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हरियाणा में बहुमत को लेकर उठे विवादों पर भाजपा ने की दूसरे दलों में सेंध लगाने की तैयारी

चंडीगढ़ (Chandigarh) । हरियाणा (Haryana) में लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) के पहले तीन निर्दलीय विधायकों (Independent MLA) के भाजपा सरकार (BJP government) से समर्थन वापस लेने से सरकार के बहुमत को लेकर उठे विवादों पर भाजपा ने सभी संभावित स्थितियों के लिए तैयारी शुरू कर दी है। अगर विपक्ष बहुमत के आंकड़े के साथ राज्यपाल से मिलता है तो भाजपा उस स्थिति में शक्ति परीक्षण के लिए दूसरे दलों में सेंध लगा सकती है। हालांकि उसका मानना है कि लोकसभा चुनाव के बाद यह मुद्दा रहेगा ही नहीं। राज्य में विधानसभा चुनाव को अब पांच माह ही बचे हैं।

हरियाणा में लोकसभा की सभी दस सीटों के लिए छठवें चरण में 25 मई को मतदान होना है, लेकिन राज्य की राजनीति लोकसभा के बजाय विधानसभा को लेकर गरमाई हुई है। भाजपा की सरकार से तीन निर्दलीय विधायकों के समर्थन वापस लेने से 88 सदस्यीय प्रभावी सदन में भाजपा को समर्थन दे रहे विधायकों की संख्या 43 रह गई है। विपक्ष इसे अल्पमत बताकर राज्य सरकार से इस्तीफे की मांग कर रहा है।


चूंकि विपक्षी कांग्रेस ने 13 मार्च को ही सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव रखा था, इसलिए वह तकनीकी रूप से छह माह तक अविश्वास प्रस्ताव नहीं ला सकती है। यही वजह है कि वह राज्यपाल से मांग भर कर रहा है। राज्यपाल भी केवल उसी स्थिति में सरकार से बहुमत सिद्ध करने को कह सकते हैं जबकि विपक्ष बहुमत के आंकड़े के साथ सरकार बनाने का दावा पेश करे। इसकी संभावना कम ही है। हालांकि भाजपा हर स्थिति के लिए तैयार है। सूत्रों के अनुसार जजपा के कम से कम दो विधायक भाजपा के साथ हैं। ऐसे में सदन में परीक्षण की स्थिति आने पर भी वह सरकार बचाने में सफल होगी।

लोकसभा चुनावों के लेकर है विपक्ष का शिगूफा
भाजपा नेताओं का कहना है कि विपक्ष का सारा शिगूफा लोकसभा चुनावों को लेकर है। उसने राज्य में ऐसा माहौल बनाया है ताकि लोकसभा चुनाव में भाजपा को कमजोर दिखाया जा सके। भाजपा नेताओं का दावा है कि राज्य में वह सभी सीटें फिर से जीतेगी, हालांकि पार्टी दो से तीन सीटों पर कड़ा मुकाबला मान रही है। गौरतलब है कि हरियाणा में इस साल के आखिर में अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में सभी राजनीतिक दल लोकसभा चुनावों के साथ अपनी विधानसभा की तैयारी को भी काफी अहमियत दे रहे हैं। जजपा का लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा से अलग होना भी इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।

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