आईएएस के लंबे हाथ
म प्र के एक आईएएस पिछले लंबे समय से अपनी ताकत का अहसास करा रहे हैं। ग्वालियर जिला प्रशासन, पूरा राजस्व विभाग और विधानसभा सचिवालय के कुछ कर्मचारी भी इनकी करतूतों को बचाने में लगे हुए हैं। लेकिन अब यह मामला तूल पकडऩे वाला है। ग्वालियर कलेक्टर रहते इन्होंने अनेक स्थानों पर अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के लोगों को दी गई पट्टे की जमीनें बेचने की नियम विरुद्ध अनुमति दे डाली। कहते हैं कि इसमें करोड़ों का लेनदेन हुआ है। मामला विधानसभा पहुंचा तो 2 साल तक तो जवाब ही नहीं आने दिया। फिर संबंधों के आधार पर विधायक की मान मनोव्वल करके विधानसभा सचिवालय में जवाब तो आया बताया गया लेकिन इनकी करतूतों के दस्तावेज गायब हैं। जैसे ही विधानसभा में सूचना का अधिकार लगा तो अब विधानसभा सचिवालय राजस्व विभाग से जानकारी मंगा रहा है। चतुर आईएएस का यह मामला अब भोपाल से दिल्ली तक उजागर होने के संकेत मिल रहे हैं।
इमरती की मिठास गायब
जै से-जैसे विधानसभा उपचुनाव नजदीक आ रहे हैं। प्रदेश की महिला एवं बाल विकास मंत्री इमरती देवी की मिठास कम होती जा रही है। कांग्रेस ने डबरा में भाजपा के सुरेश राजे को टिकट देकर एक तीर से दो निशाने किए हैं। एक ओर सुरेश राजे, इमरती देवी के रिश्तेदार होने के कारण उनके परिवार के वोट ही काटेंगे तो दूसरी ओर लंबे समय तक भाजपा में रहने के कारण उन्हें अपनी पुरानी पार्टी के कार्यकर्ता से भी उम्मीद है। कांग्रेस का टिकट मिलते ही सुरेश राजे ने इमरती पर जानबूझकर एक ऐसा हमला किया है जिससे भाजपा और इमरती दोनों तिलमिलाए हुए हैं। कभी कलेक्टर के दम पर चुनाव जीतने की बात करने वाली, तो कभी प्रदेश के डिप्टी सीएम बनने की डींग भरने वाली इमरती देवी की सारी मिठास अपने समधी सुरेश राजे के एक बयान से ही खटाई में बदल गई है।
डूबते को पहाड़ का सहारा
डू बते को तिनके का सहारा तो सुना होगा, लेकिन यदि पहाड़ का सहारा मिल जाए तो कहने ही क्या? भोपाल में जैन समाज के नाम से बना मेडिकल कॉलेज लगभग डूबने की कगार पर पहुंच गया था। बैंकों ने 117 करोड़ की वसूली के नोटिस अखबारों में छपवा दिए थे। लेकिन अब इस डूबते को पहाड़ का सहारा मिल गया है। बताते हैं कि मप्र सरकार में लगभग 15 साल महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री रहे भाजपा के एक नेता ने मेडिकल कॉलेज संचालन समिति के अध्यक्ष का दायित्व संभाल लिया है। उम्मीद की जा रही है कि इस नेता का सहारा मिलने से जैन समाज का यह संस्थान बैंकों के हाथों बिकने से बच जाएगा।
शिवराज-कमलनाथ की केमिस्ट्री
म प्र की राजनीति में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की दोस्ती एक बड़ी मिसाल बनकर उभर रही है। दोनों एक दूसरे के खिलाफ कितने भी तीखे बयान दें, लेकिन दोनों एक-दूसरे की बात कभी नहीं टालते। विधानसभा के तीन दिवसीय सत्र को एक दिवस में बदलने की बात हो, स्पीकर का चुनाव टालने की बात हो, विधानसभा में सवाल-जवाब का सत्र स्थगित करने की बात हो जैसा शिवराज ने चाहा कमलनाथ ने वही किया। यह बात दूसरी है कि कांग्रेस के तमाम विधायक कमलनाथ पर दबाव डालते रहे कि विधानसभा सत्र तीन दिन का हो, स्पीकर का चुनाव इसी सत्र में हो आदि-आदि। ऐसा नहीं है कि कमलनाथ ही शिवराज की सुनते हैं? ऐसे कई उदाहरण है जब कमलनाथ की बात को शिवराज ने न केवल स्वीकारा है बल्कि इसके लिए पार्टी के नेताओं की नाराजगी भी मोल ली है।
दलित आईएएस को चाहिए कलेक्टरी
म प्र के अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के आईएएस अधिकारियों को अब जिलों में कलेक्टर की कुर्सियां चाहिए। इसके लिए बकायदा मुख्य सचिव को पत्र लिखा गया है। मप्र अनुसूचित जाति जनजाति अधिकारी एवं कर्मचारी संघ जिसके अध्यक्ष वरिष्ठ आईएएस जेएन कंसोटिया हैं, ने मुख्य सचिव को पत्र लिखकर बताया है कि प्रदेश के 53 जिलों में मात्र 2 जिलों में अनुसूचित जाति और 2 जिलों में अनुसूचित जनजाति वर्ग के आईएएस कलेक्टर के रूप में पदस्थ हैं, जबकि प्रदेश में इस वर्ग की जनसंख्या 40 प्रतिशत है। ऐसे में कम से कम 40 प्रतिशत जिलों में दलित एवं आदिवासी वर्ग के आईएएस अधिकारियों को कलेक्टर बनाया जाना चाहिए। देखते हैं कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और मुख्य सचिव इकबाल बैस पर इस मांग का कितना असर होता है।
सिंधिया की जमीनी कुंडली
ग्वा लियर संभाग में उपचुनाव से पहले सिंधिया राज परिवार की जमीनी कुंडली आम मतदाताओं के मोबाइल तक पहुंचाई जा रही है। कांग्रेस ने सोची-समझी रणनीति के तहत 117 पेज की यह कुंडली तैयार की है। इसे पीडीएफ के रूप में तैयार कर हर मतदाता के मोबाइल में भेजकर यह बताने का प्रयास किया जा रहा है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया जन सेवा के नाम पर सरकारी जमीनें हथियाने में लगे है। वैसे सिंधिया पर यह आरोप 4 महीने पहले तक भाजपा लगाती थीं। कांग्रेस के आरोप के बाद भाजपा ने चुप्पी साध ली है। सिंधिया की ओर से भी फिलहाल कोई प्रतिक्रिया नहीं दी जा रही। लेकिन यह तय है कि उपचुनाव सिंधिया की जमीनी कुंडली पर खासा असर डाल सकता है।
अब दीपक पर नजर
पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सागर से भाजपा की पूर्व विधायक पारूल साहू को कांग्रेस में लाकर बुंदेलखंड में भाजपा को तगड़ा झटका दिया है। फिलहाल गोविंद राजपूत और भाजपा के समीकरण उलट-पुलट हो गए हैं। यह बात दूसरी है कि सुरखी में गोविंद सिंह को जिताने की जिम्मेदारी भूपेन्द्र सिंह और गोपाल भार्गव पर रहेगी, इसलिए गोविंद सिंह निश्चिंत दिखाई दे रहे हैं। अब कमलनाथ की नजर पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के बेटे दीपक जोशी को कांग्रेस को लाने पर लग गई है। हाटपिपलिया सीट से जोशी कांग्रेस के उम्मीदवार हो सकते हैं। दीपक जोशी सार्वजनिक रूप से अभी भी यह बयान दे रहे हैं कि उनके लिए सारे रास्ते खुले हैं। यानि हाटपिपलिया में भी सुरखी जैसा कुछ हो सकता है।
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