वाशिंगटन। कोविड-19 (COVID-19) के स्रोत का पता लगाने के लिए नए सिरे से जांच कराने की बढ़ती मांग के बीच चीन (China) की एक नई रणनीति सामने आई है। विश्व में लाखों लोगों की जान दे चुके कोरोना वायरस के चीन के वुहान विषाणु विज्ञान संस्थान (Wuhan Institute of Virology) से लीक होने का कई विशेषज्ञ दावा कर चुके हैं।
दावे के अनुसार इस संस्थान की लैब में चमगादड़ में पाए जाने वाले कोरोना वायरस पर शोध किया जा रहा था। संस्थान में यही शोध कर रहीं चीन की प्रमुख वैज्ञानिक शी झेंगली (Scientist Xi Zhengli) ने पहली बार इंटरव्यू देते हुए वायरस (Virus) लीक सहित कई आरोपों को खारिज किया है, हालांकि शी के बचाव को वैज्ञानिकों द्वारा विश्वसनीय नहीं माना जा रहा, वहीं चीन ने हमेशा जानकारियों को छुपाने की नीति पर काम किया है।
झेंगली ने अपने संस्थान का बचाव करते हुए कहा कि इस बारे में कोई साक्ष्य नहीं दिए जा सकते क्योंकि कोई साक्ष्य बनते ही नहीं हैं। उन्होंने कहा, मुझे नहीं पता कि क्यों उनके संस्थान को दोषी माना जा रहा है? या फिर निर्दोष वैज्ञानिकों पर लगातार आरोप लगाए जा रहे हैं।
उन्होंने इससे भी इनकार किया कि नए कोरोना वायरस के फैलने से पहले ही उनके संस्थान को इसकी जानकारी थी। उनके दावों पर वैज्ञानिक विश्वास नहीं कर रहे क्योंकि चीन ने न केवल लैब के स्वतंत्र निरीक्षण को रोका, बल्कि यह भी नहीं बता सका कि उसी वुहान में कोरोना वायरस सबसे पहले क्यों फैला जहां इसे लेकर अध्ययन किए जा रहे हैं?
बता दें कि शी ने कोरोना वायरस की वजह से नवंबर 2019 में वुहान लैब के तीन कर्मचारियों के संक्रमित होने की रिपोर्ट को खारिज किया। उन्होंने कहा कि ऐसा कोई मामला कभी आया ही नहीं। अगर किसी के पास इन संक्रमित कर्मचारियों के नाम हैं, तो उन्हें दें, वे इसकी जांच करेंगी। उन्होंने मौजूदा महामारी की वजह बने कोरोना वायरस के वुहान की लैब में होने इनकार किया और कहा कि यहां मौजूद वायरस महामारी फैला रहे वायरस से करीब 96फीसदी मिलता-जुलता है। साथ ही कहा कि लैब में किसी अन्य वायरस पर गुप्त शोध नहीं हो रहा है। शी के अनुसार उनका संस्थान विश्व स्वास्थ्य संगठन सहित सभी वैश्विक वैज्ञानिक समुदायों के लिए खुला है। इस पर आरोप आज विज्ञान नहीं, बल्कि आपसी अविश्वास की वजह से लगे हैं।
57 साल की शी ने फ्रांस के मॉन्टपलियर विश्वविद्यालय से साल 2000 में पीएचडी की। 2004 में सार्स महामारी के बाद उन्होंने चमगादड़ों पर अध्ययन शुरू किया। 2011 में उन्हें दक्षिण-पश्चिम चीन की कुछ गुफाओं में ऐसे चमगादड़ मिले जिनमें सार्स फैलाने वाला कोरोना वायरस था। 2017 में उन्होंने पेपर प्रकाशित कर नए हाइब्रिड चमगादड़ के कोरोना वायरस के बारे में बताया गया जिसमें मानव को संक्रमित करने की लगभग क्षमता थी। तब भी उन्होंने दावा किया कि इसके जरिए मानव में संक्रमण और वायरस पनपने की संभावना का अध्ययन होगा ताकि भावी महामारी से बचाव किया जा सके। 2019 में अमेरिकी माइक्रोबायोलॉजी अकेडमी ने उनके योगदान के लिए उन्हें विश्व के प्रमुख 109 वैज्ञानिकों में चुना।
अध्ययन गुफाओं में मिलने वाले चमगादड़ के वायरस के बाकी जीवों में फैलने को लेकर है। उनके वुहान संस्थान में 300 लोग काम करते हैं। चीन में इस प्रकार की दो ही लैब हैं। यहां शी के नेतृत्व में करीब 10,000 चमगादड़ों के सैंपल जमा किए गए हैं।
हालांकि शी का कार्य वैश्विक है लेकिन आखिरकार वे हैं तो चीन की नागरिक ही। उनके राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा 2020 में वैज्ञानिकों को दिए भाषण से यह और भी साफ हो जाता है, जहां उन्होंने कहा कि, विज्ञान की सीमा नहीं होती, लेकिन वैज्ञानिकों की मातृभूमि जरूर होती है। शी लेकर चीन ने अब तक कोई जांच या कार्रवाई नहीं की है। वे आज भी अपने अध्ययन जारी रखे हुए हैं और लेक्चर भी ले रही है। बल्कि वे चीनी राष्ट्रीयता और वैज्ञानिक प्रगति की पहचान मानी जा रही हैं।
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