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केंद्रीय उर्वरक सचिव का बयान, कहा- देश में खाद की कमी नहीं, गलत इस्तेमाल पर लगाई लगाम

नई दिल्‍ली। देश में खाद की कोई कमी नहीं है कुछ जगहों पर लॉजिस्टिक (logistic) की दिक्कतों की वजह से समय पर खाद नहीं पहुंच रही होगी, लेकिन देश के बड़े हिस्से में ऐसी कोई मुश्किल नहीं है। केंद्रीय उर्वरक सचिव अरुण सिंघल ने ए‍क निजी मीडिया संस्‍थान के साथ बातचीत में बताया कि खाद के डायवर्जन (diversion) पर भी सरकार को लगाम लगाने में बड़ी सफलता (great success) मिली है। उन्होंने यह भी कहा कि देश में 2025 तक यूरिया आयात (urea import) करने की जरूरत नहीं होगी।

सवाल: देश के कई इलाकों से किसान शिकायत कर रहे हैं कि खाद नहीं मिल रही है। इन सूचनाओं के आधार पर क्या कार्रवाई की जा रही है?
जवाब: खाद की देश में बिल्कुल भी कमी नहीं है। अगर यह समय पर देश के किसी हिस्से में नहीं पहुंच पा रही है तो यह बेहद दुखद है, लेकिन इसके पीछे लॉजिस्टिक्स (logistics) से जुड़ी वजहें होती हैं। खाद (Fertilizer) की जरूरत सीजन विशेष में होती है ऐसे में उसी दौरान बड़े पैमाने पर लॉजिस्टिक का इस्तेमाल करते हुए खाद गांव-गांव तक पहुंचानी होती है। ऐसे में जिस रास्ते से किसी गांव विशेष में खाद पहुंच रही होती है वहां की मुश्किलों के आधार पर देरी संभव है। सरकार की लगातार कोशिश है कि रास्ते की अड़चनें दूर की जाएं।



सवाल- एक देश एक ब्रांड के आधार पर खाद बेचने की पहल को देश के किसान कैसे देख रहे हैं?
जवाब- किसानों को इस पहल पर कोई भी आपत्ति नहीं है। वह पहले की ही तरह खाद खरीद रहे हैं। इस योजना के पीछे सरकार (government) की मंशा किसी ब्रांड की खाद को जहां उत्पादन हो रहा हो उसी इलाके में बेचने की थी जिससे बड़े पैमाने पर सब्सिडी की रकम ट्रांसपोर्टेशन पर खर्च होने से बच रही है।

सवाल – देश के कई इलाकों में सब्सिडी वाली खाद के गलत इस्तेमाल की खबरें आती रही हैं। खास तौर पर उद्योगों में इनका इस्तेमाल होता देखा गया। सरकार ने इसे रोकने के लिए क्या कदम उठाए और उनका क्या परिणाम देखने को मिला?

जवाब – यूरिया का ही डायवर्जन होता देखा गया था लेकिन सरकार के कदमों से इसमें बड़ी सफलता मिली। सरकार ने पहले तो देश के बॉर्डर वाले जिलों में खाद के बड़े खरीदारों (buyers) की जांच करनी शुरू की। इसका असर ये रहा अब वहां मांग 15 फीसदी तक घटी है और भारत के पड़ोसी देश नेपाल ने हमसे आधिकारिक तौर पर यूरिया खरीदने की बात की। हम नेपाल के लिए भी यूरिया आयात करके उसे देंगे। साथ ही जिन कुछ फैक्ट्रियों में फ्लाइंग स्कवॉड बनाकर छापेमारी की गई वहां से नीम कोटेड यूरिया मिलने पर उनके खिलाफ मुकदमे चल रहे हैं।

सवाल- देश में खाद के मोर्चे पर हम आत्मनिर्भर कब तक हो जाएंगे?
जवाब- सरकार का लक्ष्य है कि 2025 तक देश में यूरिया का आयात बंद कर दिया जाए। अभी देश में सालाना करीब 350 लाख टन यूरिया की जरूरत होती है। मौजूदा समय में करीब 283 लाख टन की क्षमता है और बाकी का आयात किया जाता है। देश में 44 करोड़ नैनो यूरिया की बोतलों का भी उत्पादन हो रहा है जिससे करीब 200 लाख टन यूरिया की पूर्ति हो सकती है। आने वाले दो-तीन सालों में हम न केवल इस दिशा में आत्मनिर्भर हो जाएंगे बल्कि निर्यात करने के भी काबिल हो सकते हैं।

सवाल- डीएपी को लेकर क्या प्रगति है, इस पर आयात निर्भरता घटाने के लिए क्या रणनीति है?
जवाब: देश में नैनो डीएपी बनाने का काम तेजी से हो रहा है। इसके फील्ड ट्रायल कामयाब रहे हैं। उम्मीद है कि सभी जरूरी मंजूरियां अगर समय पर मिल गईं तो अगली खरीफ की फसल के दौरान किसानों के इस्तेमाल के लिए इसे शुरू कर दिया जाएगा।

सवाल: विदेशों से आयात आसान हो इसके लिए सरकार क्या कदम उठा रही है
जवाब- सरकार की कोशिश है कि एक देश पर निर्भर रहने के बजाए हम कई देशों के साथ करार करें। इसके लिए रूस, कनाडा, इजरायल ओमान, मोरक्को जैसे देशों के साथ सप्लाई बढ़ाने और नए करार पर काम चल रहा है। साथ ही हम भारतीय कंपनियों को विदेशों में निवेश के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं ताकि कई जगहों से हमें सप्लाई में प्राथमिकता मिले।

सवाल: अगले वित्तवर्ष के बजट में उर्वरक सब्सिडी में कितनी बढ़त के आसार हैं?
जवाब: सवाब सब्सिडी बढ़ने या घटने का नहीं है, हमें जितनी जरूरत होती है वित्तमंत्रालय से हमें रकम हर साल मिल जाती है। ऐसे में इस साल के आंकड़ों के आधार पर बजट बनाया जाएगा और अगले साल की परिस्थिति के हिसाब से जितने खर्च की जरूरत होगी वो रकम हमें जरूर मिलेगी। वित्तवर्ष 2014-15 से लेकर वित्तवर्ष 2022-23 तक सरकार ने करीब 10 लाख करोड़ रुपए उर्वरक सब्सिडी पर ही खर्च किए हैं।

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