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हाईकोर्ट से ट्विटर को तगड़ा झटका, केंद्र के खिलाफ याचिका खारिज; ठोका 50 लाख का जुर्माना

नई दिल्ली: कर्नाटक हाईकोर्ट ने शुक्रवार को ट्विटर द्वारा फरवरी 2021 और 2022 के बीच केंद्र सरकार द्वारा जारी किए गए दस ब्लॉकिंग आदेशों को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें सोशल मीडिया दिग्गज कंपनी को 39 यूआरएल हटाने का निर्देश दिया गया था. कोर्ट ने कहा कि ट्विटर कोई किसान या कानून से अपरिचित कोई सामान्य व्यक्ति नहीं है, बल्कि एक अरबपति कंपनी है.

जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित ने ट्विटर पर 50 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया और कहा कि उसने समय पर ब्लॉक करने की केंद्र सरकार की मांगों का पालन नहीं करने का कारण नहीं बताया. फैसले के ऑपरेटिव भागों का उल्लेख करते हुए जस्टिस दीक्षित ने कहा कि वह केंद्र सरकार के रुख से आश्वस्त हैं कि उसके पास न केवल ट्वीट्स को ब्लॉक करने की शक्ति है, बल्कि वह खातों को भी ब्लॉक कर सकती है.

अप्रैल में कर्नाटक हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार द्वारा फरवरी 2021 और फरवरी 2022 के बीच 39 यूआरएल को हटाने के लिए जारी किए गए दस आदेशों को चुनौती देने वाली ट्विटर की एक याचिका पर आदेश सुरक्षित रखा था. जिस पर आज यानी शुक्रवार को अपना फैसला सुनाते हुए याचिका खारिज कर दी और ट्विटर पर ही 50 लाख रुपये का जुर्माना लगा दिया है.


ट्विटर के तर्क दिया था केंद्र सरकार को सोशल मीडिया खातों को ब्लॉक करने के लिए सामान्य आदेश जारी करने का अधिकार नहीं था और आदेशों में ऐसे कारण होने चाहिए जो उपयोगकर्ताओं को बताए गए हों. केंद्र सरकार ने कोर्ट के सामने अपनी दलील रखते हुए कहा था कि भारत की संप्रभुता या सार्वजनिक व्यवस्था के लिए खतरा होने पर ही सरकार हस्तक्षेप करेगी. सरकार की ओर से बंद लिफाफों में रोक लगाने के आदेश भी हाई कोर्ट को सौंपे गए थे.

केंद्र सरकार ने हाई कोर्ट में कहा था कि ट्विटर अपने यूजर्स की ओर से बात नहीं कर सकता है और इसलिए, उसके पास याचिका दायर करने का कोई अधिकार नहीं है और नहीं उसके पास यूजर्स के कारणों का समर्थन करने का कोई अधिकार है. सरकार ने कहा था कि सोशल मीडिया कंपनी अनुच्छेद 14 के तहत अधिकारों का उल्लंघन का दावा करते हुए कोर्ट जा सकती है, लेकिन वो भी तब जब सरकार ने मनमानी की हो.

सरकार ने कोर्ट के सामने दलील देते हुए कहा था कि चूकि सोशल मीडिया कंपनी ट्विटर एक विदेशी कंपनी है और सरकार के आदेश मनमाना नहीं थे. कंपनी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 समानता का अधिकार) और 19 (भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार) के तहत अपने मौलिक अधिकारों से पीछे नहीं हट सकती है.

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