नई दिल्ली। एक नई रिसर्च में ये बात सामने आई है कि संक्रमण के छह महीने बाद भी शरीर में मौजूद टी सेल्स सुरक्षा प्रदान करता है। टी सेल्स इंसानी शरीर में एक किस्म के सफेद खून की कोशिकाएं हैं। ये वायरस से संक्रमित कोशिकाओं को पहचानने की क्षमता रखते हैं और ये इम्यून रिस्पॉंस का अहम हिस्सा होते हैं।
वैज्ञानिकों ने एक हजार लोगों का परीक्षण कर बताया कि लक्षण वाले मरीजों में ज्यादा टी सेल्स की प्रतिक्रिया देखी गई, लेकिन अभी ये साफ नहीं है कि क्या ये दोबारा संक्रमण से भी बचा सकता है। रिसर्च 23 पुरूष और 77 महिला स्वास्थ्य कर्मियों के सैंपल पर आधारित थी और ये मार्च-अप्रैल के बीच कोरोना वायरस से संक्रमित हुए थे।
सैंपल के परीक्षण के बाद पाया गया कि या तो उनमें हल्के लक्षण थे या एसिम्पटोमैटिक (बिना लक्षण) थे। उनमें से किसी को भी कोविड-19 के इलाज के लिए अस्पताल जाने की जरूरत नहीं पड़ी। शोध को बर्मिंघम यूनिवर्सिटी, नेशनल इंस्टीट्यूट फोर हेल्थ रिसर्च, मैनचेस्टर और पब्लिक हेल्थ इंग्लैंग की तरफ से अंजाम दिया गया।
ब्रिटिश शोधकर्ताओं का कहना है कि इम्यूनिटी पर उनका अनुसंधान ‘पहेली का सिर्फ एक हिस्सा’ है और अभी बहुत कुछ सीखा जाना है। उन्होंने वैक्सीन के परीक्षण में टी सेल्स रिस्पॉंस की जांच को जरूरी माना। प्रोफेसर मोस ने कहा, “हमें ज्यादा अनुसंधान की जरूरत है जिससे पता चले कि क्या लक्षण वाले मरीज को भविष्य में दोबारा संक्रमण होने पर बेहतर सुरक्षा मिल सकती है।”
ब्रिटिश सोसायटी फोर इम्यूनोलॉजी के अध्यक्ष प्रोफेसर अरने अकबर ने रिसर्च को ‘कोविड-19 के खिलाफ इम्यूनिटी की समझ में एक कदम आगे’ बताया। वैज्ञानिकों का कहना है कि संक्रमण के करीब 10 दिन में शरीर के अंदर एंटी बॉडीज बनता है, लेकिन समय गुजरने के साथ घटने लगता है. एंटी बॉडीज बीमारी को रोकने के लिए वायरस से चिपके रहते हैं।
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