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PM मोदी के सपनों को साकार कर रहे हैं 68 साल के सैफुद्दीन

भोपाल: महात्मा गांधी के सपने को पूरा करने के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर 2014 को ‘स्वच्छ भारत अभियान’ की शुरुआत की थी. उन्होंने देश के सभी नागरिकों से इस अभियान से जुड़ने की अपील भी की थी. शुरुआत में लोग इस अभियान से जुड़े भी, लेकिन धीरे-धीरे लोग अब इस अभियान को भूल रहे हैं. लेकिन एक शख्स ऐसा भी है जिसने अभी तक इस मुहिम को जारी रखा हुआ है. वो शख्स कोई और नहीं बल्कि भोपाल के रहने वाले 68 वर्षीय सैफुद्दीन शाजापुरवाला हैं जो कि अपनी मेहनत की कमाई से शहर को साफ सुथरा रखने में दिन रात लगे हुए हैं.

सैफुद्दीन शाजापुरवाला बताते हैं कि 2 अक्टूबर 2014 को धर्मगुरु सैयदना साहब, महात्मा गांधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से प्रेरणा लेकर वो भोपाल में जहां कहीं भी उन्हें गंदगी दिखती है वहां जाकर सफाई का कार्य करते हैं. इतना ही नहीं, वो हर संडे जागरूकता अभियान चला कर लोगों को सफाई के लिए जागरूक भी कर रहे हैं. इसलिए पूरी राजधानी में उनको “संडे मैन” के रूप में पहचान मिल गई है.

2016 से लोगों को कर रहे जागरूक
2016 से वे पूरे प्रदेश में स्वच्छता अभियान के प्रति लोगों को जागरूक करने का कार्य कर रहे हैं. इसमें प्रमुखता से इंदौर,उज्जैन, देवास,जबलपुर,सीहोर,सोन कच्छ सहित सभी जिलों में वे जा चुके हैं. वह मुंबई,अहमदाबाद,सूरत में भी स्वच्छता अभियान की अलख जगा चुके हैं.


पेशे से व्यापारी हैं संडे मैन
भोपाल के नूर मोहल्ले में रहने वाले सैफुद्दीन पेशे से व्यापारी हैं और वॉलपेपर दुकान संचालित करते हैं. हर रविवार को समय का सदुपयोग स्वच्छता का संदेश देने के लिए करते हैं. वह सुबह 9 से शाम 6 बजे तक कचरा जमा कर उसे सही जगह फेंकते हैं ताकि उसकी रीसाइक्लिंग हो सके.हमेशा एक्टिवा पर झाड़ू के साथ दो डस्टबिन गीला और सूखे कचरे के लिए रखते हैं. स्वच्छता का संदेश देने के लिए उन्होंने अपने कपड़ों और वाहनों का भी उपयोग किया है. जिस पर हम कब सुधरेंगे, गीला कचरा हरे डस्टबिन में तथा सूखा कचरा नीले डस्टबिन में डालें जैसे मैसेज लिखे हुए हैं. स्वयं नीले रंग की शर्ट सूखे कचरे और हरे रंग की पैंट गीले कचरे के प्रतीक के रूप में वह जहां भी जाते हैं तो पहनते हैं.

पेड़ों को भी देते हैं जीवनदान
सैफुद्दीन ने शहर की सफाई के साथ-साथ अब पिछले तीन महीनों से पेड़ों को भी जीवनदान देना शुरू किया है. वे शहर में घूम-घूमकर पेड़ों से साइन बोर्ड और कील निकालते हैं. उनका मानना है कि जिस तरह से हमें कांटा लगने पर दर्द होता है उसी तरह से पेड़ पौधों को भी कील से दर्द होता है.सैफुद्दीन कहते हैं कि ज्यातार लोग उनके इस काम को प्रोत्साहित करते हैं, लेकिन चंद लोग ऐसे भी हैं जो सवाल खड़े करते हैं.

शहर को साफ करना हमारी जिम्मेदारी
उन्होंने लोगों से अपील करते हुए कहा कि कोई भी सरकार चाहकर भी गंदगी को जड़ से खत्म नहीं कर सकती. लेकिन अगर देश का हर व्यक्ति चाह जाए तो ये संभव है. ऐसे में लोग सफाई के प्रति जागरूक हों और अपने आस पास गंदगी करने से बचें. जैसे हम अपने घर को साफ रखते हैं उसी प्रकार से शहर को साफ रखना भी हमारी जिम्मेदारी है.

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