटे की होती है और गंतव्य पर पहुंचने के बाद ही वह ऑफ ड्यूटी होता है।
उन्होंने बताया महिलाएं सेनेटरी पैड पहनकर ड्यूटी करती हैं। पुरुषों को भी परेशानी उठानी पड़ती है। टॉयलेट संबंधी समस्या को बार-बार रेल मंत्रालय के समक्ष उठाया जाता रहा है। लेकिन, इस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। रेल मंत्रालय के प्रवक्ता राजीव जैन से इस बारे में कई बार पूछा गया। लेकिन, खबर लिखने तक उन्होंने रेलवे का पक्ष नहीं रखा।
विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय रेल में 1952 से कंप्यूटराइज्ड सिस्टम वाले ट्रेन के इंजन आ रहे हैं। ड्राइवर डिसप्ले सिस्टम (डीडीएस) सेंसर की मदद से इंजन का कंप्रेशर, तेल-पानी सहित तमाम तकनीकी जानकारियां उपलब्ध करता है। फिर सीसीटीवी लगाने का औचित्य समझ में नहीं आता है।

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