लंदन। ब्रिटेन में हुए एक ताजा अध्ययन में देश में गैर-बराबरी संबंधी सरकारी आंकड़ों को चुनौती दी गई है। इसमें कहा गया है कि सरकारी आंकड़ों में देश की सबसे धनी एक फीसदी आबादी के पास जितना धन बताया गया है असल में उसके पास उससे 800 अरब पाउंड का अधिक धन है।
इस अध्ययन के मुताबिक देश में आर्थिक गैर-बराबरी की हालत उससे कहीं ज्यादा गंभीर है, जितनी अब तक मानी जाती रही है। अध्ययनकर्ताओं ने कहा है कि उन्होंने सबसे धनी एक फीसदी आबादी के पास जितने धन का अनुमान लगाया है, असल आंकड़ा उससे भी ज्यादा हो सकता है। ये अध्ययन रिपोर्ट उस समय जारी हुई है, जब देश में वेल्थ टैक्स लगाने या धनी लोगों से अधिक टैक्स वसूलने के दूसरे उपाय करने की मांग तेज होती जा रही है। ‘महल टैक्स‘ लगाने की मांग भी फिर से उठ खड़ी हुई है। कोरोना महामारी के आर्थिक प्रभावों से निपटने के लिए संसाधन जुटाने की जरूरत खुद कंजरवेटिव सरकार भी महसूस कर रही है।
नई रिपोर्ट प्राइवेट थिंक टैंक रिजोल्यूशन फाउंडेशन ने जारी की है। इसमें दावा किया गया है कि राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय के आंकड़ों में सबसे धनी लोगों के धन के बारे में कुछ जानकारियों को शामिल नहीं किया गया। फाउंडेशन के मुताबिक ऐसे लोगों के तकरीबन पांच फीसदी धन की जानकारी सरकारी रिपोर्ट में नहीं है।
सरकारी रिपोर्ट में बताया गया था कि देश के शीर्ष एक फीसदी धनी लोगों के पास ब्रिटेन के कुल धन का 18 फीसदी हिस्सा है, जबकि फाउंडेशन की स्टडी के मुताबिक यह आंकड़ा 23 प्रतिशत है। हाल के वर्षों में हुए अध्ययनों से यह सामने आया है कि 20वीं सदी में दूसरे विश्व युद्ध के बाद के दशकों में कुल मिलाकर गैर-बराबरी की खाई घटी थी। दूसरे विश्व युद्ध के पहले ब्रिटेन की शीर्ष 10 प्रतिशत आबादी के देश के धन का 90 प्रतिशत हिस्सा था, लेकिन 1980 तक यह घट कर 50 प्रतिशत रह गया। आगे भी कुछ समय तक यह ट्रेंड जारी रहा।
रिजोल्यूशन फाउंडेशन का कहना है कि हाल के वर्षों में ये ट्रेंड पलट गया है। खासकर 2008 के वित्तीय संकट के बाद से जायदाद की कीमत तेजी से बढ़ी है। इस कारण मकान, जमीन और शेयरों के भाव तेजी से चढ़े हैं। इससे शीर्ष धनी लोगों की संपत्ति में बढ़ोतरी हुई है। यानी आबादी के इस हिस्से की संपत्ति बचत या उद्यम के कारण नहीं बढ़ी है।
कुछ समय पहले ब्रिटेन में एक गैर सरकारी पहल के तहत प्रमुख टैक्स विशेषज्ञों और अर्थशास्त्रियों को शामिल कर वेल्थ टैक्स कमीशन बनाया गया था। इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि कोरोना महामारी के असर से उबरने के लिए अति धनी लोगों पर नए टैक्स लगाए जाने चाहिए। अगर उन पर वेल्थ टैक्स लगाया जाएए तो उससे सरकार को 260 अरब पाउंड की अतिरिक्त आमदनी हो सकती है। आयोग ने कहा था कि इस मौके पर संसाधन जुटाने का यही सबसे न्यायपूर्ण और कुशल तरीका है।
बीते नवंबर में वित्त मंत्री ऋषि सुनक ने भी संसाधन जुटाने के लिए एक स्टडी कराई थी। इसमें पूंजीगत लाभ टैक्स में सुधार करने का सुझाव दिया गया। कहा गया कि ऐसा सालाना भत्ते को घटाकर किया जा सकता है। कोविड-19 महामारी आने के पहले भी ब्रिटेन में सामाजिक क्षेत्र मे खर्च बढ़ाने की मांग तेज हो रही थी। विशेषज्ञों का कहना है कि देश में स्वास्थ्य और जन कल्याण कार्यक्रमों पर खर्च में 2030 तक 38 अरब पाउंड की बढ़ोतरी होगी। इन हालात के मद्देनजर रिजोल्यूशन फाउंडेशन ने वेल्थ टैक्स का सहारा लेने का सुझाव दिया है।
फाउंडेशन से जुड़े अर्थशास्त्री जैक लेसली ने स्थानीय मीडिया से कहा कि ब्रिटेन में हाल के दशकों में धन में भारी बढ़ोतरी हुई है। आम लोगों की आमदनी में वृद्धि रुक गई है लेकिन धनी लोगों के धन में इजाफा होता रहा। अब जानकार मांग कर रहे हैं कि जो धन टैक्स के दायरे से बचा रहा है उस पर सरकार नए कर लगाए।
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