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स्वयंभू संत रामपाल को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट से बड़ी राहत, उम्रकैद की सजा पर लगाई रोक

August 31, 2025

चंडीगढ़ । सतलोक आश्रम बरवाला (Satlok Ashram Barwala) के स्वयंभू संत रामपाल (Rampal) को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट (Haryana High Court) से बड़ी राहत मिली है। वर्ष 2014 में आश्रम के भीतर महिला अनुयायियों (Female followers) की मौत के मामले में उम्रकैद (Life imprisonment) की सजा काट रहे रामपाल की सजा पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है। 10 साल से जेल में बंद रामपाल के लिए रिहाई का रास्ता साफ हो गया है। जस्टिस गुरविंद्र सिंह गिल और जस्टिस दीपिंद्र सिंह नलवा की खंडपीठ ने रामपाल की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ यह आरोप जरूर है कि उसने महिलाओं को आश्रम में बंद रखा था लेकिन मेडिकल साक्ष्यों को लेकर गंभीर बहस योग्य मुद्दे मौजूद हैं। रामपाल की उम्र 74 वर्ष है और वह पहले ही 10 साल 27 दिन की वास्तविक सजा काट चुका है। साथ ही मृतक के पति और सास ने भी अभियोजन पक्ष का समर्थन नहीं किया। ऐसे हालात में अदालत ने उसकी उम्रकैद की सजा को मुख्य अपील लंबित रहने तक निलंबित करने का आदेश दिया।

डॉक्टरों की रिपोर्ट में महिला की मौत की वजह न्यूमोनिया बताई
रामपाल ने अक्तूबर 2018 में सैशन कोर्ट द्वारा सुनाई गई सजा को चुनौती देते हुए सजा निलंबन की मांग की थी। उसे आई.पी.सी. की धारा 343, 302 और 120-बी के तहत दोषी ठहराया गया था। रामपाल के वकील ने दलील दी कि उसे झूठा फंसाया गया है और यह मामला प्राकृतिक मौत का है। डॉक्टरों की रिपोर्ट के अनुसार, महिला की मौत न्यूमोनिया से हुई थी। यहां तक कि मृतका के पति और सास ने भी अदालत में स्वीकार किया कि मृतका एक माह से न्यूमोनिया से पीड़ित थी। बचाव पक्ष ने यह भी कहा कि 13 अन्य सह-आरोपी पहले ही जमानत पर रिहा हो चुके हैं, इसलिए रामपाल को भी समान आधार पर राहत मिलनी चाहिए। वहीं, राज्य सरकार ने इस याचिका का विरोध करते हुए कहा कि मृतका समेत कई महिलाओं को रामपाल के आश्रम में कैद कर रखा गया था, जहां उसे न तो पर्याप्त भोजन दिया जाता था और न ही रहने की सुविधा। सरकार का दावा था कि महिलाओं की मौत दम घुटने के कारण हुई। फिलहाल, हाईकोर्ट ने रामपाल की शेष सजा पर रोक लगा दी है और यह आदेश मुख्य अपील के निपटारे तक लागू रहेगा।


जेई की नौकरी छोड़ बाबा बना, आर्य समा​जियों से हुआ खूनी संघर्ष
हरियाणा सरकार में सिंचाई विभाग में जेई की नौकरी छोड़कर बाबा बने रामपाल अपने अनुयायियों के लिए रोहतक और हिसार के बरवाला में सतलोक आश्रम की स्थापना की थी। रामपाल के जीवन में विवादों की शुरुआत साल 2006 में हुई, जब स्वामी दयानंद की लिखी एक किताब पर एक टिप्पणी की। इसके बाद आर्यसमाज बाबा रामपाल के खिलाफ खड़ा हो गया। आर्यसमाज और बाबा के अनुयायियों के बीच संघर्ष हुआ, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई। इस घटना के बाद, रामपाल पर हत्या का मामला दर्ज हुआ। पुलिस ने आश्रम को अपने कब्जे में लिया। रामपाल और उनके 24 समर्थकों को गिरफ्तार कर लिया गया। 2008 में बाबा जेल से बाहर आ गया और 2009 में बाबा रामपाल को आश्रम वापस मिल गया। इसके ​खिलाफ आर्यसमाज के लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी।

कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी। इसके बाद 12 मई 2013 को नाराज आर्यसमाज के लोगों और रामपाल के समर्थकों में फिर झड़प हुई। इस झड़प में तीन लोगों की मौत हो गई और 100 लोग घायल हो गए। 2014 में रामपाल के खिलाफ अदालत में पेश न होने के कारण अवमानना के आरोप में गिरफ्तारी का आदेश दिया गया। पुलिस जब सतलोक आश्रम पर उसे गिरफ्तार करने गई तो रामपाल के समर्थकों ने पुलिस पर धावा बोल दिया। एक सप्ताह तक चले इस संर्घष में छह लोगों की मौत हो गई। इसके बाद, रामपाल को गिरफ्तार कर चंडीगढ़ ले जाया गया। रामपाल पर कई आरोप लगे, जिनमें हत्या, अवैध हथियार रखना और दंगा करना शामिल थे। साल 2018 में हिसार की अदालत ने उसे दोषी ठहराया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

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