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तीन तलाक के बाद तलाक-ए-हसन का मुद्दा उछला, सुप्रीम कोर्ट में उठी बैन करने की मांग

नई दिल्‍ली। मुस्लिम समाज (Muslim Brotherhood) में पिछले लंबे समय से चलते आ रहे तीन तलाक पर केंद्र की मोदी सरकार (Modi government) ने कानून बनाने का फैसला किया. इसे मुस्लिम महिलाओं के लिए एक बड़ा कदम बताया गया और कहा गया कि इससे उन तमाम महिलाओं को राहत मिलेगी, जिन्हें एक झटके में तीन तलाक कहकर छोड़ दिया जाता था. लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) में तलाक-ए-हसन (talaq-e-hasan) का मुद्दा भी उछाला गया है, इसे भी बैन करने की मांग उठ रही है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि प्रथम दृष्टया ये गलत नहीं लगता है.

अब इस मुद्दे के सामने आने के बाद सभी के मन में ये सवाल है कि जब तीन तलाक को लेकर सख्त कानून बना दिया गया है तो आखिर ये तलाक-ए-हसन क्या है और ये तीन तलाक (triple talaq) से कितना अलग है. आइए हम इसके बारे में आपको बताते हैं.

इस्लाम में तलाक के तरीके
सबसे पहले ये जानना जरूरी है कि ये तलाक-ए-हसन क्या है. दरअसल इस्लाम में शादी खत्म करने के कई अलग-अलग तरीके बताए गए हैं, इन्हें शिया और सुन्नी अपने-अपने तरीके से फॉलो करते हैं. इस्लामी समाज में तलाक देने के तीन तरीके चलन में हैं. तलाक-ए-हसन, तलाक-ए-अहसन और तलाक-ए-बिद्अत… मर्द इन तीन तरीकों से महिला को तलाक दे सकते हैं. इनमें से तलाक-ए-बिद्अत को ही तीन तलाक कहा जाता है, जिसे लेकर भारत में सख्त कानून बनाया गया है. तलाक-ए-बिद्अत के तहत कोई मर्द तलाक के सही तरीके की नाफरमानी करते हुए भी एक ही बार में तलाक, तलाक और तलाक कह देता है तो तीन तलाक मान लिया जाएगा, यानी तलाक माना जाएगा. अगर गुस्से में भी ये कहा गया तो इसे तलाक माना जाता था.

तीन तलाक और तलाक-ए-हसन में अंतर
विवादित तीन तलाक और तलाक-ए-हसन की आपस में तुलना करें तो दोनों की काफी अलग हैं. तीन तलाक में जहां एक झटके में किसी भी माध्यम से तीन तलाक बोलकर पत्नी को तलाक दिया जा सकता है. कानून बनने से पहले ये तरीका काफी चलन में था, कई बार देखा गया कि फोन पर मैसेज में या फिर कॉल करके तलाक दिए गए. इसे लेकर कई मुस्लिम महिलाओं ने शिकायत भी दर्ज की थी. वहीं तलाक-ए-हसन में तलाक का एक पूरा प्रोसेस है. इसमें तीन तलाक के उलट पति-पत्नी को फैसला लेने का वक्त मिलता है और तीन महीने के अंतराल में दोनों आपसी सहमति से एक हो सकते हैं.

आखिर क्या है तलाक-ए-हसन?
अब बात करते हैं तलाक-ए-हसन की, जिसका मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा है. इसके तहत तलाक के पूरे प्रोसेस में तीन महीने लगते हैं. यानी तीन महीने में तीन बार तलाक बोलकर शादी को खत्म किया जा सकता है. यानी पति को इसके लिए तीन महीने का इंतजार करना होगा. इन तीन महीनों में पति और पत्नी के बीच सुलह हो सकती है. लेकिन अगर तीसरे महीने तक भी विवाद बरकरार रहता है तो तीसरी और आखिरी बार तलाक बोलते हुए शादी को तोड़ दिया जाता है. इसके बाद तलाक पूरा माना जाएगा. इस तलाक के तीन स्टेज हैं…

तलाक-ए-रजई
तलाक-ए-हसन का पहला स्टेज तलाक-ए-रजई है. इसके तहत अगर कोई पति अपनी पत्नी से अलग होना चाहता है तो उसे पहला तलाक देना होगा. इसे महावारी में नहीं दिया जा सकता है. पहला तलाक देने के बाद दोनों एक महीने का इंतजार करते हैं और अगर बात नहीं बनी तो तलाक का दूसरा स्टेज आता है.

तलाक-ए-बाइन
इसे तलाक का दूसरा स्टेज कहा जाता है. पहले महीने में अगर पति और पत्नी के रिश्ते में सुधार नहीं आता है तो दूसरी बार तलाक दिया जाता है. इस तलाक के बाद पूरे महीने पति-पत्नी को फिर वक्त मिलता है. इस दौरान वो चाहें तो शादी में वापस आ सकते हैं. यानी इसे तलाक नहीं माना जाएगा.

तलाक-ए-मुगल्लज़ा
इसे तलाक-ए-हसन का तीसरा और आखिरी स्टेज माना जाता है. ये पति-पत्नी के पास आखिरी मौका होता है, जिससे वो अपनी शादी बचा सकते हैं. लेकिन अगर तीन महीने तक भी बात नहीं बनी तो पति आखिरी बार तलाक कहकर अपनी पत्नी के साथ अपनी शादी तोड़ सकता है. तलाक-ए-मुगल्लज़ा के बाद पति-पत्नी वापस रिश्ते में नहीं आ सकते हैं, यानी इसे पूरी तरह तलाक मान लिया जाता है.

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
दरअसल सुप्रीम कोर्ट में तलाक-ए-हसन के खिलाफ याचिका दायर की गई थी. गाजियाबाद की रहने वाली एक महिला ने याचिका दायर करते हुए तर्क दिया था कि तलाक-ए-हसन महिलाओं की गरिमा के खिलाफ है. ये भेदभावपूर्ण है क्योंकि इसका इस्तेमाल सिर्फ पुरुष ही कर सकते हैं. इसीलिए इस पर बैन लगाया जाना चाहिए. इस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की, जस्टिस संजय किशन कौशल ने इस मामले पर कहा कि, प्रथम दृष्टया मैं याचिकाकर्ताओं से सहमत नहीं हूं. ये (तलाक-ए-हसन) इतना अनुचित नहीं लगता. मैं नहीं चाहता हूं कि ये मुद्दा किसी भी वजह से एजेंडा बन जाए. इस पर अब अगली सुनवाई 29 अगस्त को हो सकती है.

महिलाओं के लिए खुलअ तलाक भी विकल्प
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि, ऐसा नहीं है कि महिलाओं के लिए तलाक का विकल्प नहीं है. आपके पास खुलअ तलाक भी एक विकल्प है. कोर्ट के हस्तक्षेप के बिना भी तलाक दिया जा सकता है. हालांकि इसके लिए मेहर का ध्यान रखना होगा. बता दें कि खुलअ तलाक के तहत अगर कोई महिला पति के साथ नहीं रहना चाहती है तो वो पति से तलाक को लेकर बात कर सकती है. इसके लिए महिला को मेहर यानी निकाह के वक्त पति की तरफ से दी गई रकम को चुकाना होगा. हालांकि इसमें पति की रजामंदी जरूरी है. बिना इसके खुलअ नहीं हो पाएगा. इसके बाद महिला को दूसरे विकल्प अपनाने होंगे.

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