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    Delhi Mayor Election: LG ने पहली बार लिया ये फैसला, सुप्रीम कोर्ट का आदेश बना आधार

  • November 14, 2024

    नई दिल्ली. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली (Delhi) को तय समय से सात महीने की देरी से नया मेयर (New  Mayor) मिलने जा रहा है. नए मेयर का चुनाव अप्रैल महीने में ही होना था लेकिन इसमें पीठासीन अधिकारी (Presiding Officer) की नियुक्ति को लेकर एक नियम आड़े आ गया था. पीठासीन अधिकारी की नियुक्ति दिल्ली सरकार (Delhi Government) की सिफारिश से उपराज्यपाल (LG) को करनी होती थी. दिल्ली के तत्कालीन सीएम (The then CM) अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) तब जेल में थे और दिल्ली सरकार की ओर से भेजी गई संस्तुति पर उनके हस्ताक्षर नहीं होने को आधार बनाकर एलजी ने पीठासीन अधिकारी की नियुक्ति से इनकार कर दिया था.

    एलजी ने महापौर शैली ओबेरॉय से ही अगले आदेश तक कामकाज संभालने के लिए कहा था. दिल्ली में मुख्यमंत्री बदलने के बाद नई सरकार ने मेयर चुनाव की प्रक्रिया दोबारा शुरू की. चुनाव के लिए 14 नवंबर की तारीख तय हो गई लेकिन एलजी को इस बार पीठासीन अधिकारी की नियुक्ति के लिए न तो दिल्ली सरकार की संस्तुति की जरूरत पड़ी और ना ही उस संस्तुति पर सीएम के हस्ताक्षर की.


    एलजी ने की पीठासीन अधिकारी की नियुक्ति
    दिल्ली नगर निगम के इतिहास में ऐसा पहली बार है जब पीठासीन की नियुक्ति सीधे एलजी ने कर दी हो. एलजी ने दिल्ली मेयर चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की पार्षद सत्या शर्मा को पीठासीन नियुक्त किया है. मेयर चुनाव के लिए एलजी की ओर से की गई पीठासीन की नियुक्ति के साथ ही यह साफ हो गया है कि इसमें दिल्ली सरकार की कोई भूमिका नहीं होगी और आगे भी एलजी दफ्तर यही प्रक्रिया अपनाने वाला है.

    एलजी के फैसले का सुप्रीम कोर्ट कनेक्शन
    दरअसल, एलजी की ओर से दिल्ली सरकार की संस्तुति के बगैर अपने स्तर से ही सीधे पीठासीन अधिकारी नियुक्त करने के फैसले का सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय से कनेक्शन है. सुप्रीम कोर्ट ने एमसीडी में एल्डरमैन के मनोनयन के मामले में 5 अगस्त 2024 को अपना फैसला सुनाया था. अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एलजी की ओर से की गई एल्डरमैन की नियुक्ति को सही बताया था.

    अपने इसी फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि निगम एक्ट में जहां प्रशासक को शक्तियां दी गई हैं, वहां प्रशासक अपने विवेक से निर्णय ले सकते हैं. एमसीडी के प्रशासक एलजी ही हैं और सुप्रीम कोर्ट ने अपने विवेक से निर्णय लेने की छूट देकर एक तरह से दिल्ली सरकार की संस्तुतियों पर उनकी निर्भरता समाप्त कर दी.

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