उज्‍जैन न्यूज़ (Ujjain News)

दो वर्षों बाद उज्जैन आए बंगाल के कलाकार

  • कोरोना के कारण नहीं बना सके थे मूर्तियाँ-इस बार एक माह पहले से ही बुकिंग होने लगी

उज्जैन। दो वर्षों बाद बंगाल के कलाकारों का आगमन उज्जैन की बंगाली कॉलोनी में हुआ है। लगभग दस से अधिक ये कलाकार दुर्गा मूर्तियों को बना रहे है तथा इन्हें इस बार की नवरात्रि में अच्छा धंधा होने की उम्मीद है। हालांकि शहर में नवरात्रि उत्सव मनाने वाले आयोजकों ने करीब एक माह पहले से ही इन कलाकारों से मूर्तियों की बुकिंग करा ली है। इसके अलावा पांडालों में आयोजन करने वाले लोग भी इन कलाकारों के पास आकर मूर्तियों को पंसद कर बुकिंग कर रहे हैं। बंगाल से आए कलाकार ऋषि पाल ने बताया कि बीते दो वर्षों से कोरोना के कारण कलाकार उज्जैन नहीं आ सके थे, लेकिन इस बार स्थिति सामान्य है तथा दो माह पहले से ही उनके साथ अन्य मूर्तिकारों ने उज्जैन आकर देवी की मूर्तियां बनाने का काम शुरु कर दिया था। पिछले दो सप्ताह से मूर्तियों की बुकिंग होने का सिलसिला शुरु हो गया है। इधर कलाकारों ने यह भी बताया कि मौसम में नमी व बारिश होने के कारण मूर्तियों को हेलोजन की रोशनी की हीट देकर सुखाया जा रहा है।


हर्बल रंगों का होता है उपयोग
बंगाली कलाकारों ने बताया कि दुर्गा मूर्तियों को बनाने के लिए मिट्टी का ही उपयोग किया जाता है और मूर्तियों का रंगरोगन करने में प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल होता है। हर्बल रंग का उपयोग होने से मूर्तियाँ ओर अधिक आकर्षक दिखाई देती है एवं इससे मूर्तियों को नुकसान भी नहीं होता है।

देवास और अन्य राज्यों की मिट्टी
कलाकारों के अनुसार दुर्गा मूर्तियों को बनाने के लिए देवास और बंगाल सहित अन्य कुछ राज्यों से मंगाई गई मिट्टी का उपयोग किया जाता है। उज्जैन से भी शिप्रा किनारे की मिट्टी लाकर मूर्तियां गढ़ी जाती है। बंगाली कलाकारों की टीम द्वारा गणेश प्रतिमाओं को भी तैयार किया जाता है लेकिन कलाकारों का यह कहना है कि जितनी मांग दुर्गा की मूर्तियों की होती है, उतनी मांग गणेश प्रतिमाओं की नहीं रहती है। इसके पीछे कारण यह बताया गया है कि शहर में गणेश प्रतिमाओं को बनाने वाले कलाकारों के साथ ही दुकानें भी गली मोहल्लों तक में लगती है लेकिन दुर्गा प्रतिमाएं बनाने वाले कलाकार कम है तथा बीते सात वर्षों से बंगाली कलाकारों ने मूर्तियां बनाने के मामले में अपनी विशेष पहचान इस शहर में स्थापित की है।

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