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आखिर क्यों जरूरी है भारत के लिए एस-400 डील

– योगेश कुमार गोयल

पिछले सप्ताह अमेरिकी प्रतिनिधि सभा ने भारत को रूस से एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीदने के लिए काटसा प्रतिबंधों से खास छूट दिलाने वाले एक संशोधित विधेयक को पारित कर दिया, जिसके बाद भारत रूस से बिना किसी रोकटोक के एस-400 मिसाइल सिस्टम खरीद सकेगा। दरअसल 2017 में बने अमेरिकी कानून ‘काटसा’ के अनुसार यदि रूस, उत्तरी कोरिया अथवा ईरान के साथ कोई भी देश रक्षा या जासूसी संबंधी कोई डील करता है तो उसे अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करना होगा लेकिन भारत को इससे छूट दिया जाना निश्चित रूप से भारतीय कूटनीति की बड़ी सफलता है। वैसे भारत इस मामले में सख्त रुख अपनाते हुए सदैव यही कहता आया है कि रूस से इस महत्वपूर्ण रक्षा सौदे को लेकर वह किसी भी तरह के बाहरी दबाव में नहीं आएगा और रक्षा खरीद में राष्ट्रीय सुरक्षा हितों को प्राथमिकता दी जाएगी।

प्रश्न यह है कि भारत के लिए रूस से एस-400 की डील आखिर इतनी महत्वपूर्ण क्यों है? दरअसल चीन, पाकिस्तान तथा अन्य दुश्मन पड़ोसी देशों से निपटने के लिए भारत को इस रक्षा प्रणाली की सख्त जरूरत है। एस-400 प्रणाली को भारतीय वायुसेना के बेड़े में शामिल करने के लिए रूस के साथ महत्वपूर्ण करार होने के बाद तत्कालीन वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल बीएस धनोआ ने कहा था कि एस-400 तथा राफेल विमान वायुसेना के लिए ‘बूस्टर खुराक’ होगी।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच 2018 में हुई शिखर बैठक के दौरान भारतीय वायुसेना को ताकत प्रदान करने के लिए करीब 5.43 अरब डॉलर में एस-400 एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल रक्षा प्रणाली की पांच इकाईयां खरीदने का करार हुआ था। रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक एस-400 के वायुसेना में शामिल होने के बाद भारत जमीन की लड़ाई भी आसमान से ही लड़ने में सक्षम हो जाएगा। मल्टीफंक्शन रडार से लैस दुश्मन की बर्बादी का ब्रह्मास्त्र मानी जाने वाली एस-400 दुनियाभर में सर्वाधिक उन्नत मिसाइल रक्षा प्रणालियों में से एक है, जो रूसी सेना में 2007 में सम्मिलित हुई थी।

यह ऐसी प्रणाली है, जिसके रडार में आने के बाद दुश्मन का बच पाना असंभव हो जाता है। इसके हमले के सामने भागना तो दूर, संभलना भी मुश्किल होता है। कुछ रक्षा विशेषज्ञ इसे जमीन पर तैनात ऐसी आर्मी भी कहते हैं, जो पलक झपकते सैकड़ों फीट ऊपर आसमान में ही दुश्मनों की कब्र बना सकती है। यह एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम तीन तरह की अलग-अलग मिसाइल दाग सकता है और इसे ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भी आसानी से पहुंचाया जा सकता है। यही नहीं, नौसेना के मोबाइल प्लेटफॉर्म से भी इसे दागा जा सकता है।

रूस से यह मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीदने वाला पहला देश चीन था। भारत के लिए रूस से यह मिसाइल रक्षा प्रणाली हासिल करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि देश के लिए सबसे बड़ा खतरा बनते पड़ोसी देश चीन ने रूस से 2014 में ही एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीद ली थी, इसलिए 3488 किलोमीटर लंबी भारत-चीन सीमा की सुरक्षा के मद्देनजर एस-400 रक्षा प्रणाली हासिल करना और अपनी रक्षा प्रणाली को मजबूत करते हुए वायुसेना की ताकत बढ़ाना भारत के लिए बेहद जरूरी हो गया है।

यह प्रणाली जमीन से मिसाइल दागकर हवा में ही दुश्मन की ओर से आ रही मिसाइलों को नष्ट करने में सक्षम है। यह एक साथ 36 लक्ष्यों और दो लॉन्चरों से आने वाली मिसाइलों पर निशाना साध सकती है और 17 हजार किलोमीटर प्रतिघंटा की गति से 30 किलोमीटर की ऊंचाई तक अपने लक्ष्य पर हमला कर सकती है। एस-400 में मिसाइल दागने की क्षमता पहले से ढाई गुना ज्यादा है। यह कम दूरी से लेकर लंबी दूरी तक मंडरा रहे किसी भी एरियल टारगेट को पलक झपकते ही हवा में ही नष्ट कर सकती है। यह मिसाइल प्रणाली पहले अपने टारगेट को स्पॉट कर उसे पहचानती है, उसके बाद मिसाइल सिस्टम उसे मॉनीटर करना शुरू कर देता है और उसकी लोकेशन ट्रैक करता है। रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक इस मिसाइल प्रणाली को अगर आसमान में फुटबॉल के आकार की भी कोई चीज मंडराती हुई दिखाई दे तो यह उसे भी डिटेक्ट कर नष्ट कर सकती है।

एस-400 रक्षा प्रणाली को केवल पांच मिनट में ही युद्ध के लिए तैयार किया जा सकता है। 600 किलोमीटर की दूरी तक निगरानी करने की क्षमता से लैस एस-400 की मदद से भारत के लिए पाकिस्तान के चप्पे-चप्पे पर नजर रखना भी संभव हो सकेगा। यह किसी भी प्रकार के विमान, ड्रोन, बैलिस्टिक व क्रूज मिसाइल तथा जमीनी ठिकानों को 400 किलोमीटर की दूरी तक ध्वस्त करने में सक्षम है। इसके जरिये भारतीय वायुसेना देश के लिए खतरा बनने वाली मिसाइलों की पहचान कर उन्हें हवा में ही नष्ट कर सकेगी।

भारत की रक्षा जरूरतों की बात करें तो भारत दुनिया के सबसे बड़े हथियार खरीदार देशों में से एक है, जो हथियार और रक्षा उपकरण सबसे ज्यादा रूस से ही खरीदता रहा है। कभी भारत की करीब 80 फीसदी रक्षा जरूरतें रूस से ही पूरी होती थी किन्तु वक्त की मांग के अनुरूप भारत ने अमेरिका, फ्रांस और इजरायल के साथ भी कई बड़े रक्षा समझौते किए लेकिन फिर भी करीब 58 फीसदी रक्षा सौदे भारत आज भी रूस के साथ ही करता है।

अगर 2013 से 2017 के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि दुनियाभर में हथियारों का करीब 12 फीसदी आयात भारत में ही हुआ, जो अन्य देशों के मुकाबले सर्वाधिक था। वैसे हथियार उत्पादन की ‘मेक इन इंडिया’ मुहिम में भी रूस भारत का बहुत बड़ा मददगार साबित हो रहा है। मेक इन इंडिया सैन्य प्रोजेक्ट के तहत रूस के पास 12 अरब डॉलर की परियोजनाएं हैं। इसके अलावा सैन्य विशेषज्ञों के मुताबिक करीब 25 अरब डॉलर के हथियारों की खरीद और होने के आसार हैं।

बहरहाल, रूस से एस-400 की आपूर्ति की राह में जिन अमेरिकी प्रतिबंधों के कांटे बोए जाने की आशंका लंबे समय से मंडरा रही थी, भारत के कड़े रुख और सफल विदेश नीति के चलते उस बाधा का दूर होना निश्चित रूप से भारत के लिए राहत की बात है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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