ब्‍लॉगर

दो साल में ही उतर गया इमरान का जादू

– बिक्रम उपाध्याय

क्रिकेटर से राजनेता और फिर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने इमरान खान के दो साल का कार्यकाल पूरा हो गया। उन्होंने 25 जुलाई, 2018 को यह पद संभाला था। ‘नया पाकिस्तान’ के नारे से सत्ता में आए इमरान खान नियाजी ने इस बीच आवाम को इतना निराश कर दिया है कि लोग अब उनके शासन से छुटकारा पाने की दुआ मांगने लगे हैं। पाकिस्तान के प्रमुख टीवी चैनल ‘दुनिया न्यूज़’ ने 27 जुलाई को पाकिस्तान के चार बड़े शहरों- लाहौर, इस्लामाबाद, कराची और पेशावर में सर्वे कराया था। इन सभी सर्वे से लोगों की यही राय सामने आयी कि इमरान खान की सरकार जानी चाहिए। प्रतिष्ठित ‘डाॅन’ ने भी इमरान सरकार के दो साल के कार्यकाल पूरे होने पर समीक्षा छापी है।

यूसी बर्कले में काम कर रहे पाॅलिसी एनालिसिस करने वाले मुर्तज़ा नियाज ने ‘डाॅन’ में अपने एक लेख में कहा है- पीटीआई (पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ) का रिकार्ड उसी तरह खराब है जिस तरह पूर्ववर्ती सरकारों का रहा है। जनता ने इमरान सरकार को सहूलियतें, परियोजना, नीतियाँ, नये कानून और संस्थागत सुधार के पैमाने पर कसा है। इससे सीधा यह निष्कर्ष निकाला है कि इमरान की टीम आपस में लड़ने वाले, अयोग्य और तमाम ग़लतियाँ करने वालों लोगों से भरी पड़ी है। हालांकि पीएमएल-एन और पीपीपी में भी अच्छे लोगों की कमी थी, लेकिन कम से कम उनके यहां पार्टी के बड़े नेताओं को ही महत्वपूर्ण ओहदों पर बिठाया गया था। जबकि पीटीआई में वे लोग भरे पड़े हैं जिन्होंने ना तो चुनाव लड़ा है और जिनका सरकार चलाने का कोई तजुर्बा ही रहा है। केवल परवेज खटक, असद उमर और शाह महमूद कुरैशी ही हैं जो राजनीतिक प्रक्रिया से निकले हुए लोग हैं। इमरान खान ने बगैर चुने हुए लोगों को महत्वपूर्ण पदों पर बिठाकर यही संदेश दिया है कि वे अमेरिका की तरह प्रेसिडेंशियल फार्म ऑफ गवर्नमेंट चला रहे हैं। लेकिन ये सब बुरी तरह फेल हुए हैं।

इमरान सरकार के अंदर ही इन बाहरी लोगों को लेकर भारी अंसतोष है। कैबिनेट के अंदर अक्सर ही गरमागरम टकराव चलती रहती है। एक दिन तो साइंस एंड टेक्नोलाॅजी मंत्री फव्वाज चौधरी ने मीडिया को इंटरव्यू देकर सबकी पोल खोल दी। उन्होंने यहां तक कह दिया कि दो साल में इमरान सरकार का प्रदर्शन ठीक नहीं है। कोई काम हो ही नहीं रहा। बाद में इमरान ने फव्वाज चौधरी को डांट लगाई और गैरनिर्वाचित लोगों से माफी मांगने की भी मजबूर कर दिया।

इमरान खान ने दो साल पहले चुनाव इस मुद्दे पर लड़ा था कि पाकिस्तान को करप्शन फ्री कर देंगे और जो लोग मुल्क से पैसे लेकर बाहर गए हैं, सबको जेल में डाल कर पैसे वसूल कर देंगे। इस मुद्दे पर इमरान न सिर्फ फेल हुए, बल्कि विपक्ष के पास उनकी ही सरकार के करप्शन का तमाम मामला पहुंच गया। हालांकि पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ, उनके भाई शाहबाज शरीफ उनके बेटे हमजा शरीफ, पीएमएनएल के ही नेता और पूर्व प्रधानमंत्री शाहिद खक्कान अब्बासी को वहां के नेशनल अकाउंटेंसी ब्यूरो यानी नैब ने अलग अलग केसों में जेल में डाल तो दिया, लेकिन बारी-बारी से सब बाहर आ गए और किसी पर कोई भी करप्शन का चार्ज कोर्ट में टिक नहीं पाया। उल्टे पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने नैब और इमरान सरकार पर ही यह गहरी टिप्पणी कर दी कि नैब न सिर्फ विरोधियों को फंसाने का इदारा (डिपार्टमेंट) बन गया है, बल्कि यह सरकार के लिए लोगों कोे पाला बदलवाने का भी काम कर रहा है।

इमरान खान ने पाकिस्तान में संस्थागत सुधार के भी बड़े बड़े वायदे किए थे। लेकिन ना तो वहां इंस्टीट्यूनशल सुधार हुआ और ना कोई पुलिस रिफाॅर्म ही हुआ, बल्कि इसके उलट संस्थाओं में जल्दी जल्दी तबादले कर उन्हें अस्थिर ही किया गया। इमरान सरकार के कारण ही पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइन भी पूरी तरह बर्बाद है। पाकिस्तान स्टील मील्स को बेचना इमरान का ताजा फैसला है। इमरान जिस मीडिया की बदौलत सरकार में आए, उस मीडिया की हालत इस समय सबसे खराब है। जो भी मीडिया हाउस या पत्रकार पाकिस्तान की मिलिट्री या इमरान सरकार के खिलाफ कुछ भी बोलता या लिखता है, उसके खिलाफ सरकार पड़ जाती है। दर्जनों पत्रकारों की नौकरियाँ चली गई, कुछ को जेल भेज दिया गया है। हद तो यह हो गई कि अभी दो हफ्ते पहले ही इस्लाबाद में एक पत्रकार मुतिउल्लाह जान को दिन में ही पाकिस्तान की पुलिस गई अगवा कर अज्ञात जहग ले गई । उनके हाथ बांध दिए गए थे। आंखों पर पट्टी बांध दी गई थी। जब मामला गरम हुआ, इस्लामाबाद हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने इसका संज्ञान लिया तब जाकर उनकी रिहाई की गई।

आवाम की प्रतिक्रिया देखकर पाकिस्तान के विपक्षी दलों में उत्साह आ गया है। अब संयुक्त मोर्चा बनाकर वे पाकिस्तान से इमरान सरकार को विदा करने का अभियान चलाने वाले हैं। पहले पीएमएल-एन के नेता शहबाज शरीफ ने पीपीपी के चेयरमैन बिलवल भुट्टो को साथ लिया और अब वे जमियत उलेमा एक इस्लाम फजल के नेता मौलाना फजलुर्रहमान के साथ मिलकर एक संयुक्त विपक्ष का मोर्चा बना रहे हैं। मुद्दे तैयार हैं। पाकिस्तान में बोहरान यानी जमाखोरी एक चीज की नहीं है। चीनी की है, आटे की है, पेट्रोल डीजल की है, बिजली की है और सबसे बड़ा मुद्दा महँगाई का है। एक जुमला पाकिस्तान में पहले से ही चल रहा है और वह है माइनस वन का। इसका मतलब यह है कि सरकार बिना इमरान के। यदि पाकिस्तान की सेना नए चुनाव की इजाज़त न भी दे तो इमरान को हटाने का दे सकती है। दो साल में इमरान का जादू पाकिस्तानियों पर से पूरी तरह खत्म हो चुका है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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