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दुनिया के सबसे खतरनाक वॉर जोन्स में 20 करोड़ बच्चे फंसे, ये है भयानक त्रासदी की दास्तां…

नई दिल्‍ली । जंग तो ख़ुद ही एक मसला है, जंग क्या मसलों का हल देगी… मशहूर लेखक-शायर साहिर लुधियानवी की लिखी ये पंक्तियां दुनिया के आज के हालात को बयां करती हुई एकदम सही साबित होती हैं. इतिहास की या वर्तमान की कोई भी जंग हो वह शासकों के अहंकार, साम्राज्य बढ़ाने की ललक और सैन्य ताकत के अभिमान को लेकर शुरू होती है लेकिन आम लोगों की जिंदगी पर उसका क्या असर होता है इस पर अगर गौर किया जाए तो दुनिया की एक अलग ही तस्वीर नजर आती है.

आज रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine War) के चलते हुए 9 महीने हो गए हैं, अफगानिस्तान में तालिबान (Taliban in Afghanistan) शासन के जुल्म जारी हैं, सीरिया-इराक-यमन, आर्मीनिया-अजरबैजान जैसे वॉर जोन या माली, सूडान, कॉन्गो, सोमालिया, नाइजीरिया, कैमरून समेत दुनिया के कई हिस्सों में Conflict zone खुले हुए हैं. हजारों-लाखों लोगों की मौतें हो रही हैं तो उनसे भी कई गुना ज्यादा लोग गोलीबारी-बमबारी, मिसाइल अटैक (missile attack) और हवाई हमलों (air strikes) में विकलांग (Handicap) तक हो जा रहे हैं. लाखों लोगों के घर-बार तबाह हो रहे हैं और लोग विस्थापित हो रहे हैं. शहर के शहर और कस्बे-गांव तबाह हो रहे हैं. स्कूलों पर, अस्पतालों पर बमबारी, हवाई हमले और मिसाइल अटैक हो रहे हैं.

मानवीय संकट कितना बड़ा?
जंग में उलझा देश कोई भी हो, दुनिया का इलाका कोई भी हो लेकिन इस तबाही के बीच सबसे बुरा हाल महिलाओं और बच्चों का है. UNICEF के आंकड़ों के अनुसार, युद्ध-लैंडमाइन ब्लास्ट, हवाई हमलों और विस्फोटों में मारे गए कुल लोगों में से आधे बच्चे होते हैं. UNICEF के डेटा के अनुसार आज दुनिया के सबसे खतरनाक वॉर जोन्स में 20 करोड़ बच्चे घिरे हुए हैं, जबकि क्लाईमेट चेंज-आतंकवाद जैसी बाकी समस्याओं को भी मिला लें तो 42 करोड़ से अधिक बच्चे Conflict zones में त्रासदी जैसी जिंदगी जी रहे हैं. यानी दुनिया के हर 6 में से 1 बच्चा कंफ्लिक्ट जोन में जी रहा है.


उनके पास न तो कोई सुविधा है, न कोई फ्यूचर… इन संकटग्रस्त इलाकों में सिर्फ किशोरवय बच्चियां ही 9 करोड़ से अधिक हैं. जिनकी उम्र 10 से 17 साल के बीच है. उनकी जिंदगी में जंग-आतंकवाद की समस्याओं ने केवल बेबसी, विस्थापन और शरणार्थी जीवन का अंधियारा भर दिया है. इन वॉर जोन में न तो बाल अधिकारों का कोई संरक्षण है, न मानवाधिकार के पालन का कोई सिस्टम है. यहां शोषण, भुखमरी, चाइल्ड ट्रैफिकिंग और अत्याचार का सामना इन करोड़ों बच्चों को करना पड़ रहा है. यूएन की एक रिपोर्ट के अनुसार इन कंफ्लिक्ट जोन में रोजाना बच्चों के खिलाफ अत्याचार-शोषण के 65 मामले दर्ज होते हैं, और ऐसे मामले हजारों नहीं लाखों की संख्या में हैं. न जाने इससे कितना गुना ज्यादा हिंसा और अत्याचार के मामले बिना दर्ज हुए रह जाते हैं. इस हालात से इन इलाकों में फंसे बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर हो रहा है.

यूक्रेन के हालात
पहले कोरोना महामारी ने दो साल तक तबाही मचाई और उसके बाद यूक्रेन में जारी जंग के बीच बच्चों पर अत्याचार, ह्यूमैन ट्रैफिकिंग, शारीरिक अंगों की अवैध तस्करी, बंधुआ मजदूरी, शोषण, रेप, बाल विवाह समेत कई शिकायतें लगातार सामने आ रही हैं. खासकर यूक्रेन के उन इलाकों में जहां रुसी सैनिकों का कब्जा हो गया. यूएन की रिपोर्ट के अनुसार युद्ध छिड़ने के एक महीने के भीतर ही यूक्रेन के आधे से अधिक बच्चों को विस्थापन झेलना पड़ा. बड़ी संख्या में बच्चे मिसाइल और हवाई हमलों के शिकार बने और जो लोग पौलैंड जैसे पड़ोसी देशों में जान बचाने के लिए पहुंचे भी उन्हें और उनके बच्चों को शरणार्थी शिविरों में कैद होकर रह जाना पड़ा है. यूक्रेन में ह्यूमैन राइट एजेंसी ने बच्चों पर अत्याचार और शोषण के कई मामले दर्ज किए. एजेंसी ने रूसी सेना पर अवैध रूप से यूक्रेनी लोगों को बंधक बनाकर रूसी इलाके में ले जाने का आरोप भी लगाया. यूक्रेन के वॉर जोन से बच्चों पर अत्याचार की कई रिपोर्टें स्थानीय मीडिया की रिपोर्टों में सामने आई.

भयावह है वॉर जोन्स की ग्राउंड स्टोरीज…
अफ्रीकी देश इथियोपिया में जारी जंग वहां की आबादी पर किस हद तक त्रासदी लेकर आई है इसका अंदाजा वॉर जोन में फंसे तीन बच्चों की कहानियों से लगाया जा सकता है. इथियोपिया के टिगरे इलाके में जब जंग की शुरुआत हुई तो हिंसा पड़ोस के अफार और अम्हारा इलाकों में भी फैल गया. यहां से जंग के कारण 20 लाख लोगों को घर-बार छोड़कर विस्थापित होना पड़ा. हजारों स्कूल बमबारी में तबाह हो गए. जो बच गए उनका इस्तेमाल शरणार्थी कैंपों के रूप में होने लगा. इस त्रासदी से टिगरे, अफार और अमराह में करीब 30 लाख लड़के-लड़कियों की पढ़ाई-लिखाई बंद हो गई और फ्यूचर तबाह हो गया. इन बच्चों में जो हिंसक लड़ाई में बच गए उनकी जिंदगी शरणार्थी कैंपों में सिमट कर रह गई.

11 साल की आस्या की कहानी
जंग थोपने वाले लोगों की सनक के शिकार इन लाखों बच्चों में थी अफार की रहने वाली 11 साल की आस्या. संघर्ष के कारण आस्या का परिवार बेघर होने को मजबूर हो गया. अफार क्षेत्र के शिफ्रा इलाके के शरणार्थी शिविर में इस परिवार को जगह मिली. इस बच्ची से जब UNICEF के राहत दल के लोगों ने पूछा कि शांति का मतलब उसके लिए क्या है तो उसका जवाब था- ‘मेरे लिए शांति का मतलब है स्कूल जाना, परिवार के साथ रहना और खेलने का मौका मिलना.’

आस्या ने युद्ध का वो मंजर बयां किया- जब मैं गोलियों की आवाज सुनती हूं तो काफी डर जाती हूं. युद्ध शुरू हुआ तो मेरे आस-पड़ोस के सभी लोग इधर-उधर भाग रहे थे. हमारे परिवार को भी इलाका छोड़ना पड़ा. हमें अस्कुमा नामक जगह में शरण मिली. हम एक दिन वहां रुके और अगले दिन शिफ्रा आ गए.’ बाद में जब हालात थोड़े सुधरे तो शिफ्रा में आस्या के परिवार ने किराए पर एक कमरा लिया. यहां रहने का तो जुगाड़ हो गया लेकिन आस्या को अपना घर, अपने दोस्तों और खेलने के खुले इलाके की बहुत याद आती है. इस युद्ध ने आस्या की पूरी जिंदगी बदल दी. आस्या को पता नहीं कि कब हालात सुधरेंगे और कब वे अपने दोस्तों के पास वापस जा सकेगी. उसे नहीं पता कि वो कभी स्कूल जा पाएगी या नहीं? वो कहती है- मैं अपनी पढ़ाई छोड़ना नहीं चाहती हूं, मैं स्कूल जाना चाहती हूं. आस्या डॉक्टर बनना चाहती है ताकि युद्ध में घायल लोगों और बीमार लोगों का इलाज कर सके.

11 साल के टेमेस्गेन की कहानी
टिगरे के वॉरजोन में फंसे 11 साल के बच्चे टेमेस्गेन की आंखों में सपना है एक साइंटिस्ट बनने का. वह राहत दलों को मुस्कराकर बताता है कि कैसे स्कूल की साइंस टीम में उसके बनाए मॉडल एयरप्लेन को फंड करने में मदद करने का वादा यूनिवर्सिटी ने किया था. टेमेस्गेन बताता है- ‘मैं जब अपने स्कूल के दिनों को याद करता हूं को वो एक सपना जैसा लगता है. मैं साइंटिस्ट बनना चाहता था. अब मैं शरणार्थी कैंप में हूं. यहां लोग मेरा ध्यान रखते हैं.’

16 साल की मेसेरेट की दास्तान
इथियोपिया के उसी वॉर जोन के अम्हारा इलाके में रहने वाली 16 साल की मेसेरेट की कहानी भी कम भवायह नहीं है. जब युद्ध की शुरुआत हुई तो मेसेरेट अपने इलाके कोबो से अपने दो छोटे भाइयों को लेकर भाग गई. उसकी मां वहीं रह गई. शरणार्थी शिविर में इन तीनों को जगह मिली. अपने मां-बाप से बिछड़े बाकी बच्चों के साथ ये लोग भी अब शरणार्थी शिविर के पास बने स्कूल में जाते हैं. मेसेरेट ने जंग के हालात को राहत टीम के साथ बयां किया- ‘जब लड़ाई छिड़ी तो हमारे घरों पर गोलियों की बरसात होने लगी. पड़ोस में कई लोग मारे गए. हम अपने दादा-दादी के साथ थे और बचने के लिए वहां से भाग गए. मैं अपनी मां के बारे में सोचती हूं. मैंने सुना है वहां कई लोग मारे गए. मुझे उन लोगों की काफी चिंता होती है.’

मेसेरेट शरणार्थी शिविर के स्कूल में ग्रेड-7 में पढ़ती है. लेकिन उसे भरोसा नहीं है कि आगे भी वह पढ़ाई जारी रख पाएगी. उसे ये भी पता नहीं है कि उसके बचपन के दोस्त कहां हैं. अब उसने कुछ नए फ्रेंड्स बनाए हैं जो कि खुद विस्थापित होकर शरणार्थी शिविर में रहते हैं.

यमन का वॉर जोन
इथियोपिया की तरह ही यमन, सीरिया, नाइजीरिया, साउथ सूडान आदि देशों के वॉर जोन में फंसे बच्चों की हालत भी कुछ ऐसी ही है. यूएन जैसी एजेंसियां इन इलाकों में राहत दल भेजकर कुछ मदद पहुंचाने की कोशिश कर रही हैं. इन दलों के स्थानीय लोगों से बातचीत में उनकी दुर्दशा की कहानियां सामने आ रही हैं. यमन के युद्ध क्षेत्र में घिरी 2 साल की बच्ची अमानी की जब स्वास्थ्य जांच की गई तो वह कुपोषण की शिकार निकली. अमानी का भाई भी जांच के लिए कैंप आया है. ये दोनों यमन के युद्ध के कारण भुखमरी से जूझ रहे यमन की उस आधी आबादी में से हैं जिनकी जिंदगी हउती विद्रोहियों से चल रही यमनी सरकार की लड़ाई के कारण नर्क होकर रह गई है. युद्ध के कारण यमन में खाने के सामान की कीमतें आसमान पर हैं. यहां के अधिकांश परिवारों के लिए सिर्फ सूखी रोटी का जुगाड़ कर पाना ही सबसे बड़ी जंग है. यमन में भुखमरी और कुपोषण का सामना कर रहे अमानी जैसे 33 लाख महिलाएं और बच्चे हैं. यूएन वर्ल्ड फूड प्रोग्राम इन संकटग्रस्त इलाकों में फंसे लोगों को खाना और जरूरी दवाइयां पहुंचाकर जीवन बचाने की कोशिशों में लगा है.

सीरिया का वॉर जोन
सीरिया के वॉर जोन में फंसी 10 साल की खितम की उम्र उतनी ही है जितनी सीरिया में जारी ताजा संकट की. उसकी अब तक की पूरी जिंदगी युद्ध के बीच, भुखमरी के बीच, अभावों के बीच गुजरी है. लेकिन उसकी आंखों में सपना है आर्ट टीचर बनने का. सीरिया युद्ध और कोविड संकट ने सीरिया में लाखों बच्चों को भुखमरी के संकट में डाल दिया है. न तो सीरिया में सरकारी स्थिर है और न सिस्टम और ऊपर से जंग जारी. ऐसे में कौन कहां से इन बच्चों के संकट की सुध लेगा? इनके जीवन का अंधियारा कब खत्म होगा किसी को पता नहीं.

नाइजीरिया के वॉर जोन से
नाइजीरिया जहां की मिलिशिया से लंबे समय से जंग जारी है वहां की फातिमा की कहानी ग्राउंड की असल तस्वीर सामने रखती है. नाइजीरिया में जब हथियारबंद मिलिशिया ने हमला किया तो फातिमा के परिवार को वहां से भागना पड़ा. उस समय वह प्रेग्नेंट थी और पोषण के लिए यूएन राहत समूह द्वारा मुहैया कराए जा रहे खाने पर कई महीनों तक उसे निर्भर रहना पड़ा. जन्म लेने के दो महीने बाद ही उसके बच्चे की जान चली गई. फिर वह राहत एजेंसियों की मदद से अपने परिवार से मिली और यूएन से मिले खाने से वह अपनी नई बच्ची अमाडू को पाल रही है. उसे उम्मीद है कि इसकी जिंदगी भविष्य में शायद बदल जाए. नाइजीरिया के इस इलाके के लोग न सिर्फ 2009 से जारी संघर्ष, बल्कि गरीबी, क्लाइमेट चेंज और हिंसा से जूझ रहा है. अमाडू के जैसे इस इलाके के 10 लाख बच्चे जिनकी उम्र 10 साल से कम है वे कुपोषण की समस्या से जूझ रहे हैं.

कॉन्गो डीआरसी के वॉर जोन से
दुनिया के सबसे खतरनाक कंफ्लिक्ट जोन में से एक कॉन्गो में नन्हीं Tshela जैसी लाखों बच्चियां कुपोषण की मार झेल रही है. यहां संघर्ष में मारे जाने और विस्थापित हुए लोगों की तादाद लाखों में है. जब यहां संघर्ष की शुरुआत हुई तो Veronique नामक महिला Tshela समेत अपने पांच बच्चों के साथ अपने गांव से भागकर शरणार्थी शिविर में पहुंची. दिनभर काम करके वह इनके लिए सुबह और शाम का खाना जैसे-तैसे जुटा पाती है. बच्चे कुपोषित हैं. कॉन्गो भुखमरी का सामना कर रहे दुनिया के सबसे गंभीर संकट वाले देशों में है. सिविल वॉर के कारण यहां के 34 लाख बच्चे दोनों टाइम खाना नहीं खा पाते और कुपोषण की विभिषिका झेलने को मजबूर हैं.

साउथ सूडान के वॉर जोन से
साउथ सूडान की Nyageka के विस्थापन की कहानी भी ऐसी ही है. अब वह सोशल वर्कर होने का सपना पाले हुए है. ताकि संकट में फंसे लोगों की मदद कर सके. इसके जैसे लाखों बच्चे यहां युद्ध, बाढ़ और खाने के संकट से जूझ रहे हैं. फ्यूचर के लिए पढ़ाई-लिखाई की जगह यहां की अधिकांश आबादी खासकर बच्चे भी अगले टाइम के खाने के जुगाड़ में जुटे रहते हैं. 2019 में आए अकाल ने साउथ सूडान के लोगों की जिंदगी और बदहाल कर दी थी. यूएन के राहत अभियानों के बावजूद आज भी यहां के 30 लाख लोग भुखमरी के हालात में जी रहे हैं.

जंग और त्रासदी में फंसी इन जिंदगियों का संकट इससे और भी बड़ा है. ये चंद कहानियां बता रही है कि दुनिया को एक सिरे से सोचने की जरूरत है और वॉर जोन्स पर ध्यान देने की जरूरत है. तमाम इंटरनेशनल एजेंसियों के रहते हुए भी न तो जंग थम रही हैं और न आतंकवाद या मिलिशिया हिंसा पर रोक लग पा रही है. खासकर इन वॉर जोन में फंसे लाखों-करोड़ों बच्चों और महिलाओं को इस हालात से निकालने के लिए विश्व समुदाय और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों को और कोशिशें करनी होंगी. जंग थामकर शांति के रास्ते निकालने होंगे तभी इन लाखों-करोड़ों बच्चों की अंधियारी जिंदगी में रोशनी की झलक पहुंच पाएगी, नया सवेरा आ सकेगा.

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