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कब होगा होलिका दहन? यहां जानें तिथि, शुभ मुहूर्त से लेकर नियम व व्रत कथा के बारे में सबकुछ

नई दिल्ली (New Delhi)। होलाष्टक फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से फाल्गुन मास (Falgun month) की पूर्णिमा तक माना जाता है। इस 8 दिन की अवधि में सभी शुभ कार्य वर्जित होते हैं। पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है। इस साल होलिका दहन (Holika Dahan ) 7 मार्च 2023 को है और होली का त्योहार 08 मार्च 2023 को मनाया जाएगा। शास्त्रों में होलिका दहन के कुछ नियम बताए गए हैं। आप भी जान लें-

1. होलिका दहन के दिन भद्रा प्रबल नहीं होनी चाहिए। विष्टि करण (जो 11 करणों में से एक है) भद्रा का दूसरा नाम है। 1 करण एक तिथि के आधे के बराबर होता है।

2. पूर्णिमा प्रदोष काल में प्रबल होनी चाहिए। दूसरे शब्दों में सूर्यास्त के बाद अगले 3 मुहूर्त तक पूर्णिमा प्रबल होनी चाहिए।


होलिका दहन 2023 का शुभ मुहूर्त (Shubh Muhurat)-
होलिका दहन मुहूर्त :18:24:31 से 20:51:30
अवधि :2 घंटे 26 मिनट
भद्रा पंच :01:02:09 से 02:19:29 तक
भद्रा मुख :02:19:29 से 04:28:23

होलिका के अगले दिन रंग वाली होली-
होलिका दहन (जिसे छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है) के अगले दिन, मस्ती और जोश (fun and excitement) के साथ रंगों से खेलने की प्रथा है। लोग एक-दूसरे को रंग लगाते हैं और गले मिलते हैं।

होलिका दहन से जुड़ी पौराणिक कथा-
हिंदू पुराणों के अनुसार, जब हिरण्यकश्यप (राक्षसों के राजा) ने देखा कि उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु (Lord Vishnu) की पूजा करता है, तो वह वास्तव में क्रोधित हो गया। उसने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठने का आदेश दिया। ऐसा इसलिए है क्योंकि होलिका को वरदान प्राप्त था कि उसे आग में नहीं जलाया जा सकता। हालांकि, योजना के अनुसार चीजें नहीं हुईं। होलिका आग में जलकर राख हो गई और विष्णु भक्त प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ। इसी घटना की स्मृति में होलिका दहन (होलिका मानकर होलिका दहन) करने का विधान है। होली का त्योहार यह संदेश देता है कि इसी तरह भगवान अपने भक्तों की रक्षा के लिए उपलब्ध रहते हैं।

होलिका दहन का इतिहास-
होली का वर्णन बहुत पुराने समय से देखा जाता है। प्राचीन विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हम्पी में 16वीं शताब्दी की एक तस्वीर मिली है। यह चित्र होली के उत्सव को दर्शाता है। इसी प्रकार विंध्य पर्वत के निकट रामगढ़ में 300 ईसा पूर्व का एक शिलालेख मिला है, जिसमें होली का वर्णन है। कुछ लोगों का मानना ​​है कि इस दिन भगवान कृष्ण ने पूतना नाम की राक्षसी का वध किया था। उनकी जीत का जश्न मनाते हुए गोपियों ने उनके साथ होली मनाई।

नोट- उपरोक्‍त दी गई जानकारी व सुझाव सिर्फ सामान्‍य सूचना के उद्देश्‍य से पेश की गई है हम इन पर किसी भी प्रकार का दावा नहीं करते हैं।

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