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Abul Kalam Azad Birth Anniversary: जीवन पर्यंत की देश की सेवा

नई दिल्ली (New Delhi)। हर साल की तरह इस बार भी पूरे देश में नेशनल एजुकेशन डे (National Education Day 2023) मनाया जा रहा है। यह खास दिन प्रतिवर्ष 11 नवंबर को देश के पहले एजुकेशन मिनिस्टर (Country’s first education minister) मौलाना अबुल कलाम आजाद (Maulana Abul Kalam Azad) की बर्थ एनिवर्सरी (Birth Anniversary) को दर्शाने के लिए मनाया जाता है।

आधुनिक भारत के इतिहास के महान विभूतियों में शामिल मौलाना अबुल कलाम आज़ाद (Maulana Abul Kalam Azad) ने जीवन पर्यंत देश की सेवा की। मौलाना अबुल कलाम आज़ाद (Maulana Abul Kalam Azad) एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी, एक उत्कृष्ट पत्रकार, एक कुशल लेखक एवं उर्दू के मशहूर विद्वान थे। उल्लेखनीय है भारत के पहले शिक्षा मंत्री होने के कारण मौलाना अबुल कलाम के जन्म दिवस को “राष्ट्रीय शिक्षा दिवस” के रूप में मनाया जाता है।


मौलाना अबुल कलाम आज़ाद अग्रणी नेताओं में थे जिन्होंने कांग्रेस के सबसे कठिन और निर्णायक दौर में कांग्रेस का नेतृत्व किया। पूरे स्वतंत्रता आंदोलन में या तो वे जेल में बंद रहे या राष्ट्रीय आंदोलन के सन्दर्भ में नीति नीति निर्णयन में अग्रणी भूमिका निभाते रहे। मौलाना अबुल कलाम आज़ाद द्वारा न केवल मुखर रूप से हिन्दू-मुस्लिम एकता की वकालत की बल्कि विभाजन की कीमत पर भारत की आजादी का अंत तक उन्होंने विरोध किया। इसके साथ ही उन्होंने न केवल भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी सक्रिय सहभागिता सुनिश्चित की बल्कि आजादी के उपरांत एक नए भारत के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

 

प्रारंभिक जीवन:
मौलाना अबुल कलाम का जन्म 11 नवंबर 1888 को मक्का में हुआ था। इनका आरंभिक जीवन कोलकाता में गुजरा एवं पढ़ाई में काफी मेधावी होने के कारण इन्होंने अपनी शिक्षा पूरी करने के साथ-साथ तर्कशास्त्र, अंग्रेजी, इतिहास समेत उर्दू में विशेषज्ञता हासिल कर ली।

एक उत्कृष्ट विद्वान के रूप में योगदान
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद एक उत्कृष्ट पत्रकार के साथ-साथ उर्दू भाषा के एक अग्रणी विद्वान थे। उन्होंने महज 12 वर्ष की उम्र से ही उर्दू में कविताये लिखना शुरू कर दिया। इसके साथ ही उन्होंने धर्म और दर्शन पर कई साहित्यिक रचनाएं लिखी। उन्होंने‘अलहिलाल’ एवं ‘अलबलाग’ जैसे अखबारों का संचालन किया।

इंडिया विन्स फ्रीडम के अलावा उनके चर्चित पुस्तकों में गुबारे-ए-खातिर, हिज्र-ओ-वसल, खतबात-ल-आज़ाद, हमारी आज़ादी और तजकरा इत्यादि शामिल हैं। उन्होंने कुरान का अरबी से उर्दू में अनुवाद किया जिसे बाद में साहित्य अकादमी द्वारा छ: संस्करणों में प्रकाशित किया गया।

स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान:
लार्ड कर्जन के बंगाल के विभाजन के निर्णय को बखूबी समझते हुए वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सन्दर्भ में जन जागरण में लग गए। उल्लेखनीय है कि उस समय क्रांतिकारी गतिविधियों में बंगाल के हिंदू क्रांतिकारी काफी सक्रिय थे एवं अंग्रेजो के द्वारा मुस्लिम अधिकारियों से उनका दमन करवाए जा रहा था जिससे दोनों वर्गों के बीच में आपसी वैमनस्य को बढ़ाया सके। मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने क्रांतिकारियों को विश्वास में लिया एवं यह विश्वास दिलाया कि उनकी शंका के विपरीत जमीनी स्तर पर हकीकत कुछ और है। इसके अलावा उन्होंने पत्रकारिता से जन जागरण को बढ़ावा देते हुए अपना ऐतिहासिक अखबार ‘अलहिलाल’ निकाला जिससे मुस्लिम लोग भारतीय आंदोलन से जुड़ने लगे। अंग्रेजों को नागवार लगने के बाद ‘अलहिलाल’ को प्रतिबंधित कर दिया गया।

‘अलहिलाल’ को प्रतिबंधित किए जाने के उपरांत उन्होंने क्रांतिकारी विचारधारा से अभिप्रेरित ‘अलबलाग’ नामक अखबार निकाला जिसके परिणाम स्वरूप उन पर अंग्रेजों ने कठोर धाराएं लगाकर कोलकाता से रांची निर्वाचित कर दिया।

1920 में जेल से रिहा होने के बाद वे तुरंत महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से जुड़ गए। पुनः असहयोग आंदोलन में जेल में बंद कर दिए गए। उल्लेखनीय है कि 1922 के गया अधिवेशन में कांग्रेस विचारधारा के रूप में दो खेमे में बढ़ गई जहां पर मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने अपने प्रयासों से कांग्रेस पार्टी में लोगों को एकजुट किया।

आगे चलकर 1923 में वे कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए एवं इन्हें मोतीलाल नेहरू, सरदार पटेल, हकीम अजमल खान, सीआर दास, राजेंद्र प्रसाद जैसे सरीखे नेताओं का समर्थन भी हासिल था।

1940 के रामगढ़ अधिवेशन में मौलाना अबुल कलाम आज़ाद में पुनः कांग्रेस के अध्यक्ष पद का निर्वहन किया एवं इसी अधिवेशन में ‘रामगढ़ रिजोल्यूशन’ पारित किया गया।

भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कांग्रेस के शीर्ष नेताओं समेत मौलाना अबुल कलाम को गिरफ्तार कर ‘अहमदनगर फोर्ट जेल’ में भेज दिया गया जहां पर उन्हें 3 साल तक कैद रखा गया। यह समय अबुल कलाम आज़ाद के लिए काफी मुश्किल भरा था क्योंकि अंग्रेजों ने काफी क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया एवं उन्हें अपनी बीमार पत्नी से नहीं मिलने दिया गया जिनकी बाद में बीमारी से ही मृत्यु हो गयी।

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के महत्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कांग्रेस एवं ब्रिटिश पक्षों के बीच की सभी महत्वपूर्ण वार्ता में अबुल कलाम आज़ाद अधिकृत प्रतिनिधि के रूप में अंग्रेजों से अकेले वार्ता करते थे। चाहे वह 1942 का क्रिप्स मिशन हो 1945 का शिमला कांफ्रेंस हो या फिर 1946 का कैबिनेट मिशन।

उल्लेखनीय है कि आखिरी समय तक मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के द्वारा विभाजन की कीमत पर भारत की आजादी का विरोध किया गया जिसको लेकर उनका उनके करीबियों से काफी मतभेद भी रहा।

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