• img-fluid

    शशि थरूर क्यों करवाते रहते हैं अपनी छीछालेदर

  • March 30, 2021

    – आर.के. सिन्हा

    कहते हैं, सुबह का भूला यदि शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते। यह वही बात है कि अगर कोई अपनी एक-दो गलतियों से सीख ले तो उसे नजरअंदाज कर दिया जाता है। पर कांग्रेस सांसद एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर को बार-बार गलत बयानबाजी करने की आदत-सी पड़ गई है। इस वजह से उन्हें अब जनता या मीडिया गंभीरता से नहीं लेती। उनकी पढ़े-लिखे सभ्य इंसान की छवि तार-तार हो रही है।

    मीन-मेख निकालने का रोग
    अब एक ताजा मामला ही लें। हालिया बांग्लादेश यात्रा के समय प्रधानमंत्री मोदी जी के एक भाषण पर उन्होंने गैर जिम्मेदाराना टिप्पणी कर दी। थरूर तथ्यों को बिना जाने-समझे प्रधानमंत्री की मीन मेख निकालने लगे। प्रधानमंत्री मोदी ने ढाका में अपने भाषण के दौरान बांग्लादेश की आजादी में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के योगदान का जिक्र किया था। थरूर कहने लगे कि प्रधानमंत्री मोदी ने इंदिरा गांधी का जिक्र नहीं किया। देखिए प्रधानमंत्री की नीतियों की निंदा लोकतंत्र में सामान्य बात है। पर निंदा का कोई आधार तो हो।

    शशि थरूर संयुक्त राष्ट्र से लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के डावोस के वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में हिन्दी में दिए गए भाषणों का विरोध करते रहे हैं। वे तब सुषमा स्वराज की भी निंदा कर रहे थे, जब उन्होंने संयुक्त राष्ट्र को हिन्दी में संबोधित किया था। वे एक तरह हिन्दी का विरोध जताते हुए खड़े होते हैं तो दूसरी तरफ थरूर अपनी किताबों का हिन्दी में भी अनुवाद जरूर करवाते हैं। शशि थरूर की पुस्तक ‘अन्धकार काल : भारत में ब्रिटिश साम्राज्य’ की प्रतियां कुछ समय पूर्व बाजार में आई। वही थरूर प्रधानमंत्री मोदी के डावोस में हिन्दी में अपनी बात रखने का यह कहते हुए विरोध करने लगे थे कि हिन्दी में बोलने से उनकी बात को दुनियाभर का मीडिया जगह नहीं देगा। पर मोदी के संबोधन को तो न्यूयार्क टाइम्स, वाशिंगटन पोस्ट, बीबीसी ने शानदार तरीके से कवर किया था।

    सुषमा स्वराज ने दिखाया था आईना
    सुषमा स्वराज ने तो एकबार थरूर के लिए यहां तक कह दिया था कि वे अपने आप को बहुत महान चिंतक और विद्वान मानने लगे हैं? उन्हें फिलहाल खुद नहीं पता कि वे हिन्दी के पक्ष में खड़े हैं या विरोध में। अब किसानों के हक में भी शशि थरूर बोलने लगे हैं। कम से कम पिछले तीन पुश्तों से कोलकाता और मुंबई में ही पूरा जीवन बिताने वाले थरूर न जाने कब और कैसे किसान हो गये? ये भी किसानों और गरीबों के कल्याण के लिए ज्ञान बांटते फिर रहे हैं। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध पर केंद्र पर निशाना साधते हुए शशि थरूर ने कहा कि मोदी सरकार ने देश और किसानों को निराश कर दिया है।

    थरूर जी, यह भी देश को बता दें कि आपने अबतक किसानों के हक में क्या किया है? अगर आप सच में किसानों के हित में लड़ने वाले होते तो आप भी सिंघू बॉर्डर या टिकरी जैसे इलाकों में तम्बू गाड़कर जमे होते। आपको भी किसानों के साथ रात में सोना चाहिए था। आप कतई किसानों के बीच में नहीं जाएंगे। आप घनघोर सुविधाभोगी हैं। आपको सत्ता का सुख लेने की आदत पड़ी हुई है। इसलिए आपसे संघर्ष की अपेक्षा करना गलत होगा। लेकिन, आप पहली पंक्ति के बयानवीर जरूर हो।

    साफ है कि थरूर मोदी जी और एनडीए सरकार की लगभग अकारण निंदा, सोनिया गांधी और राहुल गांधी को इम्प्रेस करने के लिए करते रहते हैं। शशि थरूर का भॉटगिरी में फंसना खल जाता है। जो भी कहिए वे हैं तो विद्वान। मेरे शशि थरूर के पूरे परिवार से दशकों पुराने संबंध हैं। सत्तर के दशक में जब शशि थरूर के पिता चन्द्रन थरूर दि स्टेट्समैन अखबार में ऊंचे पद पर थे, तब से मैं उन्हें जानता था। जब बांग्लादेश युद्ध के जोखिम भरे असाइनमेंट के बाद मैं कोलकाता लौटा था, तब चन्द्रन ने मेरे लिए बंगाल क्लब में डिनर पार्टी दी थी, जिसमें अनेक वरिष्ठ पत्रकार शामिल हुए थे। उस दौर में जब कभी मैं कलकत्ता जाता, उनके घर जरूर जाता था। शशि थरूर की माताजी तरह-तरह के व्यंजन बनातीं। मैं और चन्द्रन बालकनी में बैठे सामने के ख़ूबसूरत बाग़ों को निहारते रहते।

    बाद में अस्सी के दशक में जब चन्द्रन के बड़े भाई और शशि थरूर के ताऊ जी पी. परमेश्वरन ” रीडर्स डाइजेस्ट” के संपादक पद से रिटायर हुए, तब चन्द्रन थरूर ” रीडर्स डाइजेस्ट ” के मैनेजिंग एडिटर होकर मुंबई आ गये थे। तब मैं जे.पी. आन्दोलन में सक्रियता की वजह से हिन्दुस्तान टाइम्स ग्रुप के दैनिक “सर्चलाइट” और “प्रदीप” (अब हिन्दुस्तान टाइम्स” और “दैनिक हिन्दुस्तान” पटना संस्करण) से निकाल दिया गया। तब मैं “धर्मयुग” मुंबई के लिये नियमित लिखने लगा। तब मेरे भी मुंबई के हर महीने चक्कर लगने लगे। गेटवे ऑफ़ इंडिया के पास बल्लार्ड एस्टेट्स में “रीडर्स डाइजेस्ट” में चन्द्रन साहब का वह आलीशान दफ़्तर था। लेकिन, वे मेरे जैसे साधारण मित्र को पूरी तरह सम्मान देने और मेहमाननवाजी में कसर नहीं छोड़ते। चंद्रन साहब रहते तो पूरे अंग्रेज की तरह ही थे। लेकिन, कुछ देर बैठकर ही आपको पता लग जाता था कि आप केरल के एक संस्कारी कर्मकांडी ब्राह्मण के साथ बैठे हैं।

    अब इतने शानदार माता-पिता का पुत्र सोनिया गांधी-राहुल गांधी के तलवे चाटने लगेगा, मैंने यह सपने में नहीं सोचा था। शशि थरूर कांग्रेस में हैं तो वे कांग्रेस पार्टी के अनुशासन से भी बंधे हैं। यह बात भी सही है। यह भी सही है कि वे पार्टी नेतृत्व की सार्वजनिक निंदा नहीं कर सकते। पर क्या उन्हें यह शोभा देता है कि वे देश के प्रधानमंत्री के भाषण को बिना पढ़े-समझे उसकी कमियां निकालने लगे? क्या प्रधानमंत्री अगर किसी अंतरराष्ट्रीय मंच पर हिन्दी में अपनी बात रखते हैं तो उन्हें क्यों तकलीफ होती है? प्रेम और सौहार्द की भाषा हिन्दी, जिसे भारत के करोड़ों नागरिक बोलते हैं, उसमें भाषण देना गलत कैसे हो जाता है? क्या आप मोदी जी की निंदा करने के बहाने कहीं न कहीं अपना हिन्दी विरोध तो दर्ज नहीं करवा रहे?

    प्रजातंत्र की प्राण और आत्मा है वाद-विवाद-संवाद। थरूर में विपक्ष का प्रखर नेता बनने की असीम संभावनाएं देश देख रहा था। वे पढ़े-लिखे मनुष्य हैं, स्तरीय अंग्रेजी बोलते-लिखते हैं। पर उन्होंने अपनी क्षमताओं का देशहित में दोहन नहीं किया। उनकी कोशिश यही रहती है कि देश उन्हें एक प्लेबॉय राजनीतिज्ञ के रूप में जाने।

    (लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)

    Share:

    इस Actress ने अपने नाना पर लगाया Sexually Abused का आरोप, किए कई खुलासे

    Tue Mar 30 , 2021
    वॉशिंगटन। हॉलिवुड अभिनेत्री शेरॉन स्टोन (Hollywood actress Sharon Stone) ने खुलासा किया है कि बचपन में उन्हें यौन शोषण (Sexually Abused) का शिकार होना पड़ा था। उन्होंने कहा है कि बचपन में उनके नाना ने उनका यौन शोषण किया था। शेरॉन ने अपने संस्मरण ‘द ब्यूटी ऑफ लिविंग ट्वाइस’ (The Beauty of Living Twice) में […]
    सम्बंधित ख़बरें
  • खरी-खरी
    शुक्रवार का राशिफल
    मनोरंजन
    अभी-अभी
    Archives
  • ©2024 Agnibaan , All Rights Reserved