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कौन हैं ज्ञानवापी सर्वे की कमान संभाल रहे आलोक त्रिपाठी, जानिए

वाराणसी (Varanasi)। उत्तर प्रदेश के वाराणसी में ज्ञानवापी परिसर (Gyanvapi campus in Varanasi, Uttar Pradesh) के आर्कियोलॉजिकल सर्वे  (Archaeological Survey) का काम शुरू कर दिया गया है। पुरातत्व विभाग की टीम (team of archeology) ज्ञानवापी के 600 साल पुराने मस्जिद के तमाम पहलुओं की समीक्षा कर रही है। ज्ञानवापी सर्वे की टीम का नेतृत्व कर रहे एएसआई के अतिरिक्त महानिदेशक डॉ. आलोक त्रिपाठी को अंडरवाटर आर्कियोलॉजिकल विंग के उत्खनन और सर्वेक्षण में विशेषज्ञता हासिल है। उन्हें लक्षद्वीप के बांगरम आइलैंड के समुद्र में प्रिसेंस रॉयल जहाज के अवशेष ढूंढने में सफलता मिली थी।

उन्होंने प्राचीन गुफाओं के रास्ते होने वाले व्यवसाय के बारे में भी रिसर्च किया है। वह असम यूनिवर्सिटी, सिल्चर में बतौर प्रोफेसर सेवाएं दे चुके हैं। वहां इतिहास विभाग के जाने-माने प्रोफेसर थे। वह बचपन से ही आर्कियोलॉजिस्ट बनने का सपना देखते थे। जब वह चौथी कक्षा में थे, तभी पुरातत्वविद बनने की चाह रखने लगे। उन्हें पुरानी चीजों के बारे में जानने और उस पर शोध का शौक था। इसीलिए इतिहास का प्रोफेसर होने के बाद भी ऑर्कियोलिकल विभाग से जुड़े।



क्या है जीएनएसएस मशीन
जीएनएसएस यानी ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम मशीन का उपयोग ज्ञानवापी के वैज्ञानिक सर्वे के दौरान हो रहा है। यह सिस्टम ध्वस्त प्राचीन इमारतों की मलबा के ऊपर से बेहद सटीक मापी करने में सक्षम है।

सेटेलाइट की मदद से इसकी मशीन सिग्नलों के कवरेज क्षेत्र को बढ़ाने, प्राकृतिक या मानव निर्मित बाधाओं के कारण होने वाली रुकावटों को दूर करती है। घने शहरी वातावरण, सुरंगों, इनडोर स्थान और सीमित दृश्यता वाले दूरदराज के क्षेत्र में इस मशीन का इस्तेमाल हो सकता है। इसका भारी उपकरण निर्माण, खनन और सटीक कृषि में भी उपयोग कर सकते हैं।

अंतरिक्ष यान में जीएनएसएस रिसीवर जोड़ने से ग्राउंड ट्रैकिंग स्टेशन के बिना सटीक कक्षा निर्धारण की अनुमति मिलती है। साइकिल चालक अक्सर रेसिंग और टूरिंग में जीएनएसएस का उपयोग करते हैं। नावों और जहाजों, दुनिया की सभी झीलों, समुद्रों व महासागरों में नेविगेट करने के लिए जीएनएसएस का उपयोग किया जाता रहा है।

डॉ. आलोक त्रिपाठी पेशेवर गोताखोर भी हैं। उनका जहाजों के मलबे पर काम रोमांचित करने वाला है। लक्षद्वीप में बांगरम द्वीप पर प्रिंसेस रॉयल जहाज के मलबे की खुदाई का का कार्य कराया। समुद्र के कई राज ढूंढे। उन्होंने कांस्य युग के जहाज पर भी काम किया है। तमिलनाडु के मामल्लापुरम एवं अरिकामेडु, गुजरात के द्वारिका, महाराष्ट्र के एलीफेंटा समेत कई अन्य स्थलों पर शोध किया है।

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