- – राजवाड़ा में जली होलकर राजवंश की होली
- – करीब 300 साल पुराने चांदी के बर्तनों का हुआ इस्तेमाल
इंदौर। कोरोना का काल के बाद बाद इंदौर (Indore) में कल उल्लास उमंग और उत्साह के रंग बिखरने वाले हैं। इंदौर की परम्पराओं में शुमार एक सैकड़ों साल पुरानी परंपरा भी है, जिसका निर्वहन इंदौर में बिना रुके होता आया है। वह परंपरा है होलकर राजवंश (Holkar rajvansh) की होलिका दहन परंपरा। आज शाम राजवाड़ा (Rajvada) में होलकर राजवंश की होली का दहन परंपरा का निर्वहन ठीक उसी तरह किया गया, जिस तरह लोकमाता देवी अहिल्याबाई होलकर (Devi ahilyabai holkar) उस जमाने में किया करती थी। आज भी होलकर राजवंश उन्हीं चांदी के बर्तनों से होलिका दहन में पूजन अर्चन करता है, जिन चांदी के बर्तनों में देवी अहिल्याबाई होलकर ने पूजन किया था।
परंपरागत रूप से होलिका दहन के बाद राजवाड़ा स्थित मल्हारी मार्तंड मंदिर (Malhari Martand temple) में भगवान का पूजन किया गया और पूजन के बाद भगवान और मां देवी अहिल्या की गादी पर होलकर कालीन चांदी की पिचकारी से रंग और गुलाल डाला गया। इस मौके पर होलकर राजवंश के कुछ लोग और पंडित मौजूद रहे। होलकर कॉलेज धरोहरों में यूं तो सारी चीजें आज भी अच्छे से संजो कर रखी गई है, लेकिन उस जमाने में मां देवी अहिल्या जिन चांदी के बर्तनों का इस्तेमाल किया करती थी, उनमें थाल, कटोरियां, लोटा, तरवाना, जल पात्र और दो पिचकारियां मौजूद है। ये सब करीब 300 साल पुराने हैं।
खासगी ट्रस्ट मार्तंड मंदिर पंडित लीलाधर वारकर (Pandit Liladhar vaarkar) होलिका दहन और परंपराओं के निर्वहन के बाद जानकारी देते हुए बताया कि विशेष पूजा और विशेष मौकों पर होलकर कालीन विरासत के इन्हीं बर्तनों का इस्तेमाल किया जाता है। पिचकारी सहित जल पात्र और अन्य बर्तनों पर खास नक्काशी की गई है।
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