18 वर्षों की सत्ता के मुखिया का 18 दिनों में पराभाव… शिवराजजी का गम यह है कि जो लोग उनके आगे-पीछे घूमते थे…उनके पैरों में शीश नवाते थे…उन्हें सर-माथे पर बिठाते थे…उनकी जय-जयकार के नारे लगाते थे… बैनर-पोस्टरों में वो ही नजर आते थे…आज उनका चेहरा तो चेहरा, नाम तक गायब हो गया…सालों का मुखिया चंद दिनों में खो गया…यह गम तो वो पाल रहे हैं, लेकिन इस हकीकत को समझ नहीं पा रहे हैं कि दिल में जगह बनाते तो पोस्टरों से हटने का गम नहीं पालते…अपनों को अपना बनाते तो अपने पराए नहीं बन जाते…अपनों पर ताकत नहीं आजमाते तो बुरे वक्त में वो ही ताकत बने नजर आते…सत्ता भी उसी दल की है…नेता भी उसी दल के हैं… फिर वो यदि दलदल में हैं तो यह वक्त उस कारण को समझने का है, जो अकारण ही पैदा नहीं हुआ…यह उनका अपना बनाया हुआ ज्वालामुखी है, जिसका लावा उन्हें मिटा रहा है…जिसका लावा उन्हें जला रहा है…जो उस हकीकत को समझा रहा है कि इस आग में कभी उन्होंने अपनों को झुलसाया था… शक्ति और सामथ्र्य की ताकत उन्होंने जनता से ज्यादा नेताओं पर आजमाई…दिग्गजों को गलियों की खाक छनवाई…मंत्रियों पर भी हुकूमत चलाई…अधिकारियों के हाथों सत्ता थमाई…जनप्रतिनिधियों तक की ताकत मिटाई…जनता के तानों ने विधायकों तक की नींद उड़ाई…शिवराज ने अपनी सेना बनाई…हर जिले में कलेक्टर ने मुखियागीरी दिखाई और मातहतों ने नेताओं की क्लास लगाई…पूरे प्रदेश में हिटलरी का वो आलम नजर आया कि सत्ता होते हुए भी कार्यकर्ता तो कार्यकर्ता नेताओं में भी उदासी छाई…हर नेता ने उनकी ताकत के आगे नजर झुकाई…जो नहीं झुका उसकी हस्ती मिटाई…प्रदेश में शक्ति और घुटन का ऐसा सिलसिला चला कि नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं के जेहन में एक ही बात आई कि हमने सत्ता क्यों पाई… कार्यकर्ता नाराज थे और नेता नदारद…चारों ओर उदासी छाई थी…प्रदेश में सत्ता गंवाने की खबरें नेतृत्व के कानों तक आई थीं… सत्ता के बुझते चिराग को रोशन करने के लिए और तय हो चुकी हार को जीत में बदलने के लिए नेतृत्व ने चाणक्य अमित शाह को जिम्मा सौंपा और प्रदेश का चुनाव मोदीजी के नाम पर लडऩा पड़ा… मोदी की गारंटी ने रंग दिखाया…जो सोचा नहीं था वो नतीजा सामने आया…लेकिन शिवराज इस जीत को भी अपनी लाड़ली बहना की जीत बताते रहे… मोदीजी के नाम को ठुकराते रहे…चाणक्य नीति को बौना बताते रहे… नेतृत्व को भी अपना मातहत मानते रहे…प्रधानमंत्री के गले में 29 मोतियों की माला पहनाने का दंभ भरते शिवराज का अंदाज मोदीजी को नहीं भाया… जिसकी गारंटी से मध्यप्रदेश ही नहीं तीनों राज्यों में जीत का परचम फहराया… उसे जिताने के अहंकार का मिजाज केंद्रीय नेतृत्व की समझ में नहीं आया और परिणाम में उस शख्स को प्रदेश का मुखिया बनाया, जिसमें सबको साथ लेकर चलने का भाव नजर आया…नए मुख्यमंत्री ने पहला संदेश सब तक पहुंचाया…हिटलर अधिकारियों को वल्लभ भवन की कैद में पहुंचाया और सारे विधायकों और मंत्रियों में अधिकारों का विश्वास जगाया…अब प्रदेश की सत्ता को अपनी उंगली पर नचाने वाले…हर पल रुबाब और रुतबे के साथ लोगों की जिंदगी का फैसला करने वाले…जनता की जयकार को अपनी जिंदगी का हिस्सा मानने वाले…आसमान में उड़ते हुए दूरियां नापने वाले…पूरे प्रदेश को अपनी विरासत मानने वाले शिवराजजी का चैन यदि बेचैन हो रहा है… कुर्सी से हटने… रुतबे के मिटने… भीड़भाड़ छंटने का गम बार-बार उभर रहा है तो उन्हें स्वयं को समझने के लिए वक्त देना होगा… और इस सच को स्वीकार करना होगा कि दुनिया उगते सूरज को सलाम करती है …प्रदेश में उसी नए सूरज की सुबह हो चुकी है…अब अहंकार छाती पीटता नजर आएगा…नए मुखिया मोहन यादव के नेतृत्व में अब जनता का राज… अधिकारियों की शक्ति और नेताओं का नजरिया प्रदेश में नजर आएगा…
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