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क्‍या ज्योतिरादित्य सिंधिया की 108 करोड़ की जिद होगी पूरी? जानिए पूरा मामला

भोपाल. केंद्रीय उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) अपने क्षेत्र शिवपुरी (Shivpuri) में बाघ बसाने की तैयारी में हैं. इसके लिए उन्‍होंने केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय (Union Ministry of Forest and Environment) को पत्र लिखा है. सिंधिया ने 25 साल पहले माधव नेशनल पार्क से गायब हुए बाघों को दोबारा बसाने की मांग की है. इसके साथ उन्‍होंने माधव नेशनल पार्क (Madhav National Park) में बाघों को बचाने के लिए जरूरी कदम उठाने की भी मांग की है.

केंद्रीय मंत्री और राज्‍यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया की मांग के साथ माधव नेशनल पार्क प्रबंधन ने 108 करोड़ रुपये का प्रस्ताव वाइल्ड लाइफ मुख्यालय को भेजा है. अब इस प्रस्ताव को वाइल्ड लाइफ बोर्ड में रखा जाएगा. इस राशि से पार्क के कुछ हिस्सों में और पार्क के बीच से गुजरने वाली सड़क के किनारे फेंसिंग की जाएगी, जिससे बाघ पार्क से निकलकर लोगों पर हमला न कर सकें. माधव नेशनल पार्क में 25 साल पहले बाघ थे, इसके बाद वहां पर बाघ नहीं देखे गए.

बता दें कि करीब 25 साल पहले कांग्रेस सरकार ने खनन माफिया के दबाव में बाघों को दूसरे नेशनल पार्क को में विस्थापित कर दिया था. इसके बाद से यह पार्क बाघों से महरूम हो गया था. माधव नेशनल पार्क में तेंदुआ, भालू समेत कई वन्य प्राणी हैं. पार्क के विकसित होने पर प्रदेश में बढ़ रहे बाघों का नया ठिकाना हो सकता है. हालांकि, खबर इस बात को लेकर है कि सिंधिया ने पहले प्रदेश वाइल्डलाइफ मुख्यालय को माधव नेशनल पार्क में बाघों को बसाने को लेकर पत्र लिखा था, जिसपर एमपी वाइल्डलाइफ बोर्ड ने असहमति जाहिर कर दी थी, क्योंकि माधव में बाघों को बचाने पर 100 करोड़ से ज्यादा का खर्च आना है.

साथ ही माधव नेशनल पार्क को अब बाघों के लिहाज से उपयुक्त नहीं माना जा रहा है. यदि माधव नेशनल पार्क को बाघों के लिए उपयुक्त बनाया जाएगा तो जगह-जगह घास के मैदान तैयार करने होंगे. वहीं, पानी के लिए तालाब बनाने होंगे. इसके साथ ही शाकाकारी वन्य प्राणियों को भी विस्थापित किया जाना होगा, ताकि बाघों को शिकार के लिए भटकना पड़े. बहरहाल सिंधिया की मंशा थी कि माधव नेशनल पार्क में शेर चीता बताया जाए, लेकिन माधव नेशनल पार्क के चीता के लिए उपयुक्त नहीं होने के कारण अब यहां पर बाघ बचाने की मांग ने जोर पकड़ लिया है. देखना यह होगा कि ज्योतिरादित्य सिंधिया की मांग को केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय कब तक मंजूरी देता है.

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