- मकसद रियल इस्टेट के कारोबार को सुरक्षित बनाना… कारोबारियों और दलालों को बचाना
इंदौर। इंदौर (Indore) प्रदेश का सबसे बड़ा शहर (City) है और यहां रियल इस्टेट कारोबार ( real estate business) पूरे प्रदेश की दशा और दिशा तय करता है। इसलिए इस कारोबार को सुरक्षित बनाने के साथ ही खरीदारों के साथ ही कारोबारियों (businessmen) और दलालों को बचाना भी प्रशासन का मकसद है। पिछले दिनों डायरी कारोबार को लेकर छेड़े गए अभियान से मचे हडक़ंप पर कलेक्टर मनीषसिंह (Collector Manish Singh) ने कहा कि डायरी कारोबार के चलते ही पिछले दिनों रियल इस्टेट के कारोबारियों पर इनकम टैक्स से लेकर कई विभागों ने कार्रवाई की और खरीदारों से लेकर दलालों तक का विश्वास डगमगाया था। प्रशासन का मकसद है कि रियल इस्टेट (real estate) कारोबारी अपने लेन-देन को एग्रीमेंट में तब्दील कर दें और ऐसी किसी भी कार्रवाई से अपने आपको बचाते हुए अपने प्रोजेक्ट को पूर्ण सुरक्षित कर सकें।
जिला प्रशासन द्वारा पिछले एक सप्ताह से डायरी कारोबार के खिलाफ की जा रही कार्रवाई के बाद दलालों पर शिकंजा कसा गया। इस कार्रवाई को लेकर रियल इस्टेट कारोबारियों में हडक़ंप मच गया, क्योंकि रियल इस्टेट का अधिकांश कारोबार डायरी पर ही चल रहा था। प्रशासन की कार्रवाई के चलते शहर में खौफ का माहौल बन गया और लगने लगा कि चलते व्यापार में व्यवधान डालने के लिए प्रशासन द्वारा अवांछनीय कार्रवाई की जा रही है। इस पर कलेक्टर ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि प्रशासन का मकसद रियल इस्टेट के कारोबार को न केवल सुरक्षित बनाना है, बल्कि कारोबारियों और दलालों को आयकर एवं ईडी जैसे विभागों की कार्रवाई से बचाना भी है। प्रशासन चाहता है कि डायरी के कारोबार एग्रीमेंट में तब्दील हो जाएं, ताकि खरीदार तो सुरक्षित हो ही, साथ ही कारोबारी और दलाल भी कार्रवाई से बच सकें।
प्रशासन कालोनाइजर और बिल्डर को तत्काल अनुमति दिलाएगा… कैम्प लगाएगा…
दरअसल डायरी कारोबार को लेकर कारोबारियों (businessmen) की दिक्कत यह है कि समय पर उन्हें अनुमति नहीं मिल पाती है और इस कारण उनके निवेश पर ब्याज की मार पड़ती रहती है। इस कारण टाउन एंड कंट्री प्लानिंग से नक्शा बनाते ही प्रशासनिक अनुमति का इंतजार किए बिना ही कारोबारी प्लॉट बेचना शुरू कर देते हैं। इस पर कलेक्टर मनीषसिंह (Collector Manish Singh) ने विश्वास दिलाया कि अब प्रशासन कालोनाइजर और बिल्डरों को न केवल तत्काल अनुमति दिलाएगा, बल्कि सारी अनुमतियां एक स्थान से प्राप्त हो सकें, इसके लिए सिंगल विंडो बनाने के साथ ही कैम्प भी लगाए जाएंगे। कालोनाइजरों का यह आरोप रहता है कि अनुमति के लिए उन्हें मोटी रकम ऊपरी तौर पर खर्च करना पड़ती है, लेकिन यदि यह कैम्प लगाए जाएंगे तो कालोनाइजरों को रिश्वत से भी मुक्ति मिलेगी।
दलालों की गलती से फंसे थे कारोबारी
डायरी पर कारोबार करने वाले दलालों द्वारा अपने कच्चे और पक्के कारोबार के पूरे लेन-देन का विवरण कम्प्यूटर से लेकर डायरी में दर्ज किया जाता है। इसी को लेकर पिछली बार संजय दासोद, गोपाल गोयल, रितेश अजमेरा सहित कई कालोनाइजरों और दलालों पर आयकर विभाग ने शिकंजा कसते हुए करोड़ों रुपए की डिमांड खड़ी कर रखी है और आज भी यह कारोबारी और दलाल आयकर विभाग के शिकंजे में फंसे हुए हैं। ऐसे में प्रशासन का मकसद उन कारोबारियों के साथ ही नादान दलालों की भी हिफाजत करना है, ताकि प्रॉपर्टी के सौदों पर किसी विभाग की मार न पड़ सके।
फर्जी कालोनाइजरों के लिए डायरी बनी वरदान
शहर में कुछ ऐसे नामी कालोनाइजर हैं जो डायरी के जरिए निवेशकों को करोड़ों को चूना लगाते हैं… पिछले दिनों सुपर कॉरिडोर पर एक माफिया कालोनाइजर ने15 एकड़ की भूमि पर उपलब्ध चार-पांच लाख स्क्वेयरफीट प्लाटिंग एरिये की जगह दस लाख फुट प्लाट बाजार में बेच दिए और सालों विकास नहीं किया इस कारण जिस भाव में निवेशकों ने प्लाट खरीदे थे उस भाव में भी खरीदार नहीं मिले। इन निवेशकों का पैसा वर्षों तक उपयोग करने के बाद औने-पौने दामों में खुद कालोनाइजर ने खरीद लिया और निवेशकों को चूना लगाया…अब यही कारोबारी कनाडिय़ा पर कालोनी काटकर डायरियों से करोड़ों इकट्ठा कर रहा है… इसी पर नकेल डालने के लिए प्रशासन ने कदम उठाया…