लखनऊ । उत्तर प्रदेश के 18 जिले (18 Districts of Uttar Pradesh) पराली जलाने पर रोक लगाने में (To Stop Stubble Burning) विफल रहे (Failed) । यह बात मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्रा की समीक्षा बैठक में सामने आई । मिश्रा ने 18 जिलों- गौतम बुद्ध नगर, गाजियाबाद, सहारनपुर, शामली, अलीगढ़, मथुरा, संभल, मेरठ बुलंदशहर, बरेली, लखीमपुर खीरी, पीलीभीत, शाहजहांपुर, फतेहपुर, बाराबंकी, कानपुर, हरदोई और रामपुर को पराली जलाने में विफल रहने के लिए चिन्हित किया । ये जिले जहां राज्य सरकार के रडार पर आ गए हैं, वहीं मुख्य सचिव ने सभी जिला अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से इस समस्या की जांच के लिए कदम उठाने को कहा है।
इसमें दैनिक निगरानी और मानदंडों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करना शामिल है। साल दर साल पराली (एनजीटी) की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के सख्त निर्देशों के बावजूद स्थिति सामने आई है। उत्तर प्रदेश सरकार ने भी 2019 से इस मुद्दे पर चार आदेश जारी किए हैं, हाल ही में एक आदेश इस साल 10 अक्टूबर को जारी किया है।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के मुताबिक, राज्य में 6 अक्टूबर तक फसल जलने के 80 मामले दर्ज किए गए, जबकि पिछले साल 52 दर्ज किए गए थे। 2020 में पराली जलाने की 101 घटनाएं दर्ज की गईं। एक अनुमान के अनुसार, उत्तर प्रदेश कृषि अवशेष (40 मीट्रिक टन) का उच्चतम उत्पादक है, इसके बाद महाराष्ट्र (31 मीट्रिक टन) और पंजाब (28 मीट्रिक टन) का नंबर आता है।
पिछले साल, राज्य के कृषि विभाग ने कृषि अवशेषों के निपटान के लिए एक महत्वपूर्ण उपाय के रूप में आवारा मवेशियों को पराली खिलाने का प्रस्ताव रखा था। योगी सरकार ने आवारा पशुओं के लिए बने आश्रय गृहों तक पराली पहुंचाने का भी प्रस्ताव दिया था।
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