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आजम खान के सामने बेबस दिखते हैं अखिलेश यादव, जानिए क्‍या है इसके पीछे की वजह ?

नई दिल्‍ली (New Delhi) । लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) के पहले चरण में रामपुर और मुरादाबाद (Rampur and Moradabad) समेत यूपी (UP) की आठ सीटों पर 19 अप्रैल को मतदान होना है जिसके लिए नॉमिनेशन की प्रक्रिया पूरी हो गई है. इन दोनों ही सीटों पर विपक्षी समाजवादी पार्टी (सपा) में सियासी घमासान मचा है. मुरादाबाद में सपा (SP) से पहले एसटी हसन ने नामांकन पत्र दाखिल किया था. हसन के नॉमिनेशन के बाद रुचि वीरा ने भी सपा के सिंबल पर पर्चा भर दिया है. वहीं, रामपुर में सपा की जिला यूनिट ने पहले आजम खान के पत्र का हवाला देते हुए चुनाव बहिष्कार का ऐलान किया और फिर पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार दिल्ली के पार्लियामेंट स्ट्रीट स्थित मस्जिद के इमाम मोहिबुल्ला के बाद आसिम रजा ने भी नॉमिनेशन दाखिल कर दिया.

एसटी हसन अपना नामांकन वापस लेने को तैयार हैं तो वहीं आसिम रजा का नॉमिनेशन जांच के बाद निरस्त हो गया है. उम्मीदवारी की रार तो सुलझ गई है लेकिन सपा के भीतर का अंतर्द्वंद उजागर हो गया है. एक्टिव मोड में आई सपा ने जेल में बंद आजम को स्टार प्रचारकों की लिस्ट में जगह दी है तो वहीं शिवपाल यादव के आजम को मनाने सीतापुर जेल पहुंचकर मुलाकात करने की भी चर्चा है. स्टार प्रचारकों की लिस्ट में आजम को शामिल किया जाना उनके समर्थकों को यह संदेश देने की कोशिश बताया जा रहा है कि पार्टी ने उन्हें उनके हाल पर नहीं छोड़ा है. अब सवाल यह उठ रहे हैं कि आखिर आजम खान के पास ऐसी कौन सी सियासी ताकत है जिसके सामने अखिलेश यादव बेबस दिखते हैं?


यूपी की सियासत पर करीब से नजर रखने वाले लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद गोस्वामी ने कहा कि आजम खान सपा के ऐसे नेता रहे हैं जिन्हें काबू कर पाना कभी भी आसान नहीं रहा है. आजम की स्ट्रेंथ यह है कि वह अच्छे वक्ता हैं और मुस्लिम समाज को एकजुट करने की क्षमता रखते हैं. मुस्लिम-यादव वोट बेस वाली पार्टी के पुराने और आजमाए हुए मुस्लिम चेहरे हैं. चुनावी मौसम में अखिलेश क्या, किसी भी पार्टी का मुखिया नहीं चाहेगा कि कोई नेता-कार्यकर्ता नाराज हो. मुस्लिम वोट पर आजम का होल्ड वैसा नहीं रहा जैसा कभी था, लेकिन चुनावी मौसम होने की वजह से ही अखिलेश मान-मनौव्वल की कोशिश करते दिख रहे हैं.

राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने कहा कि लोकतंत्र में सबसे बड़ी ताकत वोट की होती है. आजम के पास मुस्लिम वोट की ताकत है. आजम ऐसे नेता हैं जिनकी पैन यूपी स्वीकार्यता है. सपा में तमाम मुस्लिम नेता आए और गए, हैं भी लेकिन अपने समाज में आजम जैसी पैठ कोई नहीं बना पाया. बीजेपी के सत्ता में आने के बाद हुए एक के बाद एक करीब सौ मुकदमों, जेल जाने के बाद आजम अपने लोगों के बीच खुद को विक्टिम के तौर पर पेश करते रहे हैं और ऐसे समय में जब बसपा अग्रेसिव मुस्लिम पॉलिटिक्स कर रही है, सपा कोई रिस्क नहीं लेना चाहती.

आजम खान और उनके परिवार के साथ ही इरफान सोलंकी जैसे नेताओं पर सरकार के एक्शन के बाद मुस्लिम समाज में सपा को लेकर नाराजगी की बातें भी आती रही हैं. यह भी कहा जाता है कि मुस्लिम नेताओं पर एक्शन का जिस तरह से विरोध होना चाहिए था, सपा ने वैसा किया नहीं और इन नेताओं को अपनी लड़ाई खुद लड़ने के लिए उनके हाल पर छोड़ दिया गया. रामपुर और आजमगढ़ लोकसभा सीट के उपचुनाव में मिली शिकस्त के बाद से ही अखिलेश यादव डैमेज कंट्रोल के मोड में नजर आ रहे हैं.

मुस्लिम वोट की ताकत कितनी
उत्तर प्रदेश की कुल आबादी में मुस्लिम समाज की भागीदारी 20 फीसदी के करीब है. सूबे में लोकसभा की कुल 80 सीटें हैं और इन 80 में से 30 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम समाज की तादाद अच्छी है. आजम खान की गृह लोकसभा सीट रामपुर के साथ ही सहारनपुर, मेरठ, कैराना, बिजनौर, अमरोहा, मुजफ्फरनगर, संभल, नगीना, बराइच, बरेली और श्रावस्ती समेत करीब दर्जनभर सीटों पर तो 30 फीसदी से भी अधिक मुस्लिम आबादी है. पूर्वी उत्तर प्रदेश की मऊ और आजमगढ़ सीट भी ऐसी सीटों की लिस्ट में शामिल हैं जिनके चुनाव नतीजे निर्धारित करने में मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं. आजमगढ़ उपचुनाव में सपा उम्मीदवार को करीब आठ हजार वोट के अंतर से हार का सामना करना पड़ा था और तब बसपा के गुड्डू जमाली भी ढाई लाख से अधिक वोट के साथ तीसरे स्थान पर रहे थे.

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