नई दिल्ली. बिहार (Bihar) विधानसभा चुनाव (Assembly elections) के लिए तारीखों का ऐलान होना बाकी है, लेकिन सियासी पारा चढ़ने लगा है. सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) और विपक्षी महागठबंधन, दोनों ही गठबंधनों के घटक दल और कद्दावर नेता सीट शेयरिंग और वोटों के अंकगणित पर ‘होम वर्क’ (‘home work’) करने में जुटे हैं. वहीं, इन गठबंधनों से इतर जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर तपती दोपहरी में गांव-गलियों में पहुंच जनता से संवाद कर अपनी सियासी जमीन मजबूत करने की कवायद में हैं.
प्रशांत किशोर जन सुराज के रूप में बिहार को गैर एनडीए, गैर महागठबंधन तीसरा विकल्प देने की बात कर रहे हैं. वहीं, अब एनडीए में शामिल लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कह दी है. चिराग ने पिछले दिनों एक कार्यक्रम के दौरान अपने संबोधन में कुछ ऐसा कहा, जो चुनाव रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर के ट्रैक से मैच करता है.
पीके वाली लाइन और 243 सीटों पर लड़ने की बात को चिराग की बिहार की सियासत का थर्ड फ्रंट बनने की कोशिश से जोड़कर देखा जा रहा है. चिराग जन सुराज और प्रशांत किशोर के डेब्यू चुनाव में रोड़ा तो नहीं बन जाएंगे? इसे चार पॉइंट में समझा जा सकता है.
1- ‘बिहार प्राइड’ की पॉलिटिक्स
प्रशांत किशोर और जन सुराज की पॉलिटिक्स की बुनियाद बिहारी प्राइड की पिच है. प्रशांत किशोर बिहार के पुराने गौरव की बात करते हैं, महान विभूतियों को याद करते हैं और सूबे को उसका पुराना गौरव लौटाना अपनी सियासत का एम बताते हैं. चिराग की राजनीतिक महत्वाकांक्षा का एक प्रमुख आधार उनका ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ है. यह भी बिहार प्राइड से ही संबंधित है. प्रशांत किशोर और चिराग पासवान, दोनों ही अपना यही लक्ष्य बता रहे हैं कि बिहार विकसित राज्यों की श्रेणी में शामिल हो.
2- दोनों का फोकस युवा वोट बैंक
पीके और चिराग पासवान, दोनों का ही फोकस एक ही वोट बैंक पर है- युवा वोट बैंक. पीके सबसे अधिक युवा आबादी वाले राज्य बिहार में नई सोच, नई सियासी अप्रोच के साथ युवाओं को अपने पाले में लाने की कोशिश में जुटे हैं. बिहार पीसीएस के कथित पेपर लीक के खिलाफ धरने में उनका खुलकर आंदोलन कर रहे छात्रों के साथ सड़क पर उतर आना हो या पलायन जैसे मुद्दों पर मुखरता, ये सब युवा के बीच अपनी जमीन मजबूत करने की कोशिश से ही जोड़कर देखे जाते हैं.
दूसरी तरफ, चिराग पासवान एक दशक से अधिक समय से चुनावी राजनीति में हैं और युवाओं के बीच लोकप्रिय नेताओं में भी गिने जाते हैं. चिराग अगर युवा मतदाताओं के बीच अपनी जमीन और मजबूत करने, इसे वोटों के रूप में कैश कराने में सफल रहते हैं तो पीके की पार्टी का खेल डेब्यू मैच में बिगड़ भी सकता है.
3- पीके का दलित कार्ड, एक्टिव हुए चिराग
बिहार की चुनावी लड़ाई के दोनों मेन प्लेयर यानी एनडीए और महागठबंधन में से किसी का फोकस दलित राजनीति की ओर नहीं था. बिहार की दलित पॉलिटिक्स का सबसे बड़ा चेहरा माने जाने वाले चिराग पासवान की पार्टी एनडीए में है. एनडीए की ओर से सीएम के दावेदार भले ही कई नेता माने जाते हों, लेकिन नीतीश कुमार स्वाभाविक दावेदार हैं. महागठबंधन की ओर से सीएम फेस के तौर पर तेजस्वी यादव चेहरा घोषित नहीं किए जाने की स्थिति में भी स्वाभाविक दावेदार हैं.
ऐसे में, दलित पॉलिटिक्स की पिच पर जो शून्य था, चिराग और उनकी पार्टी के लिए जो वॉकओवर जैसी स्थिति थी, रणनीतिकार से राजनेता बने पीके ने उसे भांपते हुए अपनी पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष उसी तबके से बना दिया. पीके के दलित कार्ड को भी चिराग की अति सक्रियता के पीछे प्रमुख वजह बताया जा रहा है. चिराग अब नए वर्गों को पार्टी से जोड़ने के साथ ही दलित मतदाताओं के बीच अपनी जमीन मजबूत करने की कोशिशों में भी जुट गए हैं. अगर वह ऐसा करने में सफल रहते हैं, तो नुकसान पीके की पार्टी को हो सकता है.
4- बेरोजगारी और पलायन की पिच
पीके ने पार्टी बनाने के साथ ही बिहार में बेरोजगारी और पलायन की बात छेड़ दुखती रग पर हाथ रख दिया. पीके ने जन सुराज पार्टी की लॉन्चिंग से पहले ही रोजगार देने का ब्लूप्रिंट जनता के सामने रख दिया था. पीके ने दावा किया था कि जन सुराज की सरकार बनी तो 10 हजार रुपये तक के रोजगार के लिए किसी को बिहार से बाहर नहीं जाना पड़ेगा.
पीके ने बिहार के युवाओं को 10 हजार तक के रोजगार का अवसर बिहार में ही दिलाने का वादा किया है. वहीं, चिराग पासवान भी आजादी के इतने वर्षों बाद पलायन जैसी समस्या पर चिंता जताते हुए यह कह चुके हैं रोजी-रोजगार के लिए पलायन कर गए बिहारी लोगों को वापस लाकर उन्हें यहीं रोजगार मुहैया कराया जाए. हमारी पार्टी इस दिशा में गंभीरता पूर्वक कार्य कर रही है.
5- पीके और चिराग, दोनों ही सीएम दावेदार
प्रशांत किशोर और चिराग पासवान, बिहार की सियासत के दोनों ही युवा चेहरों की गिनती उन चुनिंदा नेताओं में होती है, जो मुख्यमंत्री पद के दावेदार माने जाते हैं. सी वोटर के हालिया सर्वे में तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार के बाद सीएम पद के लिए 16.4 फीसदी लोगों की पसंद के साथ पीके तीसरे नंबर पर हैं. वहीं, इस सर्वे में चौथे नंबर पर रहे चिराग पासवान को 10.6 फीसदी लोगों ने मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी पसंद बताया है. गौर करने वाली बात यह है कि बिहार सरकार के डिप्टी सीएम बीजेपी के सम्राट चौधरी सीएम के लिए 6.6 फीसदी लोगों की पसंद के साथ पांचवें नंबर पर रहे थे.
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