इंदौर। शहर की गरीब बस्ती गोमा की फैल ने एक अनूठा उदाहरण पेश किया, जहां पर 60 साल पुराने किराएदारों को अपना खुद का पक्का मकान हासिल हो गया। पिछली बारिश में मकान ढह गया था, जिसके चलते ये गरीब किराएदार सडक़ पर आ गए। इसके बाद क्षेत्रीय पार्षद और महापौर परिषद् सदस्य ने इन परिवारों की मदद करने का निर्णय लिया और मकान मालिक को इस बात के लिए राजी किया कि वह अपनी जमीन इन किराएदारों को मकान बनाने के लिए सौंप दे। मकान मालिक गुप्ता परिवार ने भी बड़ा दिल दिखाया और 50 लाख रुपए कीमत का अपना 1500 स्क्वेयर फीट का भूखंड मात्र 1 रुपए के अनुबंध पर इन किराएदारों को सौंप दिया। नोटरी के जरिए भूखंड के अलग-अलग हिस्से कर उस पर मकान बनवाए गए, जिनका अभी मुहूत्र्त हुआ और पूरे मोहल्ले ने जश्र मनाया और सहभोज का आयोजन भी हुआ।
वैसे तो मकान मालिक-किराएदारों के विवाद आम हैं और पुराने किराएदारों से तो खाली करवाने के लिए मकान मालिक कई पेंतरे आजमाते हैं। यहां तक कि निगम से मिलीभगत कर मकानों को खतरनाक घोषित करवाकर गिरवा भी देते हैं। मगर गोमा की फैल में रहने वाले गुप्ता परिवार ने एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया। उनके मकानों में 60 सालों से 5 किराएदार रह रहे थे। पिछली बारिश में मकान ढह गया, तो गुप्ता परिवार ने तो पहले सोचा कि चलो अच्छा हुआ, उन्हें पुराने किराएदारों से मुक्ति मिली। मगर चूंकि ये पांचों किराएदार अत्यंत गरीब थे और कहीं पर किराए का मकान लेते तो ज्यादा राशि चुकाना पड़ती। ऐसे में क्षेत्रीय पार्षद नंदकिशोर पहाडिय़ा से इन परिवारों ने सम्पर्क किया, तो श्री पहाडिय़ा ने भी इनकी मदद करने का निर्णय लिया, जिसके चलते मकान मालिक गुप्ता परिवार, जिनमें चार भाई हैं, उनसे अलग-अलग चर्चा की और कुछ समय तक लगातार किए प्रयासों के चलते चारों भाई सहमत हुए और चूंकि नगर निगम में खाता खुलवाना था, इसलिए एक रुपए के अनुबंध पर नोटरी करवाई गई।
किसी को 200, किसी को 250 स्क्वेयर फीट हिस्सा मिला और लगभग 1500 स्क्वेयर फीट के इस भूखंड के 5 हिस्से किए गए और सभी किराएदारों ने इधर-उधर से व्यवस्था कर अपने पक्के मकान बना लिए, जिनमें पिछले दिनों गृह प्रवेश हुआ। इस अवस पर क्षेत्रीय विधायक महेन्द्र हार्डिया भी मौजूद रहे और उन्होंने गुप्ता परिवार का भी सम्मान किया। महापौर परिषद् सदस्य श्री पहाडिय़ा ने बताया कि गुप्ता परिवार के चारों भाइयों के साथ लगातार कई बैठकें की गई। पहले कुछ भाई तैयार नहीं थे। मगर बाद में जब इन गरीब परिवारों की स्थिति बताई गई तब वे भी मान गए और अपना हक त्यागने का निर्णय लिया। इनमें से एक परिवार के मुखिया का तो कुछ समय पहले ही अचानक निधन हो गया और परिवार में 5 बेटियां हैं, जो कि छोटी-सी किराने की दुकान चलाकर अपना गुजारा करता है।
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