जिनेवा। जिनेवा में अल्पसंख्यक मुद्दों पर आयोजित संयुक्त राष्ट्र फोरम के दौरान उइगुर सेंटर फॉर डेमोक्रेसी एंड ह्यूमन राइट्स (Uyghur Center for Democracy and Human Rights) के अध्यक्ष डॉल्कुन ईसा (Dolkun Isa) ने पूरी दुनिया के सामने चीन (China) का असली चेहरा बेनकाब कर दिया। चीनी प्रतिनिधिमंडल ने बार-बार बीच में टोककर और उन्हें चुप कराने की कोशिश की, लेकिन इसके बावजूद दोलकुन इसा ने निडर होकर चीन द्वारा उइगुरों के खिलाफ चलाए जा रहे सुनियोजित दमन और नरसंहार को खुलकर उजागर किया। विश्व समुदाय को संबोधित करते हुए उन्होंने बताया कि जिन सांस्कृतिक और सामुदायिक केंद्रों को उनकी जन्मभूमि में पूरी तरह तबाह कर दिया गया था, उइगुर डायस्पोरा ने विदेशों में उन्हें फिर से जीवित कर दिया है। दुनिया भर में उइगुर समुदायों ने भाषा स्कूल, कला परियोजनाएं, लोकतांत्रिक संगठन और नागरिक संस्थाएं स्थापित की हैं और इस तरह अपनी संस्कृति को नया जीवन दिया है। इस दौरान उन्होंने कहा कि हम अपनी विरासत को न केवल संरक्षित कर रहे हैं, बल्कि जिन समाजों में हम रहते हैं, उन्हें भी समृद्ध बना रहे हैं।
इस दौरान चीनी सरकार के निरंतर उत्पीड़न की कड़ी निंदा करते हुए उन्होंने आरोप लगाया कि चीन उइगरों को उनकी अपनी जमीन पर अल्पसंख्यक बनाने और बड़े पैमाने पर नजरबंदी, सांस्कृतिक नरसंहार तथा राजनीतिक दमन के जरिए उन्हें समाप्त करने पर तुला हुआ है। प्रोफेसर इल्हाम तोहती, डॉ गुलशन अब्बास सहित कई प्रमुख उइगर बुद्धिजीवियों की कैद का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि ये लोग केवल ऐसे योगदान के लिए लंबी-लंबी सजाएं भुगत रहे हैं, जिन्हें दुनिया के किसी भी कोने में सम्मान मिलता।
वहीं, डॉल्कुन ईसा के भाषण के दौरान चीनी प्रतिनिधिमंडल द्वारा उन्हें बार-बार रोकने की कोशिश और उससे उपजी तीखी झड़प ने चीन के मानवाधिकार रिकॉर्ड को लेकर चल रही वैश्विक चिंताओं और गहरे तनाव को स्पष्ट रूप से सामने ला दिया। चीनी प्रतिनिधि ने विरोध जताते हुए कहा कि मैं दोहराना चाहता हूँ कि यह एनजीओ इस मंच का दुरुपयोग कर रहा है और चीन की क्षेत्रीय अखंडता एवं संप्रभुता को कमजोर करने की कोशिश कर रहा है। लेकिन सत्र की अध्यक्ष ने डॉल्कुन ईसा को अपनी बात पूरी करने की अनुमति दे दी। इस तरह संयुक्त राष्ट्र जैसे मंच पर, जहां आम तौर पर कूटनीतिक संयम हावी रहता है, असहमति की खुली अभिव्यक्ति का एक दुर्लभ पल देखने को मिला।
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