उज्जैन। शहर का भूमिगत जल प्रदेश के अन्य जिलों के मुकाबले अधिक कठोर है। इसमें तय मानक से लगभग दो गुना शरीर को नुकसान पहुँचाने वाले तत्व हैं। दो साल पहले हुए भू जल सर्वे में इसका खुलासा हो चुका है। करीब 10 लाख की आबादी वाले शहर में लगभग आधे रहवासियों तक अभी भी पीएचई पानी नहीं पहुँच पाया है। इस कारण आधी आबादी को इसी पानी का सेवन करना पड़ रहा है। इससे लोगों को कई तरह की बीमारियाँ हो रही है।
उल्लेखनीय है कि केंद्रीय भूमि जल बोर्ड ने 2 वर्ष पहले 2022 में उज्जैन सहित प्रदेश की 1430 स्थानों से भू-जल की गुणवत्ता जांचने के लिए नमूने लिए थे, इनमें 92 प्रतिशत कुओं में फ्लोराइड की मात्रा मानक पैमाने पर खरी उतरी थी। प्रदेश के 49 जिलों में पानी में नाइट्रेट की मात्रा अधिक मिली थी। सबसे ज्यादा नाइट्रेट आगर मालवा के सोयत में पाया गया था, वहीं पानी में कठोरता का पैमाना प्रति लीटर में 600 एमजी तक होता है और 200 एमजी को इसमें आदर्श माना जाता है लेकिन मध्यप्रदेश के विभिन्न स्थानों से जो नमूने ग्राउंड वाटर बोर्ड ने लिए थे। उनमें कठोरता 80 से लेकर 1385 एमजी तक पाई गई थी, इनमें सर्वाधिक कठोरता उज्जैन में 1385 एमजी पाई गई थी जो चिंताजनक है। पानी में कैल्शियम बाइकार्बोनेट सल्फेट और क्लोराइड की मात्रा के बढऩे से पानी की कठोरता बढ़ती है। इस हार्ड पानी को पीने से लोगों को त्वचा नाखून और बालों के झडऩे संबंधी समस्या अधिक होती है। पानी में कठोरता का सबसे बड़ा कारण खेतों में एनपीके जैसे फर्टिलाइजर का लगातार उपयोग हो रहा है और यह खेतों में डाला जाता है जो रिसकर भूजल में मिलता है। इसी के चलते पानी में कार्बोनेटों सल्फेट तथा फ्लोराइड जैसे तत्व बढ़ रहे हैं और लोगों में से संबंधित बीमारियाँ भी लगातार बढ़ रही है। इधर उज्जैन शहर में नई व पुरानी पानी की टंकियाँ मिलाकर 42 हो गई है। परंतु कई टंकियाँ पूरी क्षमता से नहीं भर पा रही है। वर्तमान में शहर में एक दिन छोड़ पीएचई जल प्रदाय कर रहा है। इसके बावजूद दो दिन में भी शहरवासियों को नल का पानी पूरे दबाव से नहीं मिल रहा। पिछले एक दशक से यह समस्या बढ़ती जा रही है। इस बीच उज्जैन शहर में तेजी से नई कॉलोनियाँ बनना शुरु हुई थी और करीब आधी आबादी इन कॉलोनियों में इंदौर रोड, देवास रोड, मक्सी रोड, आगर रोड, एमआर 5 मार्ग सहित अन्य ईलाकों में निवास करने लगी है। हालत यह है कि नई बनी करीब करीब सभी कॉलोनियों में लोग पूरी तरह से बोरिंग, हैंडपंप और कुएं के पानी पर आश्रित है, जबकि रिपोर्ट के मुताबिक उजजैन शहर में भूमिगत जल की कठोरता मानक से दो गुना अधिक है। यही कारण है कि शहर की आधी आबादी यह पानी पी रही है और बीमारियों का खतरा जानने के बावजूद इसका पीने में उपयोग कर रही है। इस बारे में जानकारी समिति प्रभारी प्रकाश शर्मा का कहना है कि अमृत मिशन योजना के दूसरे चरण में शहर के शेष इलाकों में पेयजल सप्लाई लाइन पहुँचने का प्रस्ताव शामिल है। दूसरा चरण आरंभ होने पर यह कार्य हो पाएँगे।
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